Saturday, June 18, 2011

श्याम ऊर्जा(Dark Energy):ब्रह्माण्ड की संरचना भाग ८

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सबसे प्रचलित तथा मान्य सिद्धांत के अनुसार अरबो वर्ष पहले सारा ब्रह्माण्ड एक बिंदू के रूप मे था। किसी अज्ञात कारण से इस बिंदू ने एक विस्फोट के साथ विस्तार प्रारंभ किया और ब्रह्माण्ड आस्तित्व मे आया। ब्रह्माण्ड का यह विस्तार वर्तमान मे भी जारी है। इसे हम महाविस्फोट का सिद्धांत(The Big Bang Theory) कहते है। एडवीन हब्बल द्वारा किये गये निरिक्षणो तथा आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत ने इस सिद्धांत को प्रायोगिक तथा तार्किक आधार दिया।

१९९० दशक के मध्य मे कुछ खगोलशास्त्रीयों ने ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति मापने के लिए कुछ प्रयोग किये। गुरुत्वाकर्षण बल द्रव्यमान को आकर्षित करता है, इसलिए अधिकतर वैज्ञानिको का मानना था कि गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति को मंद कर देगा या इस गति को स्थिर कर देगा।

इन प्रयोगो के नतिजे अनपेक्षित निकले। ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति ना कम हो रही थी, ना स्थिर थी, उल्टे वह बढ़ रही थी।

यह प्रयोग कुछ समूह १ए(Type 1A) के सुपरनोवाओं के निरिक्षण पर आधारित था। समूह १ए के सुपरनोवा ब्रह्मांडीय दूरीयो के मापन के लिए मानक दीपस्तंभो (Standard Lamppost or Standard Candles) के रूप मे प्रयोग किए जाते है। विभिन्न दूरीयों के सुपरनोवाओं के निरिक्षण से वैज्ञानिक भूतकाल मे देख सकते है क्योंकि प्रकाश को उन सुपरनोवाओं से हम तक पहुंचने मे अरबों वर्ष लगते है।

वैज्ञानिको ने भिन्न दूरीयो पर स्थित सुपरनोवाओं से उत्सर्जित प्रकाश का निरिक्षण किया जिससे उनके हमसे दूर जाने की गति की गणना की जा सके। यह गणना डाप्लर प्रभाव(Dopler Effect) के कारण उत्पन्न लाल विचलन(Red Shift) के मापन से की जाती है। यह निरिक्षण वैज्ञानिको को भूतकाल मे भिन्न भिन्न बिंदुओं पर ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति की मात्रा की जानकारी देने मे सक्षम था।

वैज्ञानिको ने पाया कि वर्तमान मे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति भूतकाल मे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति से अधिक है। यह आश्चर्यजनक था लेकिन सत्य था। यह प्रयोग एक ही समय मे वैज्ञानिको के दो अलग अलग समूहो ने किया था जिससे आंकड़ों मे या निरिक्षणो मे गलती की संभावना भी नही थी। इन सभी का अर्थ यही था कि कोई एक रहस्यमय बल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव को ना केवल उदासीन कर रहा था साथ मे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति को त्वरित कर रहा था।

इसी रहस्यमय बल को श्याम ऊर्जा(Dark Energy) नाम दिया गया है। यदि श्याम ऊर्जा (Dark Energy) किसी विशेष प्रकार का प्रतिकर्षण वाला बल है। यह किसी भी पदार्थ(साधारण बार्योनिक पदार्थ,प्रति पदार्थ(Anti-Matter) या श्याम पदार्थ(Dark Matter)) से संबंधित नही है।

चन्द्रा अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा श्याम ऊर्जा की पुष्टि

वैज्ञानिको ने हाल ही मे श्याम ऊर्जा के अस्तित्व को सुपरनोवा के अतिरिक्त नयी विधीयों से भी प्रमाणित किया है। यह नयी विधी चंद्रा एक्स रे वेधशाला के निरिक्षणो से प्राप्त आंकड़ों पर निर्भर है। इसके अनुसार श्याम ऊर्जा आइंस्टाइन के खगोलिय स्थिरांक(Cosmological Constant) का ही रूप है, जिसे आइंस्टाइन ने ही अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल(biggest blunder) कह कर नकार दिया था। इन प्रयोगो मे वैज्ञानिको ने कुछ आकाशगंगा समूह के द्रव्यमान मे कमी महसूस की है जो कि किसी श्यामऊर्जा के जैसे विदारक बल के कारण ही हो सकती है। वैज्ञानिको के अनुसार श्याम ऊर्जा का यह प्रभाव भविष्य मे तारो, ग्रहों को तथा हमारा निर्माण करने वाले अणुओ को भी फाड़ सकता है। (चन्द्रा अंतरिक्ष वेधशाला का नाम भारतीय मूल के वैज्ञानिक सुब्रमनियन चन्द्रशेखर के सम्मान मे दिया गया है।)

इस प्रयोग से जुड़े शिकागो विश्वविद्यालय के खगोल शास्त्र तथा खगोल भौतिकी विभाग के वैज्ञानिक माइकल टर्नर के अनुसार

“१० वर्ष पहले ब्रह्मांड के विस्तार मे गति मे त्वरण की खोज पर यदि किसी को संदेह था तब इस खोज से वह दूर हो जाना चाहीये।”

श्याम ऊर्जा की मात्रा

खगोल वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्माण्ड का कूल ७४% से ७६% भाग श्याम ऊर्जा से बना है, २०% से २२% भाग श्याम पदार्थ से तथा शेष ४ % साधारण पदार्थ से बना है। इस शेष ४% मे हम, हमारा सौरमंडल तथा हमारी आकाशगंगा शामिल है। ब्रह्माण्ड मे कितने नगण्य और तुच्छ है हम !

श्याम ऊर्जा बड़े पैमाने पर(ब्रह्मांडीय स्तर पर) कार्य करती है लेकिन छोटे पैमाने पर(आकाशगंगा) इसका प्रभाव नही होता है। इस कारण इस ऊर्जा का प्रभाव हम अपनी आकाशगंगा या हमारे सौर मंडल मे नही देखते है। इस ऊर्जा का प्रभाव स्थानिय आकाशगंगा समूह मे भी नही देखा गया है, हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी तथा पड़ोसी आकाशगंगा एन्ड्रोमीडा इसी समूह की सदस्य है।

क्या है श्याम ऊर्जा

आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद के अनुसार ब्रह्मांडीय स्थिरांक निर्वात के घनत्व तथा दबाव से जुड़ा है। दूसरे शब्दो मे श्याम ऊर्जा , निर्वात की ऊर्जा है। इस व्याख्या के अनुसार श्याम ऊर्जा अंतरिक्ष(निर्वात) का गुणधर्म है।

आइंस्टाइन पहले व्यक्ति थे जिन्होने महसूस किया था कि निर्वात (अंतरिक्ष) का अर्थ शुन्य नही है। अंतरिक्ष “रिक्त स्थान” ही नही है, वह रिक्त स्थान होने के बावजूद कुछ विचित्र गुणधर्म रखता है। इन गुणधर्मो मे से कुछ को समझने की शुरुवात हुयी है। आइंन्सटाइन ने अंतरिक्ष का पहला गुणधर्म पाया था कि अंतरिक्ष “रिक्त स्थान” का निर्माण कर सकता है अर्थात अंतरिक्ष अपना विस्तार कर सकता है। आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत मे अंतरिक्ष का एक अन्य गुणधर्म के अनुसार अंतरिक्ष की अपनी ऊर्जा होती है जिसे उन्होने ब्रह्मांडीय स्थिरांक(cosmological constant) कहा था। यह ऊर्जा “रिक्त स्थान” की है इसलिए अंतरिक्ष के विस्तार के साथ इस ऊर्जा मे कमी नही आयेगी। ज्यादा रिक्त स्थान के निर्माण के साथ, रिक्त स्थान की ऊर्जा मे बढो़त्तरी होगी, जिसके परिणाम स्वरूप इस तरह की ऊर्जा ब्रह्माण्ड को और ज्यादा गति से विस्तार देगी।

दुर्भाग्य से कोई भी यह समझ नही पा रहा है कि इस ब्रह्मांडिय स्थिरांक(cosmological constant) का अस्तित्व क्यों है? क्यों इस ब्रह्मांडिय स्थिरांक(cosmological constant) का मूल्य ब्रह्मांड मे विस्तार उत्पन्न करने योग्य ऊर्जा के ठीक बराबर क्यों है?

क्वांटम सिद्धांत की एक दूसरी व्याख्या के अनुसार “रिक्त स्थान(अंतरिक्ष)” अस्थायी आभासी (virtual) कणो से बना है जो सतत रूप मे बनते और अदृश्य होते रहते है। लेकिन जब वैज्ञानिको के रिक्त स्थान(अंतरिक्ष) की इस ऊर्जा की गणना की, तब परिणाम अप्रत्याशित रूप से गलत निकले! यह गणना किया गया मूल्य वास्तविक मूल्य से १०‍‍१२०गुणा ज्यादा था। अर्थात १ के बाद १२० शून्य ! किसी गणना का इतनी बुरी तरह से गलत होना वैज्ञानिको के लीए शर्मनाक था ! रहस्य अभी बरकरार है!

श्याम ऊर्जा का ब्रह्माण्ड के भविष्य की संभावनाएं

ब्रह्माण्ड का भविष्य दो बलो के बीच की रस्साकसी पर निर्भर है। यह दो बल है, गुरुत्वाकर्षण बल तथा श्याम ऊर्जा। गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण बल है तथा पदार्थ के संकुचित करता है। इसी बल के फलस्वरूप सभी ब्रह्मांडिय पिंडो(आकाशगंगा, आकाशगंगा समूह, तारे, निहारिका, ग्रह इत्यादि) का निर्माण हुआ है। यह बल दृश्य पदार्थ (४% बार्योनिक पदार्थ) तथा २४ प्रतिशत अदृश्य श्याम पदार्थ द्वारा उत्पन्न होता है।

श्याम ऊर्जा रिक्त स्थान या निर्वात का बल है। यह ऊर्जा अंतरिक्ष का विस्तार करती है। ध्यान दे यह प्रतिगुरुत्वाकर्षण बल नही है यह दो पिंडो को एक दूसरे से दूर नही धकेलता है, यह दो पिंडो के मध्य रिक्त स्थान(अंतरिक्ष) का विस्तार करता है।

ब्रह्माण्ड का भविष्य इस तथ्य पर निर्भर है कि भविष्य मे कौनसा बल प्रभावी होगा। आज की स्थिती मे तीन संभावनाये बनती है।

१.महा संकुचन(Big Crunch) : यह उस स्थिती मे संभव है जब भविष्य मे किसी समय श्याम ऊर्जा अपना रूप परिवर्तन कर अंतरिक्ष के विस्तार की जगह अंतरिक्ष का संकुचन प्रारंभ कर दे। इस स्थिती मे गुरुत्वाकर्षण बल प्रभावी हो जायेगा और ब्रह्माण्ड संकुचित होकर एक बिन्दू के रूप मे सिकुड़ जायेगा। यह शायद एक और महाविस्फोट(Big Bang) को जन्म देगा। महा विस्फोट तथा महासंकुचन का यह चक्र सतत रूप से चलते रहेगा। यह एक संभावना मात्र है, अभी तक इस संभावना के पक्ष मे कोई प्रमाण नही मिले है।

२.स्थिर श्याम ऊर्जा (ब्रह्माण्डिय स्थिरांक) : इस स्थिती मे ब्रह्माण्ड का विस्तार अनंत काल तक जारी रहेगा। सभी आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर होती जायेंगी। लेकिन आकाशगंगाओं के अंदर गुरुत्वाकर्षण प्रभावी रहेगा। अर्थात आकाशगंगाओं के अंदर तारे, सौर मंडल बने रहेंगे, वे गुरुत्वाकर्षण से बंधे रहेंगे।

३. महा-विच्छेद (Big Rip): यह एक भयावह स्थिती है। इस स्थिती मे ऊर्जा का घनत्व समय के साथ समान रहता है तब वैज्ञानिको के अनुसार ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति बढते जायेगी तथा अंतरिक्ष के विस्तार के साथ श्याम ऊर्जा की मात्रा बढ़ती जायेगी। । आकाशगंगाए एक दूसरे से क्रिया करने या विलय करने की बजाय एक दूसरे से दूर होते जायेंगी। भविष्य मे किसी समय यह गुरुत्वाकर्षण बल पर भी प्रभावी हो जायेगी, तब यह ऊर्जा आकाशगंगाओं, तारो, ग्रहो को चीर देगी। आज से अरबो वर्ष पश्चात हमारी आकाशगंगाओ का स्थानिय सूपरक्लस्टर भी टूट जायेगा और हमारी आकाशगंगा अकेली रह जायेगी। सभी अणुओ का भी विच्छेद हो जायेगा। जैसे कोई मिट्टी का ढेले के कण पानी मे डालने पर घूल कर एक दूसरे से अलग हो जाते है वैसे ही ब्रह्माण्ड का हर सूक्ष्म कण अलग अलग हो जायेगा। अभी तक के सभी निरिक्षण और प्रमाण इसी स्थिती की ओर संकेत कर रहे है।


श्याम पदार्थ को और अधिक ठीक ढंग से समझने के लिए इस विस्तृत सार्थक लेख को पढ़िए.


यह विषय एक विज्ञान फैटंसी फिल्म की कहानी के जैसा है। श्याम ऊर्जा(Dark Energy), एक रहस्यमय बल जिसे कोई समझ नहीं पाया है, लेकिन इस बल के प्रभाव से ब्रह्मांड के पिंड एक दूसरे से दूर और दूर होते जा रहे है।

यह वह काल्पनिक बल है जिसका दबाव ऋणात्मक है और सारे ब्रह्मांड में फैला हुआ है। सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार , इस ऋणात्मक दबाव का प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रभाव के समान है।

श्याम ऊर्जा १९९८ मे उस वक्त प्रकाश में आयी , जब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के २ समुहों ने विभिन्न आकाशगंगाओं में विस्फोट की प्रक्रिया से गुजर रहे सितारों(सुपरनोवा)(१) पर एक सर्वे किया। उन्होने पाया की ये सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति अपेक्षित प्रकाश दीप्ति से कम है, इसका मतलब यह कि उन्हें जितने पास होना चाहिये थी , वे उससे ज्यादा दूर है। इसका एक ही मतलब हो सकता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति कुछ काल पहले की तुलना में बढ़ गयी है!(लाल विचलन भी देखे)

इसके पहले तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति धीरे धीरे गुरुत्वाकर्षण बल के कारण कम होते जा रही है। लेकिन सुपरनोवा के विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि कोई रहस्यमय बल गुरुत्वाकर्षण बल ले विपरीत कार्य कर ब्रह्मांड के विस्तार को गति दे रहा है। यह एक आश्चर्यजनक , विस्मयकारी खोज थी।

पहले तो वैज्ञानिकों को इस प्रयोग के परिणामों की विश्वसनीयता पर ही शक हुआ। उन्हें लगा की सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति किसी गैस या धूल के बादल के कारण कम हो सकती है या यह भी हो सकता है कि सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति के बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान ही गलत हो। लेकिन उपलब्ध आँकड़ों को सावधानी पूर्वक जांचने के बाद पता चला कि कोई रहस्यमय बल का अस्तित्व जरूर है जिसे आज हम श्याम ऊर्जा (Dark Energy) कहते है।

वैसे यह विचार एकदम नया नहीं है। आईंस्टाईन ने अपने सापेक्षता वाद के सिद्धांत(Theory of Relativity) मे एक प्रति गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को दर्शाने वाला बल ब्रह्मांडीय स्थिरांक (Cosmological Constant) का समावेश किया है। लेकिन आईन्स्टाईन खुद और बाद में अन्य विज्ञानी भी मानते थे कि यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक(Cosmological Constant) एक गणितिय सरलता के लिये ही है जिसका वास्तविकता से काफी कम रिश्ता है। १९९० तक किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक एक सच्चाई भी हो सकता है।

दक्षिण केलीफोर्निया विश्व विद्यालय की वर्जीनिया ट्रीम्बल कहती है

“श्याम ऊर्जा को प्रति गुरुत्वाकर्षण कहना सही नहीं है। यह बल गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य नहीं करता है। यह ठीक वैसे ही व्यवहार करता है जैसे सापेक्षता वाद के सिद्धांत के उसे अनुसार उसे करना चाहिये। सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार इस बल का दबाव ऋणात्मक है।”

उनके अनुसार

“ मान लिजिये ब्रह्मांड एक बड़ा सा गुब्बारा है। जब यह गुब्बारा फैलता है, तब विस्तार से इस श्याम ऊर्जा का घनत्व कम होता है और गुब्बारा थोड़ा और फैलता है। ऐसा इस लिये कि श्याम ऊर्जा से ऋणात्मक दबाव(२) उत्पन्न होता है। जबकि गुब्बारे के अंदर यह गुब्बारे को खींचने की कोशिश कर रहा है, घनत्व जितना कम होगा यह गुब्बारे को अंदर की ओर कम खिंच पायेगा जिससे विस्तार और ज्यादा होगा। यही प्रक्रिया ब्रह्मांड के विस्तार में हो रही है।”

सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रह्मांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शुरू हुआ था। उस समय आकाशगंगाये इतनी दूरी पर जा चुकी थी कि गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से श्याम ऊर्जा का प्रभाव ज्यादा हो चुका था।(ध्यान रहे गुरुत्वाकर्षण बल विभिन्न पिण्डो अपनी तरफ खिंचता है, श्याम ऊर्जा वही उन्हे एक दूसरे से दूर ले जाती है।) उस समय के पश्चात श्याम ऊर्जा के प्रभाव से ब्रह्मांड के विस्तार की गति बढ़ते जा रही है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह गति अनिश्चित काल के लिये बढ़ते जायेगी। इसका मतलब यह है कि आज की तुलना में खरबों वर्षों बाद हर आकाशीय पिंड एक दूसरे तेज और तेज दूर होते जायेगा और हम अकेले रह जायेंगे।

श्याम ऊर्जा के इस नये सिद्धांत ने वैज्ञानिकों को थोड़ा निराश किया है, उन्हें एक अप्रत्याशित और एकदम नये ब्रह्मांड की अवधारणा को स्वीकारना पड़ा है। वे पहले ही एक श्याम पदार्थ(Dark Matter) की अवधारणा को मान चुके है। आज की गणना के अनुसार यह श्याम पदार्थ , वास्तविक पदार्थ से कहीं ज्यादा है। यह एक ऐसा पदार्थ है जिसे आज तक किसी प्रयोगशाला में महसूस नहीं किया गया है लेकिन इसके होने के सबूत पाये गये है। अब श्याम ऊर्जा का आगमन जख्म पर नमक छिड़कने के समान है।

अंतरिक्ष विज्ञानीयो के अनुसार ब्रह्मांड तीन चीजों से बना है साधारण पदार्थ , श्याम पदार्थ और श्याम ऊर्जा। हम सिर्फ साधारण पदार्थ के बारे में जानते है। ब्रह्मांड का ९०-९५% भाग ऐसे दो पदार्थों से बना है जिसके बारे में कोई नहीं जानता , यह सुन कर आप कैसा महसूस करते है ?

क्वांटम भौतिकी को समझने के लिये दो पीढ़ीया लग गयी। यह समय उस विज्ञान के बारे में था जिसे हम प्रयोगशाला में प्रयोग कर के सिद्ध कर सकते थे। एक ऐसे पदार्थ और ऊर्जा को समझना जिसे देखा नहीं जा सकता, प्रयोगशाला में बनाया नहीं जा सकता कितना कठिन है ?

लेकिन श्याम ऊर्जा ने एक ऐसे रहस्य को सुलझा दिया है जो ब्रह्मांडीय विकिरण ने उत्पन्न किया था। ब्रह्मांडीय विकिरण की तीव्रता के विचलन पर हाल ही के प्रयोगों से प्राप्त आंकडे ब्रह्मांड के अनंत विस्तार के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के लिये इस विस्तार के पीछे कारणीभूत बल एक पहेली था, श्याम ऊर्जा शायद इसी का हल है।

श्याम ऊर्जा का अस्तित्व चाहे किसी भी रूप मे गणना की गयी ब्रह्मांड की ज्यामिती और ब्रह्मांड के कुल पदार्थ की मात्रा के संतुलन के लिये जरूरी है। ब्रह्मांडीय विकिरण (cosmic microwave background (CMB)), की गणना यह संकेत देती है की ब्रह्मांड लगभग सपाट(Flat) है। ब्रह्मांड के इस आकार के लिये , द्रव्यमान और ऊर्जा का अनुपात एक निश्चित क्रान्तिक घनत्व(Critical Density) के बराबर होना चाहिये। ब्रह्मांड के कुल पदार्थ की मात्रा (बायरान और श्याम पदार्थ को मिला कर), ब्रह्मांडीय विकिरण की गणना के अनुसार क्रान्तिक घनत्व का सिर्फ ३०% ही है। इसका मतलब यह है कि श्याम ऊर्जा ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का ७०% होना चाहीये।

हाल के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्मांड का निर्माण ७४% प्रतिशत श्याम ऊर्जा से, २२% श्याम पदार्थ से और सिर्फ ४% साधारण पदार्थ से हुआ है। और हम इसी ४% साधारण पदार्थ के बारे में जानते है।

श्याम ऊर्जा की प्रकृति एक सोच का विषय है। यह समांगी, कम घनत्व का बल है जो गुरुत्वाकर्षण के अलावा किसी और मूलभूत बलों(३) से कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। इसका घनत्व काफी कम है लगभग १०-२९ g/cm3।इसकी प्रयोगशाला में जांच लगभग असंभव ही है।

श्याम ऊर्जा को समझने के लिये सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत है ब्रह्मांडीय स्थिरांक सिद्धांत:

यह आईन्स्टाईन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत है। यह एक दम सरल है, इसके अनुसार अंतराल मे (Volume of Space)मे एक अंतस्थ मूलभूत ऊर्जा होती है। यह एक ब्रह्मांडीय स्थिरांक है जिसे लैम्डा कहते है। द्रव्यमान और ऊर्जा का ये आईन्सटाईन के समीकरण e=mc2 के द्वारा संबंधित है, इससे यह साबित होता है कि ब्रह्मांडीय स्थिरांक पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होना चाहिये। इसे कभी कभी निर्वात ऊर्जा (Vacuum Energy) भी कहते है क्योंकि यह निर्वात की ऊर्जा का घनत्व है। वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार ब्रह्मांडीय स्थिरांक का मूल्य १०-२९ g/cm3 है।

ब्रह्मांडीय स्थिरांक एक ऋणात्मक दबाव वाला बल है जो अपने ऊर्जा घनत्व के बराबर होता है, इसी वजह से यह ब्रह्मांड के विस्तार को त्वरण देता है।

श्याम ऊर्जा का ब्रह्मांड के भविष्य पर प्रभाव

जैसा कि हम पहले देख चुके है सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रह्मांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शुरु हुआ था। इसके पहले यह सोचा जाता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति बायरानीक और श्याम पदार्थ के गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप कम हो रही है। विस्तारित होते ब्रह्मांड में श्याम पदार्थ का घनत्व का श्याम ऊर्जा की तुलना में ज्यादा तीव्रता से ह्रास होता है। जिससे श्याम ऊर्जा का पलड़ा भारी रहता है। जब ब्रह्मांड का आकार दुगुना हो जाता है श्याम पदार्थ का घनत्व आधा हो जाता है जबकि श्याम ऊर्जा का घनत्व ज्यों का त्यों रहता है। सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार तो यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक(Cosmological Constant) है।

यदि विस्तार की गति इस तरह से बढ़ती रही तो आकाशगंगाये ब्रह्मांडीय क्षितिज के पार चली जायेंगी और दिखायी देना बंद हो जायेंगी। ऐसा इस लिये होगा कि उनकी गति प्रकाश की गति से ज्यादा हो जायेगी। यह सापेक्षता वाद के नियम का उल्लंघन नहीं है। पृथ्वी, अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी को कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन बाकी का सारा ब्रह्मांड दूर चला जायेगा।

ब्रह्मांड के अंत के बारे कुछ कल्पनायें है जिसमे से एक है कि श्याम ऊर्जा का प्रभाव बढ़ते जायेगा, और एक समय यह केन्द्रीय बलों और अन्य मूलभूत बलों से भी ज्यादा हो जायेगा। इस स्थिती में श्याम ऊर्जा सौर मंडल, आकाशगंगा, कोई भी पिंड से लेकर अणु परमाणु सभी को विखंडित कर देगी। यह स्थिती महा विच्छेद (Big Rip)की होगी।

दूसरी कल्पना महा संकुचन(Big Crunch)की है, इसमें श्याम ऊर्जा का प्रभाव एक सीमा के बाद खत्म हो जायेगा और गुरुत्वाकर्षण उस पर हावी हो जायेगा। यह एक संकुचन की प्रक्रिया को जन्म देगा। अंत मे एक महा संकुचन से सारा ब्रह्मांड एक बिंदु में तबदील हो जायेगा| यह बिंदु एक महा विस्फोट से एक नये ब्रह्मांड को जन्म देगा।

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(१)सुपरनोवा- कुछ तारों के जीवन काल के अंत में जब उनके पास का सारा इंधन (हायड्रोजन) जला चुका होता है, उनमें एक विस्फोट होता है। यह विस्फोट उन्हें एक बेहद चमकदार तारे में बदल देता है जिसे सुपरनोवा या नोवा कहते है।

(२)ऋणात्मक दबाव - वह दबाव आसपास के द्रव (जैसे वायु) के दबाव से कम होता है।

(३) मूलभूत बल : गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर केन्द्रीय बल, मजबूत केन्द्रीय बल