Saturday, June 18, 2011

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 9: त्वरक ब्रह्माण्ड (एक्सिलरेटिंग यूनिवर्स)

‘प्रसारी ब्रह्माण्ड’ की एक घटना सर्वाधिक विस्मयकारी है और उसने दुविधाएं भी बहुत उत्पन्न की हैं, वह है ब्रह्माण्ड के प्रसार के वेग का दूरी के साथ बढ़ना।

अथार्त न केवल ब्रह्माण्ड में मन्दाकिनियों का प्रसार हो रहा है, वरन उस प्रसार का वेग न तो स्थिर है और न कम हो रहा है, वरन बढ़ रहा है। सामान्य समझ तो यह कहती है कि विस्फोट के समय प्रसार–वेग त्रीवतम होना चाहिये था, और समय के साथ उसे यदि कम न भी होना हो तो बढ़ना तो नहीं ही चाहिये वैसे ही जैसे पृथ्वी पर वेग से (मुक्ति वेग से कम) ऊपर फेकी गई वस्तु का वेग धीरे धीरे कम होता जाता है।

और भी, जब हम सुपरनोवा का अभिरक्त विस्थापन देखते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि सुपरनोवा के विस्फोट पश्चात ब्रह्माण्ड का विस्तार कितने गुना हो गया है। यदि ब्रह्माण्ड के विस्तार में त्वरण है तब भूतकाल में आज की तुलना में विस्तार का वेग कम था। अथार्त पिण्डों के बीच की दूरियां बढ़ रही हैं। अब जो दूरी हमें हमारे और किसी एक सुपरनोवा के बीच दिख रही है वह उस सुपरनोवा के विस्फोट (महान विस्फोट नहीं) काल की हमारे बीच की दूरी से कहीं अधिक है। हम दो सुपरनोवा लें जिनके विस्फोट भिन्न समयों पर हुए हैं। अधिक दूरी के सुपरनोवा की दीप्ति कम दूरी वाले सुपरनोवा की दीप्ति से वर्ग नियम के अनुसार तो कम ही होगी। किन्तु अब दूरियों के कारण, अधिक दूर वाले सुपरनोवा की हमारे बीच की दूरी, कम दूरी वाले सुपरनोवा की हमारे बीच की दूरी की बढ़त से, अधिक बढ़ी है।

अत्यधिक दूरी के सुपरनोवा कम दूरी के सुपरनोवा की तुलना में कहीं अधिक, अथार्त दूरी के अनुपात द्वारा अपेक्षिक से अधिक, मद्धिम दिखाई पड़ेंगे। और अवलोकनों में ऐसा ही पाया गया है। अथार्त मन्दाकिनियों का वेग बढ़ रहा है और चारों दिशाओं में बढ़ रहा है अतएव ब्रह्माण्ड के अन्दर से ही कोई प्रतिगुरुत्वाकर्षण जैसा बल या ऊर्जा है जो उन्हें गुरुत्वाकर्षण के विरोध में बाहर ठेल रहा या रही है जिस तरह रॉकेट अन्तरिक्षयोनों को ठेलकर उनका वेग बढ़ाते रहते हैं। ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई ऊर्जा या बल तो अभी तक देखा नहीं गया है।