Sunday, June 19, 2011

मानव इतिहास का सबसे सफल अभियान :वायेजर २

वोयेजर २

वोयेजर २

वायेजर २ यह एक मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को प्रक्षेपित किया गया था।

यह अपने जुड़वा यान वायेजर १ के जैसा ही है, लेकिन वायेजर १ के विपरित इसका पथ धीमा है। इसे धीमा रखकर इसका पथ युरेनस और नेपच्युन तक पहुचने के लिये अभिकल्पित किया गया था। शनि के गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप यह युरेनस की ओर धकेल दिया गया था जिससे यह यान वायेजर १ की तरह टाईटन चन्द्रमा को नही देख पाया था। लेकिन यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला पहला यान बन गया था, इस तरह मानव का एक विशेष ग्रहीय परिस्थिती के दौरान जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है;महा सैर (Grand Tour) का सपना पूरा हुआ था। यह विशेष स्थिती हर १७६ वर्ष पश्चात उतपन्न होती है।

वायेजर २ का पथ

वायेजर २ का पथ

वायेजर २ यह सबसे ज्यादा सुचनाये प्राप्त करने वाला शोध यान है, जिसने चार ग्रह और उनके अनेको चन्द्रमाओ की अपने शक्तिशाली कैमरो और उपकरणो के साथ यात्रा की है। जबकि इस यान पर खर्च हुआ धन अन्य विशेष शोध यानो जैसे गैलेलीयो या कासीनी-हायगेन्स की तुलना मे काफी कम है।

यह यान मूलतः मैरीनर कार्यक्रम के यान मैरीनर १२ के रूप मे बनाया गया था। इसे २० अगस्त १९७७ को केप केनर्वल फ्लोरीडा से टाईटन ३इ सेन्टार राकेट से प्रक्षेपित किया गया था।

बृहस्पति ग्रह

बृहस्पति ग्रह

बृहस्पति के उपग्रह -आयो,युरोपा,गिनिमेड,कैलीस्टा

बृहस्पति के उपग्रह -आयो,युरोपा,गिनिमेड,कैलीस्टा

गुरू की सैर
९ जुलाई १९७९ को वायेजर गुरु के सबसे समिप ५७०,००० किमी की दूरी पर था। इस यान ने गुरू के कुछ वलयो की खोज की। इसने गुरू के चन्द्रमाआयो की तस्वीरे ली और उसपर एक सक्रिय ज्वालामुखी का पता लगाया। पहली बार किसी अंतरिक्ष पिंड पर ज्वालामुखी का पता चला था।
गुरू सौरमंडल का सबसे बडा़ ग्रह है, जो मुख्यतः हायड्रोजन और हीलीयम से बना है, कुछ मात्रा मे मिथेन,अमोनिया, जल भाप, अन्य यौगीको के अल्प मात्रा भी है। इसके केन्द्र मे द्रव अवस्था मे पत्त्थर और बर्फ है। इसके अक्षांसो पर बने रंगीन पट्टे, वातावरण मे बादल और तुफान इस ग्रह के हमेशा बदलने वाले मौसम के बारे मे बताते है। इस महाकाय ग्रह के अब तक ज्ञात चन्द्रमाओ की संख्या ६३ तक पहुंच चूकी है। यह ग्रह सूर्य की ११.८ वर्ष मे और खुद की परिक्रमा ९ घण्टे ५५ मिनिट मे करता है। अंतरिक्ष विज्ञानी इस ग्रह का आंखो से और दूरबीन से सदियो से निरिक्षण करते आ रहे है लेकिन वे वायेजर २ द्वारा प्रदान की गयी अनेको सूचनाओ से आश्चर्य चकित रह गये थे।
इस ग्रह पर स्थित विशाल लाल धब्बा एक महाकाय तुफान है जो घडी़ के कांटो की विपरीत दिशा मे घूम रहा है। इस ग्रह पर कई अन्य छोटे तुफान भी पाये गये।

वायेजर २ का प्रक्षेपण

वायेजर २ का प्रक्षेपण

आयो चन्द्रमा पर पाया गया सक्रिय ज्वालामुखी यह सबसे ज्यादा अनपेक्षित खोज थी। इस ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा और धुंवा सतह से ३०० किमी तक जाता है। वायेजर २ ने इस ज्वालामुखी से उत्सर्जीत पदार्थ की अधिकतम गति १ किमि प्रति सेकंड तक मापी थी। आयो के ज्वालामुखी इस चन्द्रमा पर ज्वारीय प्रभाव के कारण होने वाली उष्णता के कारण है। आयो अपनी कक्षा से समिओ के चन्द्रमा युरोपा और गीनीमेड के कारण भटकता है लेकिन गुरू का गुरुत्व उसे वापिस अपनी कक्षा मे ला देता है। इस रस्साकसी के चलते आयो पर १०० मीटर उंचा ज्वार आता है। ध्यान दें कि पृथ्वी पर आनेवाला ज्वार सिर्फ १ मीटर उंचा रहता है।
आयो के इस ज्वालामुखी का प्रभाव सम्पूर्ण गुरू मंडल(गुरू और उसके चन्द्रमा) पर पडा़ है। ये ज्वालामुखी गुरू के चुंबकिय क्षेत्र मे पाये जाने वाले पदार्थ का मुख्य श्रोत है। इस ज्वालामुखी से उत्सर्जीत पदार्थ गंधक(सल्फर),आक्सीजन, सोडीयम गुरू से लाखो किमी दूर तक पाये गये हैं।
वायेजर १ द्वारा ली गयी युरोपा की तस्वीरो मे एक दूसरे को काटती रेखाओ जैसी संरचनाओ का पता चला था। प्रारंभ मे विज्ञानीयो को ये भूकंप द्वारा निर्मीत गहरी दरारे जैसी प्रतित हुयी थी। वायेजर २ द्वारा ली तस्वीरो ने इस रहस्य को और गहरा कर दिया। एक विज्ञानी के अनुसार ये किसी पेन द्वारा खींची गयी रेखाये जैसी है। संभावना है कि ज्वारीय प्रभाव की उष्णता के कारण युरोपा आंतरिक रूप से सक्रिय है, ये ज्वारीय प्रभाव आयो की तुलना मे दहाई है। युरोपा का भूपृष्ठ पतला है लगभग ३० किमी मोटी बर्फ से बना है, जो शायद ५० किमी गहरे समुद्र पर तैर रही है।
गीनीमेड सौरमंडल का सबसे बड़ा चन्द्रमा है, जिसका व्यास ५,२७६ किमी है। इसकी सतह पर दो तरह के मैदान दिखायी दिये है एक क्रेटर से भरा हुआ है दूसरा पहाड़ो से। विज्ञानीयो को इससे प्रतित होता है कि गीनीमेड का बर्फीला भूपृष्ठ सर्वत्र व्याप्त विवर्तनिक प्रक्रियाओ से उतपन्न तनाव से प्रभावित है।
कैलीस्टो का भूपृष्ठ काफी पूराना और उल्कापातो से बने क्रेटरो से भरा पड़ा है। सबसे बड़ा क्रेटर बर्फ से भर गया है।
गुरू के आसपास एक धूंधला और पतला वलय पाया गया है, जिसका बाहरी व्यास १२९,००० किमी और चौडा़ई ३०,००० की मी है। दो नये चन्द्रमा एड्रास्टी और मेटीस इस वलय से ठीक बाहर की ओर पाये गये। एक तीसरा नया चन्द्रमा थेबे ,अमाल्था औरआयो के बीच मे पाया गया।
गुरू के वलय और चन्द्रमा गुरू के चुंबकिय प्रभाव के जाल मे फंसे एक घने इलेक्ट्रान और आयन के एक बड़े विकीरण पट्टे के मध्य है। ये कण और चुंबकिय क्षेत्र एक जोवीयन चुंबकिय वातावरण बनाते है जो कि सूर्य की ओर ३० लाख से ७० लाख किमी तक और शनि की ओर ७५०० लाख किमी तक विस्तृत है।
यह चुंबकिय वातावरण गुरु के साथ ही घुर्णन करता है, यह वातावरण आयो से हर सेकंड १ टन पदार्थ उड़ा ले जाता है। यह पदार्थ एक अंगूठी की शक्ल मे आयनो का एक बाद्ल बनाता है जो पराबैंगनी किरणो मे चमकता है। इस वलय मे भारी आयन बाहर की तरफ जाते है, जिसके दबाव से जोवीयन चुंबकिय क्षेत्र अपेक्षित आकार से दूगना फैल जाता है।
आयो इस चुंबकिय क्षेत्र मे परिक्रमा करते हुये एक विद्युत निर्माण संयत्र का कार्य करता है, इसके व्यास के साथ ४००,००० वोल्ट और ३० लाख एम्पीयर की विद्युत धारा प्रवाहीत होती है जो कि इस ग्रह के चुंबकिय क्षेत्र मे प्रभा का निर्माण करती है।

शनि का चन्द्रमा आयपेट्स

शनि का चन्द्रमा आयपेट्स

शनि का चन्द्रमा  टाईटन

शनि का चन्द्रमा टाईटन

शनि का चन्द्रमा  एन्सेलडस

शनि का चन्द्रमा एन्सेलडस

शनि की सैर
२५ अगस्त १९८१ को शनि के सबसे समीप आया था। शनि के पिछे रहते हुये वायेजर २ ने शनि के बाहरी वातावरण के तापमान और घन्तव का मापन किया। वायेजर ने बाहरी सतह पर (७ किलो पास्कल) पर तापमान ७० केल्विन(-२०३ डीग्री सेल्सीयस) और अंदरूनी तह पर (१२० कीलो पास्कल) पर १४३(-१२० डीग्री सेल्सीयस) केल्विन तापमान पाया। उत्तरी ध्रुव पर तापमान १० केल्विन कम था, जो की मैसम के अनुसार बदल सकता है।

शनि

शनि

यह हमारे सौर मण्डल मे गुरु के बाद दूसरा सबसे बडा ग्रह है। यह रात मे आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन इसके सुंदर वलय सिर्फ दूरबीन से देखे जा सकते है। यह ग्रह मुख्यतः हायड्रोजन और हिलीयम से बना है। शनी के वलय बर्फ के टुकडो से बने है जिनका आकार एक छोटे सिक्के से लेकर कार के आकार तक है। पृथ्वी से ली गयी तस्वीरो मे हम सिर्फ शनि का दायां हिस्सा और उसपर उसके वलयो की छाया ही देख पाते है। शनि ग्रह के चारों ओर भी कई छल्ले हैं। यह छल्ले बहुत ही पतले होते हैं। हालांकि यह छल्ले चौड़ाई में २५०,००० किलोमीटर है लेकिन यह मोटाई में एक किलोमीटर से भी कम हैं। इन छल्लों के कण मुख्यत: बर्फ और बर्फ से ढ़के पथरीले पदार्थों से बने हैं। वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है जिससे पता चलता है कि शनि ग्रह के छल्ले हो सकता है ४-५ अरब वर्ष पहले बने हों जिस समय सौर प्रणाली अपनी निर्माण अवस्था में ही थी। पहले ऐसा माना जाता था कि ये छल्ले डायनासौर युग में अस्तित्व में आए थे। अमेरिका में वैज्ञानिकों ने नासा के केसनी अंतरिक्ष यान द्वारा एकत्र आँकड़ों का इस्तेमाल करते हुए एक अध्ययन किया और पाया कि शनि ग्रह के छल्ले दस करोड़ साल पहले बनने के बजाय उस समय अस्तित्व में आए जब सौर प्रणाली अपनी शैशवावस्था में थी। साइंस डेली में यह जानकारी दी गई है। १९७० के दशक में नासा के वायजर अंतरिक्ष यान और बाद में हब्बल स्पेस टेलिस्कोप से जुटाए गए आँकड़ों से वैज्ञानिक यह मानने लगे थे कि शनि ग्रह के छल्ले काफी युवा हैं और संभवत: यह किसी धूमकेतु के बड़े चंद्रमा से टकराने के कारण पैदा हुए हैं। केसिनी अल्ट्रावायलेट इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ के मुख्य जाँचकर्ता प्रोफेसर लैरी एस्पोसिटो के अनुसारु हमें यह पता चला है कि ये छल्ले कुछ समय पहले ही अस्तित्व में नहीं आए हैं। वे संभवत: हमेशा से थे लेकिन उनमें लगातार बदलाव आता रहा और वे कई अरबों साल तक अस्तित्व में रहेंगे पृथ्वी शनि की तुलना मे सूर्य के काफी निकट है इसलिये पृथ्वी से शनि का दिन वाला हिस्सा ही दिखायी देता है।

शनि की सैर के बाद वायेजर २ चल दिया युरेनस की ओर

युरेनस की सैर
२४ जनवरी १९८६ को वायेजर २ युरेनस के निकट ८१,५०० किमी की दूरी पर पहुंचा। वायेजर ने युरेनस के १० नये चन्द्रमा ढुंढ निकाले। युरेनस के वातावरण का अध्यन किया और उसकी ९७.७७ डीग्री झुके अक्ष का मापन और वलयो का अध्यन किया।
युरेनस सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा २.८ करोड़ किमी की दूरी से ८४ वर्षो मे करता है। युरेनस पर एक दिन १७ घंटे अ४ मिनिट का होता है।

युरेनस का अक्ष सूर्य की परिक्रमा प्रतल से ९० डीग्री अंश पर झुका हुआ है जो उसे अन्य सभी ग्रहो से अलग करता है। इस वजह से उसके ध्रुव लम्बे समय सूर्य के ठीक सामने और पिछे रहते है। सबसे आश्चर्य वाली खोज यह रही कि युरेनस का चुम्बकिय अक्ष घुर्णन अक्ष से ६० डीग्री का झुकाव लिये हुये है। युरेनस पर चुम्बकिय क्षेत्र की उपस्थिती वायेजर २ से पहले ज्ञात नही थी। इस क्षेत्र का प्रभाव पृथ्वी के बराबर ही है। युरेनस पर विकीरण का पटटा शनि के जैसा ही पाया गया।
वायेजर द्वारा खोजे गये नए १० चन्द्रमाओ के साथ युरेनस के कुल चन्द्रमाओ की संख्या १५ हो गयी। अधिकतर नये चन्द्रमा छोटे है, जिसमे से सबसे बडे़ का व्यास १५० किमी है।

युरेनस

युरेनस

युरेनस के वलय

युरेनस के वलय

मिरांडा नामक चन्द्रमा जो पांच बडे़ चन्द्रमाओ मे से सबसे अंदरूनी है, सौर मंडल का सबसे विचीत्र पिंड है। इस चन्द्र्मा पर २० किमी गहरी नहरे पायी गयी है जो भूगर्भीय हलचलो से बनी है। इसका भूपृष्ठ नये और पूराने का एक मिश्रण है। युरेनस के सभी पांच चन्द्रमा शनि के चन्द्र्माओ की तरह बर्फ और पत्थरो से बने है। इनमे से एरीयल सबसे चमकदार है, टाईटेनीयापर काफी बडी दरारे है, कैन्यान्स पर भूकंपीय घटनाओ के निशान है जबकि ओबेरान औरअम्ब्रीयल पर भूकम्प कम या नही आते है।
युरेनस के नौ वलय है और ये वलय शनि और गुरू के वलय से अलग है। ये वलय काफी नये है , युरेनस की उम्र से इनकी उम्र काफी कम है। ये वलय किसी चन्द्रमा के टूट जाने से बने है।

नेपच्युन के ओर
२५ अगस्त १९८९ को वायेजर नेपच्युन के पास पहुंचा। इस यान ने नेपच्युन के चन्द्रमा ट्रीटान की भी सैर की।
इस यान ने नेपच्युन पर गुरू के विशाल लाल धब्बे के जैस विशाल गहरा धब्बा देखा। पहले इसे एक बादल समझा जाता था, लेकिन असल मे यह बादलो मे एक बड़ा छेद है।

नेपच्युन

नेपच्युन

नेपच्युन का चन्द्रमा ट्राईटन

नेपच्युन का चन्द्रमा ट्राईटन

सौर मंडल के बाहर: सूदूर अंतरिक्ष मे

वायेजर २ का ग्रहीय अभियान नेपच्युन के साथ खत्म हो गया था। अब यह अंतरखगोल अभियान मे तब्दिल हो गया है। वायेजर अभी भी हीलीयोस्फीयर के अंदर है। इस यान पर वायेजर १ की तरह एक सोने की ध्वनी चित्र वाली डीस्क रखी है। यह किसी अन्य बुद्धीमान सभ्यता के लिये पृथ्वीवासीयो का संदेश है। इस डीस्क पर पृथ्बी और उसके जीवो की तस्वीरे है।इस पर पृथ्वी पर की विभिन्न ध्वनीयां जैसे व्हेल की आवाज, बच्चे के रोने की आवाज, समुद्र के लहरो की आवाज है।
५ सीतम्बर २००६ को वायेजर सूर्य से ८० खगोलीय इकाई की दूरी पर था, इसकी गति एक वर्ष मे ३.३ खगोलीय ईकाई है। अभी यह प्लूटो से उसके सूर्य की दूरी के दूगनी दूरी पर स्थित है और सेडना से भी बाहर स्थित है। लेकिन अभी भी यह एरीस क्षुद्र ग्रह के पथ के अंदर है।
वायेजर २ २०२० तक पृथ्वी तक संकेत भेजता रहेगा।
उर्जा की बचत और इस यान का जिवन काल बढाने के लिये विज्ञानीयो ने इसके उपकरण क्रमशः बंद करने का निर्णय लिया है।
१९९८: स्केन प्लेटफार्म और पराबैंगनी निरिक्षण बंद कर दिया गया
२०१२ : इसके एंटीना को घुमाने की प्रक्रिया(Gyro Operation) बंद कर दिया जाएगा
२०१२ : DTR प्रक्रिया बंद कर दी जायेगी।
२०१६ : उर्जा को सभी उपकरण बांट कर उपयोग करेंगे।
२०२० : शायद उर्जा का उत्पादन बंद हो जायेगा

वायेजर श्रंखला इसके साथ समाप्त होती है, अगले लेख पायोनियर पर होंगे