Saturday, June 18, 2011

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 6: नाभिकीय संश्लेषण युग

प्रसार का अगला चरण 1 सैकैण्ड से 100 सैकैण्ड तक चला, इसे ‘नाभिकीय–संश्लेषण युग’ (न्यूक्लीय सिन्थैसिस एरा) कहते हैं। प्रोटॉन तो इस नाभिकीय संश्लेषण युग के पूर्व ही बन चुके थे जो हाइड्रोजन के नाभिक बने। इन निन्न्यानवे सैकैण्डों के नाभिकीय संश्लेषण युग में आज तक मौजूद लगभग सारा हाइड्रोजन, हीलियम, भारी हाइड्रोजन आदि तथा अल्प मात्रा में लिथियम के नाभिक बने।


पुराने प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार इस काल में जैसा भी प्रसार हुआ उससे आज का समांगी ब्रह्माण्ड नहीं निकलता। तथा उसके अनुसार यदि आज ब्रह्माण्ड समतल है तो प्रारम्भ के उस क्षण में भी उसे समतल होना आवश्यक था जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता। इसी तरह आज जो विकिरण का प्रसार है वह भी समांगी है। इसे भी नहीं समझाया जा सकता। इसे ‘क्षितिज समस्या’ भी कहते हैं। पुराने प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार उस अत्यधिक उष्ण तथा घनी स्थिति में कुछ विचित्र कणों तथा पिण्डों का निर्माण होना चाहिये था। और उनमें से कुछ यथा ‘एक ध्रुवीय चुम्बक’, ‘ग्रैविटिनोज़’, एक्सिआयन्स आदि आदि के अवशेष तो मिलना चाहिये जो नहीं मिलते। पुराना प्रसारी सिद्धान्त इसे समझा नहीं पा रहा था।

एलन गुथ का ‘स्फीति सिद्धान्त’
इस तरह की समस्याओं का समाधान करने के लिये 1979 में एलन गुथ ने ‘स्फीति सिद्धान्त’ को पुराने प्रसारी सिद्धान्त में जोड़ा। सिद्धान्त कहता है कि लगभग 1028 कैiल्वन से 1027 कैल्वियन तापक्रम के बीच ब्रह्माण्ड की स्थिति में परिवर्तन होता है जिसे ‘सममिति विभंजन’ (सिमिट्री ब्रेकिंग) कहते हैं। इस समय जो तीन मूलभूत बल एक होकर कार्य कर रहे थे, उनमें से ‘सशक्त नाभिक बल’ ‘दुबर्ल नाभिक बल’ तथा ‘विद्युत चुम्बकीय बलों’ से अलग हो जाता है। इसके फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त हुई। वास्तव में हुआ यह था कि जब तापक्रम लगभग 1028 या 1027 कैल्वियन पहुंचा तब यह अपेक्षित सममिति विभंजन नहीं हुआ।

यह कुछ वैसा ही है कि जब हम जल को ठण्डा करके शून्य डिग्री तक ले जाते हैं तब भी बर्फ नहीं जमती। जब हम उस पानी को शून्य से कुछ डिग्री नीचे तक ले जाते हैं तब पानी एकाएक बर्फ बनने लगता है और तापक्रम शून्य शतांश हो जाता है। इसी तरह ब्रह्माण्ड का तापक्रम 1027 कै से भी कम होता गया और फिर एकदम से कोई 10–33 सैकेण्ड पर सममिति विभंजन हुआ। तापक्रम फिर 1027 कै हो गया, अत्यधिक ऊर्जा मुक्त हुई और प्रसार का वेग अत्यधिक बढ़ गया और बह्माण्ड की त्रिज्या लगभग 1050 (कुछ लाख खरब खरब खरब खरब) गुनी बढ़ कर 1017 से. मी. (एक हजार अरब कि. मी.) हो गई। तापक्रम भी तेजी से कम हुआ।

फिर जब 10–12 सैकैण्ड पर तापक्रम लगभग 1015 (दस लाख अरब) कैल्वियन पहुंचा तब दुबर्ल नाभिक बल तथा विद्युत चुम्बकीय बल भी अलग हो गए। फिर 10–2 सैकैण्ड पर तापक्रम 1012 कै लगभग पहुंचा तब क्वार्क हेड्रानों में बदल गये। प्रोटानों तथा एन्टी प्रोटानों ने मिलकर अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न की तथा पिछले युगों में जो प्रोटान एन्टीप्रोटानों की तुलना में अधिक बन गये थे, वे ही बचे। ( इन नाभिकों के साथ इलैक्ट्रॉनों को जुड़ने में अनेक वर्ष लगे जब तक कि ब्रह्माण्ड इतना शीतल नहीं हो गया कि इलैक्ट्रान जुड़ सकें। इलैक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर तीव्र वेग से परिक्रमा करते हैं। उनकी नाभिक से स्थिति उनकी ऊर्जा के अनुसार उचित दूरी पर स्थित ऊर्जास्तर चक्र में होती है। ज्यों ज्यों बढ़ते तापक्रम या अन्य कारणों से इलैक्ट्रॉनों की ऊर्जा बढ़ती जाती है, उनके ऊर्जास्तर चक्र का व्यास बढ़ता जाता है। और एक सीमा के बाद इलैक्ट्रॉन अपने नाभिक से मुक्त होकर स्वतन्त्र हो जाते हैं। एक तापक्रम के नीचे ही इलैक्ट्रॉन प्रोटानों के आकर्षण में बंध सकते हैं।) कुल मिलाकर इस युग में इतना अधिक विस्तार (1050 गुना) इतने कम समय (10–33 सैकैण्ड) में हुआ कि इसे ‘स्फीति युग’ कहते हैं। ब्रह्माण्ड की इस स्फीति के समक्ष हमारी मुद्रास्फीति तो नगण्य ही कहलाएगी।

इस आश्चर्य जनक स्फीति के क्या परिणाम हुए? पहला, सारा प्रसार इतनी तीव्रता से हुआ (प्रकाश वेग से भी अधिक) कि उस काल का ब्रह्माण्ड समांगी बना। दूसरा, इस तीव्र प्रसार के कारण जो भी वक्रता थी वह खिंचकर सीधी हो गई अथार्त ब्रह्माण्ड समतलीय हो गया। तीसरा, इस तीव्र विस्तार में जो भी विचित्र कण या पिण्ड थे उनकी संख्या भी नगण्य हो गई।

ब्रह्माण्ड का प्रसार होता गया, तापक्रम कम होता गया। महान विस्फोट के एक सैकैण्ड बाद तक जब तापक्रम 1010 (दस अरब) कै था तब प्रोटान तथा न्यूट्रान का अनुपात छ हो गया तथा समांगी दिक की त्रिज्या का प्रसार लगभग 1019 से. मी. (करोड़ करोड़ किमी) हो गया। लगभग 100 सैकैण्ड बाद तापक्रम एक अरब कै. था, तथा इलैक्ट्रॉनों एवं पॉज़िट्रॉनों ने मिलकर पुन: अत्यधिक फोटॉन उत्पन्न किये। फोटानों तथा न्यूट्रानों ने मिलकर ड्यूट्रान उत्पन्न किये। तथा ड्यूट्रानों ने मिलकर हीलियम बनाई। इस सबके परिणाम स्वरूप, उस समय ब्रह्माण्ड में 75 प्रतिशत हाइड्रोजन तथा 25 प्रतिशत हीलियम थी। इस प्रक्रिया को बैर्योजैन्सिस कहते हैं।

इन हल्के तत्वों के नाभिकों के निर्माण की व्याख्या ‘फ्रीडमान–लमेत्र’ के सूत्र नहीं समझा सके थे। तब 1948 में जार्ज गैमो तथा रेल्फ एल्फर ने उन सूत्रों पर क्वाण्टम सिद्धान्त लगाकर उनका परिष्कार किया तथा इनकी समुचित व्याख्या की और इस तरह प्रसारी–सिद्धान्त पर आए संकट को टाला। नाभिकीय संश्लेषण भी प्रसारी–सिद्धान्त का एक नया आधार स्तम्भ बना।

ताजे अवलोकनों से ज्ञात हुआ है कि दृश्य–ब्रह्माण्ड में हाइड्रोजन की मात्रा 75 प्रतिशत है, हीलियम की 24 प्रतिशत तथा अन्य की मात्रा 1 प्रतिशत। यह जार्ज गैमो आदि द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त के अनुकूल है तथा उसकी पुष्टि करती है। किन्तु यह सिद्धान्त भारी तत्वों के निर्माण के विषय में सहीं नहीं उतरे। अन्य भारी तत्वों यथा काबर्न, आक्सीजन, नाइट्रोजन, लोहा, ताम्बा, सोना इत्यादि का निर्माण तारों के जन्म–मृत्यु चक्र से सम्बंधित है। फ्रैड हॉयल आदि ने इन भारी तत्वों के निर्माण को ‘सुपरनोवा’ के आधार पर समझाया था।