Saturday, June 18, 2011

कुछ वैज्ञानिक परिकल्पनाएं

परिकल्पनाएं आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का आधार हैं. आज का विज्ञान जिन सिद्धांतों पर टिका हुआ है वे सिद्धांत प्रारम्भ में परिकल्पनाओं के रूप में जन्मे थे.

जब उन परिकल्पनाओं को प्रयोगों और गणितीय रूप में परखा गया और उनकी सत्यता सिद्ध हुई तो वे सिद्धांत बने. प्रमुख परिकल्पनाएं और सिद्धांत जिन पर आधुनिक विज्ञानं की नींव टिकी है उनमें शामिल हैं हाइगेन्स की तरंग संचरण सम्बन्धी परिकल्पना, प्लैंक की प्रकाश फोटोन की परिकल्पना, आइन्स्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत, गुरुत्वीय बल के कारक ग्रैविटान की परिकल्पना, ब्लैक होल की परिकल्पना इत्यादि. इनमें से बहुतों को सिद्धांत के रूप में मान्यता मिल चुकी है और शेष की पुष्टि न होने के कारण मात्र परिकल्पना के रूप में लिया जाता है. आशा यह की जाती है कि भविष्य में इनकी सत्यता या असत्यता सिद्ध की जा सकेगी.

आधुनिक विज्ञान में अनगिनत प्रकार की परिकल्पनाएं होने के बावजूद ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जहाँ की घटनाओं या संभावित घटनाओं के बारे में व्याख्या करने के लिए किसी प्रकार की कोई परिकल्पना नहीं की गई है. वे क्षेत्र अभी तक वैज्ञानिक प्रगति से अछूते हैं और विज्ञान को वहां प्रवेश करने के लिए कल्पना रुपी द्वार की सख्त आवश्यकता है. ऐसी ही कुछ परिकल्पनाएं यहाँ प्रस्तुत हैं :

पहली परिकल्पना समय (टाइम) के बारे में है. कुछ विज्ञान कथाओं में टाइम मशीन की संकल्पना मिलती है. जिसमें एक मशीन के सहारे कोई व्यक्ति भूत या भविष्य में पहुँच जाता है. वहां वह उन घटनाओं का अंग बन जाता है, जो उस समय घटित हो रही हैं. प्रश्न उठता है क्या इस तरह की मशीन बनाना संभव है? इसके लिए एक और प्रश्न पर विचार करना होगा. मान लिया कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने दादा की हत्या कर देता है. स्पष्ट है की अब उसका पैदा होना भी असंभव है. लेकिन अगर वह पैदा नहीं होगा तो वर्तमान में उसका अस्तित्व भी नहीं रह जायेगा. यह विरोधाभास सिद्ध करता है की टाइम मशीन का बनना असंभव है. लेकिन अगर हम और गहराई से विचार करें? आइंस्टाइन के द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण के अनुसार पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है.(E=mc2) पदार्थ क्या है? स्पेस में पदार्थ वह आकृति है जो चार विमाओं द्वारा निर्धारित होती है. ये चार विमायें हैं, लम्बाई, चौडाई, गहराई और समय.

दूसरे शब्दों में यदि कोई वस्तु चार विमायें रखती है तो उसे ऊर्जा में बदला जा सकता है. अगर इस ऊर्जा में थोडी कमी करके या बढोत्तरी करके वापस पदार्थ में बदला जाए तो तो उत्पन्न पदार्थ का द्रव्यमान मूल पदार्थ से कम या ज़्यादा होगा. इसी दिशा में यदि विचारों को बढाया जाए तो टाइम मशीन का बनना संभव है. इसके लिए समय को ऊर्जा में बदल कर उस ऊर्जा में कमी या बढोत्तरी करनी होगी. और फ़िर उसे वापस समय में परिवर्तित करना पड़ेगा. उस वक्त वह समय भूत या भविष्य में परिवर्तित हो जायेगा. लेकिन समस्या यह है की कोई वस्तु तभी ऊर्जा में बदल सकती है जब उसमें चारों विमायें हों. जबकि समय मात्र एक विमा है. यहाँ पर यह निष्कर्ष निकल सकता है की समय को वास्तविक ऊर्जा में तो नहीं बदला जा सकता, हाँ काल्पनिक ऊर्जा में ज़रूर बदला जा सकता है. और इस तरह भूत या भविष्य में पहुँचा जा सकता है. लेकिन ठीक उसी प्रकार मानो वहां पहुँचने वाला व्यक्ति कोई सपना देख रहा हो. सपने में ही वह व्यक्ति भूत या भविष्य की घटनाएं देख पायेगा लेकिन उनमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर पायेगा. इस प्रकार उपरोक्त विरोधाभास दूर हो जाता है.

दूसरी परिकल्पना द्रव्यमान ऊर्जा सम्बन्ध के बारे में है. यह तो सर्वविदित है की द्रव्यमान को ऊर्जा में और ऊर्जा को द्रव्यमान में परिवर्तित किया जा सकता है. नाभिकीय अभिक्रियाएँ तथा गामा फोटोनों से एलेक्ट्रोन तथा पाजिट्रोन बनना इसके उदाहरण हैं. द्रव्यमान ऊर्जा सम्बन्ध में एक नियम कार्य करता है जिसे द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षण के नाम से जाना जाता है. इस नियम के अनुसार ब्रह्माण्ड के समस्त द्रव्यमान तथा ऊर्जा का योग नियत है. दोनों एक दूसरे में परिवर्तित किए जा सकते हैं. लेकिन उनका कुल योग सदेव एक नियतांक होगा. प्रश्न उठता है कि इस नियतांक का मान क्या होगा? उदाहरण के लिए किसी रासायनिक अभिक्रिया में यदि २ ग्राम तथा ३ ग्राम के दो अभिकारक लिए जाएँ तो अभिक्रिया के बाद बने कुल उत्पादों का द्रव्यमान ५ ग्राम होगा. यहाँ पर नियतांक का मान ५ ग्राम है. इसी प्रकार ब्रह्माण्ड के समस्त द्रव्यमान तथा ऊर्जा के योग के नियतांक का मान भी निश्चित संख्या होना चाहिए. इस बारे में मेरी परिकल्पना है कि इस नियतांक का मान शून्य होगा. कैसे? इसके लिए पहले कुछ छोटे निकायों (सिस्टम्स) को देखना होगा. किसी उदासीन परमाणु में कुल आवेशों का मान शून्य होता है. न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार किसी वस्तु पर बल लगाने पर उतना ही बल विपरीत दिशा में उत्पन्न हो जाता है. अर्थात बल का योग भी शून्य होता है. इस प्रकार विभिन्न निकायों का अध्ययन करने पर अधिकतर भौतिक राशियों का कुल मान शून्य ही आता है. अतः अगर ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े निकाय की बात करें तो इसमें द्रव्यमान - ऊर्जा का योग शून्य ही आना चाहिए. ऐसा इसलिए भी संभव है कि द्रव्यमान और ऊर्जा अलग अलग भौतिक राशियाँ हैं. इसलिए इनका कुल योग तभी संभव है जबकि इस योग का मान इकाई रहित हो जाए. और केवल शून्य संख्या इस कसौटी पर खरी उतरती है.

और अब आते हैं तीसरी परिकल्पना पर जो एंटी मैटर अर्थात प्रति पदार्थ से सम्बंधित हैं. प्रति कणों की खोज बहुत पहले ही हो चुकी है. और अब तक पाजिट्रान, एंटी प्रोटोन जैसे अनेक प्रतिकण खोजे जा चुके हैं. प्रकृति के प्रत्येक मूल कण का एक प्रतिकण अवश्य है. जो संपर्क में आने पर एक दूसरे को नष्ट कर डालते हैं. अगर मूल कणों का प्रति कण अस्तित्वा में है तो प्रति परमाणु, प्रति अणु और फिर प्रति पदार्थ (एंटी मैटर) भी अस्तित्व में होना चाहिये. लेकिन हम अभी तक कहीं भी प्रति पदार्थ के दर्शन नहीं कर सके हैं. क्यों? इसलिए क्योंकि ब्रह्माण्ड में समस्त स्थानों पर पदार्थ का फैलाव है. अगर इस बीच में कोई प्रति पदार्थ अस्तित्व में आएगा तो पदार्थ से टकराकर नष्ट हो जायेगा. इसलिए कोई ऐसा अलग दायेरा होना चाहिये जहाँ केवल प्रति पदार्थ हो, पदार्थ न हो. प्रश्न उठता है वह दायेरा, वह क्षेत्र कहाँ हो सकता है जहाँ प्रति पदार्थ यानी एंटी मैटर हो लेकिन पदार्थ (मैटर) न हो? स्पष्ट है की वह क्षेत्र एक ऐसा पूरक क्षेत्र (complementary Area) होगा जो हमारे इस अन्तरिक्ष से पूरी तरह अलग होगा. अब अन्तरिक्ष क्या है? चार विमाओं लम्बाई, चौडाई, और समय से निरूपित बिन्दुओं का समूह. इन्हीं बिन्दुओं द्बारा हम किसी पदार्थ और उसकी स्थिति को दर्शाते हैं. यहाँ पर हमें निर्देशांक ज्यामिति द्बारा लम्बाई, चौडाई और ऊंचाई तीनों के दो भाग मिलते हैं. धनात्मक (Positive) और ऋणात्मक (Negative) भाग. लेकिन आश्चर्य की बात है की समय का कोई नेगेटिव नहीं मिलता. तो क्या वास्तव में निगेटिव टाइम का कोई अस्तित्व नहीं है? लेकिन यह कैसे संभव है? जबकि ब्रह्माण्ड में हर चीज़ का एक ऋणात्मक भाग अस्तित्व में है. स्पष्ट है की ब्रह्माण्ड में एक ऐसा क्षेत्र हो सकता है जहाँ निगेटिव टाइम अस्तित्व में है. अगर ऐसा क्षेत्र है तो वह इस प्रकार का पूरक क्षेत्र होगा जहाँ तक हमारी या किसी अन्य पदार्थ की पहुँच असंभव होगी. तो फिर वहां क्या होगा? क्या प्रति पदार्थ वहीँ होगा? अगर ऐसा संभव है तो हमारे इस प्रश्न का जवाब मिल गया कि ब्रह्माण्ड में प्रति पदार्थ मौजूद है. जो एक अलग ही क्षेत्र में है. और वहां का समय हमारे समय का ऋणात्मक है. इस कारण इन दो क्षेत्रों का मिलना असंभव है. और इस तरह पदार्थ तथा प्रति पदार्थ अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं.

ये थीं कुछ वैज्ञानिक परिकल्पनाएं जो यदि सत्य सिद्ध हो जाएँ तो भौतिक विज्ञान की दुनिया को नई दिशाएँ दे सकती हैं.