Friday, December 9, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत : इतिहास और विकास

स्ट्रींग सिद्धांत जो कि भौतिकी के सभी बलों और कणो के व्यवहार को एकीकृत करने का दावा करता है, संयोगवश खोजा गया था। 1970 मे कुछ वैज्ञानिक एक ऐसे मूलभूत क्वांटम स्ट्रींग की संकल्पना पर कार्य कर रहे थे जिसका त्रिआयामी विस्तार सीमीत हो और उसकी ज्यादा छोटे घटको द्वारा व्याख्या संभव ना हो। यह अध्ययन मूलभूत बलों के एकीकरण से संबधित नही था, यह भौतिकीय संदर्भो मे नयी गणितीय चुनौती मात्र था।
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
पारंपरिक रूप से ऐसी स्ट्रींग की व्याख्या एक रेखा (सरल या वक्र) द्वारा अंतराल(Space) मे किसी समय पर उसकी स्थिति से की जा सकती है। यह स्ट्रींग किसी वलय के जैसे बंद या दो अंत बिन्दुओं के साथ खूली हो सकती है।
जैसे किसी कण के अंतर्भूत द्रव्यमान(mass) होता है, उसी तरह से स्ट्रींग के अंतर्भूत तनाव(Tension) होगा। जिस तरह से एक कण विशेष सापेक्षतावाद(Special Relativity) के नियमो से बंधा होता है उसी तरह से यह स्ट्रींग भी विशेष सापेक्षतावाद के नियमो से बंधी होगी। अंतत: हमे कणो की क्वांटम यांत्रिकी के तुल्य स्ट्रींग के लिये क्वांटम यांत्रिकी के नियम बनाने होंगे।

किसी स्ट्रींग मे अंतर्भूत तनाव की उपस्थिति का अर्थ है कि स्ट्रींग सिद्धांत मे स्वाभाविक रूप से द्रव्यमान का माप है, जो कि द्रव्यमान के आयामो के लिए आधारभूत कारक है। द्रव्यमान की उपस्थिति एक बिंदु पर ना हो कर एक रेखा मे है। इससे ऊर्जा के माप मे एक तंतुमय प्रभाव उत्पन्न होता है जोकि स्ट्रींग के दोलन के कारण होता है। एक कण बिंदु के रूप मे होता है, उसमे दोलन नही होने से द्रव्यमान स्थिर सा होता है। लेकिन स्ट्रींग के एक धागेनुमा संरचना होने से उसमे दोलन, या तरंग होती है, जिससे द्रव्यमान स्थिर नही होता है, यही दोलित द्रव्यमान उसकी ऊर्जा के माप मे एक महत्वपूर्ण तंतुमय प्रभाव उत्पन्न करता है।
बिना किसी गणना के साधारण अनुभव से कोई भी अनुमान लगा सकता है कि किसी क्वांटम स्ट्रींग(धागे) मे असंख्य भिन्न भिन्न दोलन विधियाँ हो सकती है, किसी संगीत उपकरण के तार की तरह। यह सभी दोलन विधियाँ उस स्ट्रींग के आसपास अपनी विशिष्ट दोलन आवृत्ती के अनुसार एक विशिष्ट द्रव्यमान का प्रभाव उत्पन्न करेंगी। इस प्रभाव के कारण एक ही स्ट्रींग अलग अलग आवृत्ती पर दोलन करने पर अलग अलग द्रव्यमान वाले कण की तरह व्यवहार करेगा। यह प्रभाव क्वांटम भौतिकी के कणो के चिड़ीयाघर मे इतने सारे कणो की व्याख्या करता है, ये सभी कण एक ही तरह की स्ट्रींग के ही भिन्न रूप है, अर्थात वे सभी एक ही तरह की स्ट्रींग से निर्मित है, केवल स्ट्रींग द्वारा भिन्न भिन्न आवृती पर दोलन के फलस्वरूप मे भिन्न भिन्न द्रव्यमान और ऊर्जा वाले कण की तरह व्यवहार कर रहे है।
यह व्याख्या कितनी आसान लगती है, सब कुछ कितना सरल है लेकिन इस व्याख्या ने कई नये अप्रत्याशित परिणाम सामने लाये। किसी स्ट्रींग को एक असंख्य बिंदु के समूह के रूप मे देखा जा सकता है जो एक अखण्ड धागे के रूप मे बंधे रहते है। इससे अनंत ’डीग्री आफ फ़्रीडम’ का जन्म होता है। असंख्य या अनंत हमेशा अप्रत्याशित, अनेपक्षित परिणाम देती है और किसी भी सिद्धांत मे इसकी उपस्थिति असुरक्षित होती है।
सापेक्षवादी स्ट्रींग का गणित पारंपरिक स्तर पर सीधा और सरल है ,लेकिन इसे क्वांटम स्तर पर ले जाने पर वैज्ञानिको ने पाया कि इस सिद्धांत के लिये काल-अंतराल(Space-Time) के कुल आयामो की संख्या विलक्षण रूप से 26 होना चाहीये। इसलीये क्वांटम स्ट्रींग का अस्तित्व 25 आयाम वाले अंतराल(3 की बजाय) तथा 1 समय आयाम मे हो सकता है। यह 26 आयामो की संख्या एक गणितीय तथ्य है, इसे किसी प्रयोग द्वारा निर्धारीत नही किया गया है। इस सिद्धांत की खोज का सारा उत्साह आयामो की संख्या के लिये 26 अंक के बेहुदा, बेतुके अनुमान से जाता रहा।
इस सिद्धांत द्वारा 26 आयामो के अनुमान के पश्चात इस सिद्धांत का एक और बेतुका गुण पाया गया कि यह सिद्धांत एक ऐसे कण के अस्तित्व को प्रस्तावित करता था ,जिसका द्रव्यमान काल्पनिक होना चाहिये। (काल्पनीक संख्या imaginary number : -1 के वर्गमूल के गुणांक वाली संख्या।) इस कण को टेक्यान(Tachyon) नाम दिया गया। इस कण के विचित्र गुणधर्म है, इसकी गति प्रकाशगति से प्रारंभ होती है, अन्य कणो के विपरीत इसकी ऊर्जा मे कमी के साथ इसकी गति मे वृद्धी होती है, जिससे यह प्रकाशगति से तेज होते जाता है।
इस सिद्धांत के राह मे रोड़े अभी दूर नही हुये थे कि इस सिद्धांत ने एक नया आश्चर्यजनक परिणाम दिया। टेक्यान के पश्चात, दोलन करती हुयी स्ट्रींग के आवृत्ती-वर्णक्रम(Frquency Spectrum) मे अगला कण स्पिन-2 का था, जिसका द्रव्यमान लुप्त होता था। एक द्रव्यमान रहित कण(0 द्रव्यमान) का कण , अत्याधिक दूरी तक बल का वहन कर सकता है। क्वांटम सिद्धांत मे प्रकृति के सभी मूलभूत बलो की सफल व्याख्या के लिए एक ऐसे ही कण की कमी थी जो कि लंबी दूरी तक बल का वहन कर सके अर्थात ग्रेवीटान। हम जानते है कि इसके पहले क्वांटम सिद्धांत की तकनिकी समस्याओं के कारण, ग्रेवीटान के क्वांटम सिद्धांत के साथ एकीकरण के सभी प्रयास असफल रहे थे। स्ट्रींग सिद्धांत ने मूलभूत बलो के एकीकरण की राह मे सबसे बड़ा रोड़ा दूर कर दीया था।
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
यह एक क्रांतिकारी खोज थी जिसने स्ट्रींग सिद्धांत को महत्वपूर्ण सिद्धांत बनाया। स्ट्रींग एक लंबाई मे होती है और बिंदु के जैसे नही होती है, इससे क्वांटम ग्रेवीटान सिद्धांत की सारी असंगतताये दूर हो जाती है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत मे कोई भी प्रक्रिया शून्य दूरी पर नही होती है। क्वांटम सिद्धांत मे किसी बिंदू कण के दो बिंदुकणो के बिखराव/टकराव के लिये एक निश्चित बिंदु (सींगुलरैटी) की आवश्यकता होती है। नीचे चित्र देंखे। कणो के बिखरने के इस बिंदु का क्षेत्रफल शून्य होता है और यह शून्य समीकरणो मे असंगतता उत्पन्न करता है। सरल शब्दो मे क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत मे शून्य दूरी पर ग्रेवीटान समीकरणो मे ∞ उत्पन्न करता था। इस असंगतता का कोई हल नही पाया गया था। स्ट्रींग सिद्धांत मे यह प्रक्रिया , एक बिंदु पर नही ,एक विश्व प्रतल मे होती है और सुस्पष्ट होती है। इस साधारण से तथ्य ने क्वांटम गुरुत्वाकर्षण को असंगत बनाने वाली ग्रेवीटान के बिखरने/टकराने की प्रक्रिया से सींगुलरैटी को हटा दिया था। इस महत्वपूर्ण व्याख्या ने 26 आयामो तथा टेक्यान जैसे बेतुके कण के अनुमानो के बावजूद इस सिद्धांत को गुरुत्वाकर्षण के अन्य बलो के साथ एकीकरण के सिद्धांत के लिये सबसे प्रभावी उम्मीदवार माना जाने लगा।
अगले भाग मे कितने स्ट्रींग सिद्धांत ?

स्ट्रींग सिद्धांत : परिचय

आवर्धन के स्तर     1.सामान्य स्तर - पदार्थ     2.आण्विक स्तर     3.परमाण्विक स्तर - प्रोटान, न्युट्रान और इलेक्ट्रान     4.परा-परमाण्विक स्तर - इलेक्ट्रान     5.परा-परमाण्विक स्तर - क्वार्क     6.स्ट्रींग स्तर
आवर्धन के स्तर 1.सामान्य स्तर - पदार्थ 2.आण्विक स्तर 3.परमाण्विक स्तर - प्रोटान, न्युट्रान और इलेक्ट्रान 4.परा-परमाण्विक स्तर - इलेक्ट्रान 5.परा-परमाण्विक स्तर - क्वार्क 6.स्ट्रींग स्तर
स्ट्रींग सिद्धांत के पिछे आधारभूत तर्क यह है कि मानक प्रतिकृति के सभी मूलभूत कण एक मूल वस्तु के भिन्न स्वरूप है : एक स्ट्रींग। सरल हिन्दी मे इसे एक महीन तंतु, एक धागे जैसी संरचना कह सकते है। लेकिन यह कैसे संभव है ?
सामान्यतः हम इलेक्ट्रान को को एक बिन्दु के जैसे मानते है जिसकी कोई आंतरिक संरचना नही होती है। एक बिंदु गति के अतिरिक्त कुछ भी क्रिया करने मे असमर्थ होता है। इसे शून्य आयामी संरचना( 0 dimension object) माना जाता है। लेकिन यदि स्ट्रींग सिद्धांत सही है और यदि हम इलेक्ट्रान को एक अत्यंत शक्तिशाली सुक्ष्मदर्शी(microscope) से देख पाये तो हम उसे एक बिंदु के जैसे नही एक स्ट्रींग के वलय अर्थात तंतु के वलय (Loop of String) रूप मे पायेंगे। यह तंतु एक आयाम की संरचना है, इसकी एक निश्चित लंबाई भी है। एक तंतु गति के अतिरिक्त भी क्रियायें कर सकता है, वह भिन्न तरीकों से दोलन कर सकता है। यदि एक तंतु वलय एक विशेष तरीके से दोलन करे तो कुछ दूरी पर हम यह नही जान पायेंगे की वह एक इलेक्ट्रान बिंदू है या एक तंतु वलय। लेकिन वह किसी और तरह से दोलन करे तो उसे फोटान कहा जा सकता है, तीसरी तरह से दोलन करने पर वह क्वार्क हो सकता है। अर्थात एक तंतु वलय भिन्न प्रकार से दोलन करे तो वह सभी मूलभूत कणो की व्याख्या कर सकता है। यदि स्ट्रींग सिद्धांत सही है, तब समस्त ब्रह्माण्ड कणो से नही तंतुओ से बना है।

शायद स्ट्रींग सिद्धांत के बारे मे सबसे विचित्र यह है कि यह आसान सा तथ्य कार्य करता है। मानक प्रतिकृति(Standard Model) मे छोटे से बदलाव के साथ ही उसे स्ट्रींग सिद्धांत मे बदला जा सकता है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि आज तक एक भी प्रायोगिक प्रमाण नही है, जो यह कह सके कि स्ट्रींग सिद्धांत ब्रह्माण्ड की सही व्याख्या करता है। इसके पीछे एक संभावित कारण यह है कि यह सिद्धांत अभी भी विकास की अवस्था मे है, यह अभी पूरी तरह से परिपक्व नही हुआ है। हम इस सिद्धांत के टुकड़ो मे जानते है लेकिन अभी पूर्ण तस्वीर बनना शेष है। इस कारण से हम निश्चित अनुमान नही कर सकते है। हाल के कुछ वर्षो मे इस सिद्धांत पर कार्य की गति मे एक त्वरण आया है और हम इस सिद्धांत को ज्यादा बेहतर रूप से जानते है।
स्ट्रींग सिद्धांत निम्नलिखित प्रश्नो का उत्तर देने का प्रयास करता है:
  1. चारों मूलभूत बलों का श्रोत क्या है?
  2. प्रकृति को ढेर सारे मूलभूत कणों की आवश्यकता क्यों है ?
  3. कणों के पास द्रव्यमान और आवेश क्यों होता है?
  4. हम चार आयाम वाले काल-अंतराल मे क्यों है ?
  5. काल-अंतराल और गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति क्या है?
क्या है स्ट्रींग ?
बंद स्ट्रींग और खुली स्ट्रींग
बंद स्ट्रींग और खुली स्ट्रींग
सामान्यत: इलेक्ट्रान के जैसे मूलभूत कणो को बिंदु के जैसे शून्य आयाम की संरचना माना जाता है। मूलभूत स्ट्रींग एक आयामी संरचना होती है। इनकी मोटाई नही होती है लेकिन लंबाई होती है, जो कि 10 -33 सेमी के तुल्य होती है।[10 -33 सेमी अर्थात दशमलव बिंदू के पश्चात 32 शून्य और 1]। सामान्यत: हम जो भी मापन करते है उसकी तुलना मे यह अत्यंत लघु है, यह इतनी छोटी संरचना है कि यह समस्त व्यवहारिक कारणो से बिंदु कणो के जैसे लगती है। लेकिन उनके स्ट्रींग अथवा तंतुनुमा व्यवहार के महत्वपूर्ण निहितार्थ को हम अब देखने जा रहे है।
ये स्ट्रींग/ततुं खुले या बंद हो सकते है। जब यह काल अंतराल मे गति करते है तब एक कल्पित सतह ’विश्वप्रतल(Worldsheet)’ का निर्माण करते हैं।
स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण :ग्रेवीटान स्ट्रींग
स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण :ग्रेवीटान स्ट्रींग
इस स्ट्रींग की कुछ विशिष्ट स्पंदन विधियाँ होती है जो उसके विभिन्न गुणधर्मो जैसे द्रव्यमान, स्पिन को निर्धारित करती हैं। इस सिद्धांत का आधार यह है कि हर स्पंदन विधि एक सुनिश्चित मूलभूत कण के क्वांटम गुणधर्मो को जन्म देती है, निर्धारित करती है। यह एक अंतिम एकीकरण है जिसमे सभी मूलभूत कणो को एक ही वस्तु से समझा जा सकता है ,जिसे स्ट्रींग कहते है। इसे किसी वायोलीन के तार से उत्पन्न विभिन्न ध्वनियों के जैसा माना जा सकता है। वायोलीन का एक ही तार विभिन्न ध्वनीयों को उत्पन्न करता है। स्ट्रींग की स्पंदन विधियाँ वायोलीन की ध्वनियों की तरह है, जिसमे हर मूलभूत कण इन ध्वनीयों मे किसी एक ध्वनी से संबधित होता है।
उदाहरण के लिए एक बंद स्ट्रींग को लेते है जो दिखाये गये चित्र के जैसा है। इस की स्पंदन विधी स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण ग्रेवीटान के जैसी है, जो गुरुत्वाकर्षण बल का वाहक कण है। स्ट्रींग सिद्धांत की विशेषता है कि यह गुरुत्वाकर्षण का भी मूलभूत बलों के रूप मे समावेश करता है। स्टैण्डर्ड माडेल(मानक प्रतिकृति) गुरुत्वाकर्षण का समावेश नही करती है।
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो/स्ट्रींगों के मध्य प्रतिक्रियायें
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो/स्ट्रींगों के मध्य प्रतिक्रियायें
एकाधिक स्ट्रींग जुड़कर और अलग होकर प्रतिक्रिया करती है। उदाहरण के लीये दो बंद स्ट्रींग जुड़कर एक बंद स्ट्रींग का निर्माण करे तो यह कुछ चित्र मे दिखाये अनुसार होगा। ध्यान दें कि इस प्रतिक्रिया का ’विश्वप्रतल’ एक सपाट सतह होगा। यह प्रक्रिया स्ट्रींग सिद्धांत का एक और महत्वपूर्ण गुणधर्म दर्शाती है, इसमे क्वांटम सिद्धांत की तरह अनंत (∞– infinity) नही आता है। क्वांटम कण भौतिकी मे इस तरह की प्रतिक्रियाये शून्य दूरी पर होती है, जिसे सींगुलरैटी भी कहते है। सींगुलरैटी द्वारा समीकरणो मे ∞ का प्रादुर्भाव होता है। चित्र मे यह स्थिती तीन विश्वरेखाओं के मिलाप बिंदु द्वारा प्रदर्शित है। कण भौतिकी के समीकरण उच्च ऊर्जा पर इस बिंदु के फलस्वरूप कार्य करना बंद कर देते है अर्थात उनके उत्तर मे आना शुरू हो जाता है।
दो बंद स्ट्रींगो का एकीकरण और अलगाव
दो बंद स्ट्रींगो का एकीकरण और अलगाव
क्वांटम व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory)
यदि हम दो मूल बंद स्ट्रींगों को एक साथ जोड़े, तब हम ऐसी प्रक्रिया मीलती है जिसमे दो बंद स्ट्रींग एक अस्थायी मध्यवर्ती बंद स्ट्रींग बनाती है, जो बाद मे दो बंद स्ट्रींगो मे बंट जाती है। यह प्रक्रिया साथ वाले चित्र मे दर्शायी गयी है। यह प्रक्रिया व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory) समझने के लिए आवश्यक है।
क्वांटम यांत्रिकी मे, व्यतिक्रम सिद्धांत कुछ सन्निकटिकरण प्रणालीयों का समुच्चय(set of approximation schemes), है जो जटिल क्वांटम तंत्र को सरल तंत्र के रूप मे वर्णित करता है। यह गणितिय व्यतिक्रम सिद्धांत पर ही आधारित है।
व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory) के अनुसार क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना के लिए उच्च स्तर क्वांटम प्रक्रियाओं के योगदानों को जोड़ा जाता है। जब यह योगदान लघु से लघु होते जाते है तथा क्वांटम प्रक्रियाओं का स्तर बढते जाता है , तब व्यतिक्रम सिद्धांत के परिणाम बेहतर होते जाते है। इस स्थिति मे हमे कुछ प्रथम आकृतियों की गणना से ही सटिक परिणाम प्राप्त होते है। स्ट्रींग सिद्धांत मे उच्च स्तर की आकृतियां विश्वप्रतल मे निर्मित वलयों की संख्या से संबधित होती है।
क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना
क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना
व्यतिक्रम सिद्धांत के हर स्तर के लिए स्ट्रींग सिद्धांत मे एक ही आकृति होती है। कण भौतिकी मे उच्च स्तरों के लिए आकृतियों की संख्या चरघातांकी(exponentially) रूप से बढते जाती है। लेकिन ऐसी आकृतियों से जिसमे दो से ज्यादा वलय हों परिणाम प्राप्त करना जटिल होते जाता है क्योंकि इससे जुड़ी ’सतह(पृष्ठ) संबधित गणित‘ जटिल है। व्यतिक्रम सिद्धांत ‘कमजोर-नाभिकिय बल‘ के अध्ययन के लीये एक अच्छा उपकरण है। कण-भौतिकी की अधिकतर जानकारी और स्ट्रींग सिद्धांत इसी पर आधारित है। लेकिन यह सिद्धांत अधूरा है। इस सिद्धांत से जुड़े अनेक प्रश्नो का उत्तर इस सिद्धांत के सम्पूर्ण होने पर ही संभव होगा।
अगले भाग मे स्ट्रींग सिद्धांत का इतिहास और विकास पर चर्चा

स्ट्रींग सिद्धांत : क्वांटम भौतिकी और साधारणा सापेक्षतावाद

क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद  दोनो आधुनिक भौतिकी के आधार स्तम्भ है। क्वांटम सिद्धांत जहाँ परमाणु और परमाणु से छोटे कणों से संबंधित है वहीं सापेक्षतावाद खगोलीय पिंडों के लिए है। सापेक्षतावाद के अनुसार अंतराल लचीला होता है जिसमे भारी पिंड वक्रता उत्पन्न कर सकते है, वहीं क्वांटम सिद्धांत मे अंतराल की व्याख्या करने के लिए एकाधिक मत है। क्वांटम भौतिकी मे अनिश्चितता और संभावना का प्रभाव रहता है, वहीं सापेक्षतावाद मे हर घटना निश्चित होती है। इतने सारे विरोधाभासों के बाद भी दोनो सिद्धांतों के पूर्वानुमान सटीक रहते है। वर्तमान मे इन दोनो सिद्धांतों पर आधारित उपकरणों पर संपूर्ण विश्व निर्भर करता है।
इसका अर्थ यह है कि क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद दोनो दो अलग अलग परिस्थितियों मे कार्य करने वाले सिद्धांत है। दोनो का सह अस्तित्व संभव है। लेकिन क्या यह संभव है ?
क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद
क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद
जब साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रस्तावित किया गया था तब उसके समीकरणों ने एक ऐसे क्षेत्र की कल्पना की थी जिसमे एक अत्यंत लघु क्षेत्र मे अनंत द्रव्यमान संघनित हो सकता है। इस क्षेत्र के गुरुत्वाकर्षण से किसी का भी बच निकलना असंभव होगा। उस समय यह माना गया था कि ऐसा क्षेत्र केवल गणितीय या सैधांतिक रूप मे ही संभव है, वास्तविक विश्व मे ऐसा क्षेत्र नही हो सकता है। इस क्षेत्र को श्याम वीवर(Black Hole) नाम दिया गया।
आज हम जानते है कि श्याम वीवर संभव है और हमारे पास उनकी उपस्थिति के प्रमाण है। विडंबना यह है कि जिस साधारण सापेक्षतावाद के समीकरणों ने श्याम वीवर के अस्तित्व की संभावना जतायी थी, उसी सिद्धांत के समीकरण श्याम वीवर की व्याख्या नही कर पाते है। श्याम वीवर का आकार सैधांतिक रूप से शून्य होना चाहिये और इसका द्रव्यमान अत्यधिक (न्यूनतम सूर्य के द्रव्यमान से तीन गुणा ) होना चाहिये। लेकिन शून्य क्षेत्रफल का पिंड होना सामान्य बुद्धि के विपरीत है। इसे सिंगुलरेटी (Singularity) भी कहते है।
यदि सापेक्षतावाद के समीकरणो मे श्याम वीवर के जैसी स्थिति के लिए मूल्य रखे जायें तो परिणाम मे ∞(अनंत – infinity) आना शुरू हो जाता है। गणितीय रूप से किसी समीकरण का उत्तर ∞ आना सही हो सकता है लेकिन वास्तविक भौतिक विश्व मे ∞ का कोई अर्थ नही होता है। हम यह कह सकते है कि साधारण सापेक्षतावाद इस समस्या को हल नही कर सकता क्योंकि यह परमाणु से भी छोटे आकार मे हो रहा है। परमाणु से छोटे आकार के लिए क्वांटम भौतिकी का प्रयोग होना चाहिये!
लेकिन क्वांटम भौतिकी गुरुत्वाकर्षण का समावेश नही करता है। साधारणतः क्वांटम आकार मे गुरुत्वाकर्षण प्रभाव नगण्य होता है। यह बल इतना कमजोर होता है कि क्वांटम गणना मे इसकी उपेक्षा करने से गणना पर कोई अंतर नही आता है। परंतु श्याम वीवर मे स्थिति भिन्न होती है, इसका गुरुत्वाकर्षण अत्यधिक होता है, जिससे बचकर प्रकाश भी नही जा सकता है। इसके गुरुत्वाकर्षण की उपेक्षा नही की जा सकती है।
अर्थात श्याम वीवर को समझने के लिए हम एक ऐसा सिद्धांत चाहिये जो क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद को एक कर सके!
साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे अन्य अंतर
आकार और पैमाना
कार्य क्षेत्र  - साधारण सापेक्षतावाद : ग्रह/तारे/आकाशगंगा और  परमाण्विक कण : क्वांटम भौतिकी
कार्य क्षेत्र - साधारण सापेक्षतावाद : ग्रह/तारे/आकाशगंगा और परमाण्विक कण : क्वांटम भौतिकी
क्वांटम सिद्धांत लघुतम कणो से संबंधित है, वह परमाणु और उससे छोटे कण जैसे इलेक्ट्रान, क्वार्क के व्यवहार की व्याख्या करता है। साधारण सापेक्षतावाद बड़े आकार मे कार्य करता है, वह ग्रह, तारे और आकाशगंगा के व्यवहार की व्याख्या करता है।
अंतराल की संरचना
काल-अंतराल : साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे
काल-अंतराल : साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे
सापेक्षतावाद के अनुसार अंतराल (काल अंतराल) मे पदार्थ के द्वारा वक्रता आती है। यह काल अंतराल कपड़े की एक विशालकाय शांत चादर की तरह होता है। क्वांटम सिद्धांत मे अंतराल स्पष्ट नही है, इसमे छोटी छोटी तरंगे उठती रहती है। क्वांटम सिद्धांत के अनुसार अंतराल एक फ़ोम के जैसे है, जिसमे बुलबुलो की तरह कण बनते और विलुप्त होते रहते हैं।
क्वांटम अनिश्चितता
सापेक्षतावाद के अनुसार भविष्य सैद्धांतिक रूप से पूर्वानुमेय अथवा निश्चयात्मक है। आप किसी ग्रह या तारे की किसी विशेष समय पर गति और स्थिति के बारे मे अचूक गणना कर सकते है। क्वांटम सिद्धांत मे अनिश्चितता एक अनिवार्य भाग है। यह अनिश्चितता किसी उपकरण की शुद्धता या मानवीय गलती पर निर्भर नही है, यह वास्तविकता का अन्तर्निहित गुणधर्म है। क्वांटम भौतिकी मे आप किसी विशेष समय पर किसी कण की गति या स्थिति मे से कोई एक की ही गणना कर सकते है। आप दोनो को एक साथ नही जान सकते क्योंकि इनमे से किसी एक की अचूक जानकारी होने पर दूसरा उतना ही अनिश्चित हो जाता है। यह कुछ ऐसा है कि आप कार से यात्रा कर रहे है और अपनी कार की गति जानते है लेकिन आप नही जान सकते कि आप कहां पर है!
विचित्र क्वांटम गुणधर्म
तीन रंग के क्वार्को से बना प्रोटान
तीन रंग के क्वार्को से बना प्रोटान
क्वांटम सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कणो के कुछ विचित्र गुण जैसे “रंग” तथा “स्पिन” होते है। रंग और स्पिन को समझने के लिए इस लेख को पढ़ें। ये परिचित शब्द होने के बावजूद, क्वांटम सिद्धांत से संबंधित इन शब्दों का रोज़मर्रा के जीवन मे कोई उदाहरण नही है, इन्हे रोज़मर्रा के जीवन की वस्तुओं से समझना कठिन है।
ऐसा ही एक अजीब क्वांटम गुण है, महास्थिति (Superposition)। किसी कण की स्थिति अज्ञात होने पर उसे महास्थिति (Superposition) मे माना जाता है। अर्थात वह कण उस समय पर एक साथ सभी स्थितियों मे होता है। श्रोडींगर की बिल्ली एक साथ जीवित और मृत अवस्था मे होती है।
निष्कर्ष
क्वांटम सिद्धांत ने मूलभूत कणो के व्यवहार और गुणधर्मो की व्याख्या सफलता से की है। लेकिन यह सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण के नगण्य होने पर ही कार्य करता है। कण भौतिकी उसी समय कार्य करती है जब हम मानते है कि गुरुत्वाकर्षण का अस्तित्व नही है।
साधारण सापेक्षतावाद ने ब्रह्माण्ड के अनेको रहस्यों को उजागर किया है जिसमे ग्रहो की कक्षा, तारों, आकाशगंगाओं का जन्म और विकास, महाविस्फोट(The Big Bang), श्याम वीवर तथा गुरुत्विय लेंस का समावेश है। लेकिन यह सिद्धांत उस समय कार्य करता है जब हम मानते हैं कि प्रकृति के व्यवहार की व्याख्या के लिए क्वांटम भौतिकी की आवश्यकता नही है।
स्ट्रींग सिद्धांत इन दोनो सिद्धांतो के मध्य की खाई को पाटने का दावा करता है। अगले अंको मे स्ट्रींग सिद्धांत क्या है?