Friday, December 9, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत : इतिहास और विकास

स्ट्रींग सिद्धांत जो कि भौतिकी के सभी बलों और कणो के व्यवहार को एकीकृत करने का दावा करता है, संयोगवश खोजा गया था। 1970 मे कुछ वैज्ञानिक एक ऐसे मूलभूत क्वांटम स्ट्रींग की संकल्पना पर कार्य कर रहे थे जिसका त्रिआयामी विस्तार सीमीत हो और उसकी ज्यादा छोटे घटको द्वारा व्याख्या संभव ना हो। यह अध्ययन मूलभूत बलों के एकीकरण से संबधित नही था, यह भौतिकीय संदर्भो मे नयी गणितीय चुनौती मात्र था।
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण
पारंपरिक रूप से ऐसी स्ट्रींग की व्याख्या एक रेखा (सरल या वक्र) द्वारा अंतराल(Space) मे किसी समय पर उसकी स्थिति से की जा सकती है। यह स्ट्रींग किसी वलय के जैसे बंद या दो अंत बिन्दुओं के साथ खूली हो सकती है।
जैसे किसी कण के अंतर्भूत द्रव्यमान(mass) होता है, उसी तरह से स्ट्रींग के अंतर्भूत तनाव(Tension) होगा। जिस तरह से एक कण विशेष सापेक्षतावाद(Special Relativity) के नियमो से बंधा होता है उसी तरह से यह स्ट्रींग भी विशेष सापेक्षतावाद के नियमो से बंधी होगी। अंतत: हमे कणो की क्वांटम यांत्रिकी के तुल्य स्ट्रींग के लिये क्वांटम यांत्रिकी के नियम बनाने होंगे।

किसी स्ट्रींग मे अंतर्भूत तनाव की उपस्थिति का अर्थ है कि स्ट्रींग सिद्धांत मे स्वाभाविक रूप से द्रव्यमान का माप है, जो कि द्रव्यमान के आयामो के लिए आधारभूत कारक है। द्रव्यमान की उपस्थिति एक बिंदु पर ना हो कर एक रेखा मे है। इससे ऊर्जा के माप मे एक तंतुमय प्रभाव उत्पन्न होता है जोकि स्ट्रींग के दोलन के कारण होता है। एक कण बिंदु के रूप मे होता है, उसमे दोलन नही होने से द्रव्यमान स्थिर सा होता है। लेकिन स्ट्रींग के एक धागेनुमा संरचना होने से उसमे दोलन, या तरंग होती है, जिससे द्रव्यमान स्थिर नही होता है, यही दोलित द्रव्यमान उसकी ऊर्जा के माप मे एक महत्वपूर्ण तंतुमय प्रभाव उत्पन्न करता है।
बिना किसी गणना के साधारण अनुभव से कोई भी अनुमान लगा सकता है कि किसी क्वांटम स्ट्रींग(धागे) मे असंख्य भिन्न भिन्न दोलन विधियाँ हो सकती है, किसी संगीत उपकरण के तार की तरह। यह सभी दोलन विधियाँ उस स्ट्रींग के आसपास अपनी विशिष्ट दोलन आवृत्ती के अनुसार एक विशिष्ट द्रव्यमान का प्रभाव उत्पन्न करेंगी। इस प्रभाव के कारण एक ही स्ट्रींग अलग अलग आवृत्ती पर दोलन करने पर अलग अलग द्रव्यमान वाले कण की तरह व्यवहार करेगा। यह प्रभाव क्वांटम भौतिकी के कणो के चिड़ीयाघर मे इतने सारे कणो की व्याख्या करता है, ये सभी कण एक ही तरह की स्ट्रींग के ही भिन्न रूप है, अर्थात वे सभी एक ही तरह की स्ट्रींग से निर्मित है, केवल स्ट्रींग द्वारा भिन्न भिन्न आवृती पर दोलन के फलस्वरूप मे भिन्न भिन्न द्रव्यमान और ऊर्जा वाले कण की तरह व्यवहार कर रहे है।
यह व्याख्या कितनी आसान लगती है, सब कुछ कितना सरल है लेकिन इस व्याख्या ने कई नये अप्रत्याशित परिणाम सामने लाये। किसी स्ट्रींग को एक असंख्य बिंदु के समूह के रूप मे देखा जा सकता है जो एक अखण्ड धागे के रूप मे बंधे रहते है। इससे अनंत ’डीग्री आफ फ़्रीडम’ का जन्म होता है। असंख्य या अनंत हमेशा अप्रत्याशित, अनेपक्षित परिणाम देती है और किसी भी सिद्धांत मे इसकी उपस्थिति असुरक्षित होती है।
सापेक्षवादी स्ट्रींग का गणित पारंपरिक स्तर पर सीधा और सरल है ,लेकिन इसे क्वांटम स्तर पर ले जाने पर वैज्ञानिको ने पाया कि इस सिद्धांत के लिये काल-अंतराल(Space-Time) के कुल आयामो की संख्या विलक्षण रूप से 26 होना चाहीये। इसलीये क्वांटम स्ट्रींग का अस्तित्व 25 आयाम वाले अंतराल(3 की बजाय) तथा 1 समय आयाम मे हो सकता है। यह 26 आयामो की संख्या एक गणितीय तथ्य है, इसे किसी प्रयोग द्वारा निर्धारीत नही किया गया है। इस सिद्धांत की खोज का सारा उत्साह आयामो की संख्या के लिये 26 अंक के बेहुदा, बेतुके अनुमान से जाता रहा।
इस सिद्धांत द्वारा 26 आयामो के अनुमान के पश्चात इस सिद्धांत का एक और बेतुका गुण पाया गया कि यह सिद्धांत एक ऐसे कण के अस्तित्व को प्रस्तावित करता था ,जिसका द्रव्यमान काल्पनिक होना चाहिये। (काल्पनीक संख्या imaginary number : -1 के वर्गमूल के गुणांक वाली संख्या।) इस कण को टेक्यान(Tachyon) नाम दिया गया। इस कण के विचित्र गुणधर्म है, इसकी गति प्रकाशगति से प्रारंभ होती है, अन्य कणो के विपरीत इसकी ऊर्जा मे कमी के साथ इसकी गति मे वृद्धी होती है, जिससे यह प्रकाशगति से तेज होते जाता है।
इस सिद्धांत के राह मे रोड़े अभी दूर नही हुये थे कि इस सिद्धांत ने एक नया आश्चर्यजनक परिणाम दिया। टेक्यान के पश्चात, दोलन करती हुयी स्ट्रींग के आवृत्ती-वर्णक्रम(Frquency Spectrum) मे अगला कण स्पिन-2 का था, जिसका द्रव्यमान लुप्त होता था। एक द्रव्यमान रहित कण(0 द्रव्यमान) का कण , अत्याधिक दूरी तक बल का वहन कर सकता है। क्वांटम सिद्धांत मे प्रकृति के सभी मूलभूत बलो की सफल व्याख्या के लिए एक ऐसे ही कण की कमी थी जो कि लंबी दूरी तक बल का वहन कर सके अर्थात ग्रेवीटान। हम जानते है कि इसके पहले क्वांटम सिद्धांत की तकनिकी समस्याओं के कारण, ग्रेवीटान के क्वांटम सिद्धांत के साथ एकीकरण के सभी प्रयास असफल रहे थे। स्ट्रींग सिद्धांत ने मूलभूत बलो के एकीकरण की राह मे सबसे बड़ा रोड़ा दूर कर दीया था।
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो का बिखरना
यह एक क्रांतिकारी खोज थी जिसने स्ट्रींग सिद्धांत को महत्वपूर्ण सिद्धांत बनाया। स्ट्रींग एक लंबाई मे होती है और बिंदु के जैसे नही होती है, इससे क्वांटम ग्रेवीटान सिद्धांत की सारी असंगतताये दूर हो जाती है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत मे कोई भी प्रक्रिया शून्य दूरी पर नही होती है। क्वांटम सिद्धांत मे किसी बिंदू कण के दो बिंदुकणो के बिखराव/टकराव के लिये एक निश्चित बिंदु (सींगुलरैटी) की आवश्यकता होती है। नीचे चित्र देंखे। कणो के बिखरने के इस बिंदु का क्षेत्रफल शून्य होता है और यह शून्य समीकरणो मे असंगतता उत्पन्न करता है। सरल शब्दो मे क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत मे शून्य दूरी पर ग्रेवीटान समीकरणो मे ∞ उत्पन्न करता था। इस असंगतता का कोई हल नही पाया गया था। स्ट्रींग सिद्धांत मे यह प्रक्रिया , एक बिंदु पर नही ,एक विश्व प्रतल मे होती है और सुस्पष्ट होती है। इस साधारण से तथ्य ने क्वांटम गुरुत्वाकर्षण को असंगत बनाने वाली ग्रेवीटान के बिखरने/टकराने की प्रक्रिया से सींगुलरैटी को हटा दिया था। इस महत्वपूर्ण व्याख्या ने 26 आयामो तथा टेक्यान जैसे बेतुके कण के अनुमानो के बावजूद इस सिद्धांत को गुरुत्वाकर्षण के अन्य बलो के साथ एकीकरण के सिद्धांत के लिये सबसे प्रभावी उम्मीदवार माना जाने लगा।
अगले भाग मे कितने स्ट्रींग सिद्धांत ?

स्ट्रींग सिद्धांत : परिचय

आवर्धन के स्तर     1.सामान्य स्तर - पदार्थ     2.आण्विक स्तर     3.परमाण्विक स्तर - प्रोटान, न्युट्रान और इलेक्ट्रान     4.परा-परमाण्विक स्तर - इलेक्ट्रान     5.परा-परमाण्विक स्तर - क्वार्क     6.स्ट्रींग स्तर
आवर्धन के स्तर 1.सामान्य स्तर - पदार्थ 2.आण्विक स्तर 3.परमाण्विक स्तर - प्रोटान, न्युट्रान और इलेक्ट्रान 4.परा-परमाण्विक स्तर - इलेक्ट्रान 5.परा-परमाण्विक स्तर - क्वार्क 6.स्ट्रींग स्तर
स्ट्रींग सिद्धांत के पिछे आधारभूत तर्क यह है कि मानक प्रतिकृति के सभी मूलभूत कण एक मूल वस्तु के भिन्न स्वरूप है : एक स्ट्रींग। सरल हिन्दी मे इसे एक महीन तंतु, एक धागे जैसी संरचना कह सकते है। लेकिन यह कैसे संभव है ?
सामान्यतः हम इलेक्ट्रान को को एक बिन्दु के जैसे मानते है जिसकी कोई आंतरिक संरचना नही होती है। एक बिंदु गति के अतिरिक्त कुछ भी क्रिया करने मे असमर्थ होता है। इसे शून्य आयामी संरचना( 0 dimension object) माना जाता है। लेकिन यदि स्ट्रींग सिद्धांत सही है और यदि हम इलेक्ट्रान को एक अत्यंत शक्तिशाली सुक्ष्मदर्शी(microscope) से देख पाये तो हम उसे एक बिंदु के जैसे नही एक स्ट्रींग के वलय अर्थात तंतु के वलय (Loop of String) रूप मे पायेंगे। यह तंतु एक आयाम की संरचना है, इसकी एक निश्चित लंबाई भी है। एक तंतु गति के अतिरिक्त भी क्रियायें कर सकता है, वह भिन्न तरीकों से दोलन कर सकता है। यदि एक तंतु वलय एक विशेष तरीके से दोलन करे तो कुछ दूरी पर हम यह नही जान पायेंगे की वह एक इलेक्ट्रान बिंदू है या एक तंतु वलय। लेकिन वह किसी और तरह से दोलन करे तो उसे फोटान कहा जा सकता है, तीसरी तरह से दोलन करने पर वह क्वार्क हो सकता है। अर्थात एक तंतु वलय भिन्न प्रकार से दोलन करे तो वह सभी मूलभूत कणो की व्याख्या कर सकता है। यदि स्ट्रींग सिद्धांत सही है, तब समस्त ब्रह्माण्ड कणो से नही तंतुओ से बना है।

शायद स्ट्रींग सिद्धांत के बारे मे सबसे विचित्र यह है कि यह आसान सा तथ्य कार्य करता है। मानक प्रतिकृति(Standard Model) मे छोटे से बदलाव के साथ ही उसे स्ट्रींग सिद्धांत मे बदला जा सकता है। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि आज तक एक भी प्रायोगिक प्रमाण नही है, जो यह कह सके कि स्ट्रींग सिद्धांत ब्रह्माण्ड की सही व्याख्या करता है। इसके पीछे एक संभावित कारण यह है कि यह सिद्धांत अभी भी विकास की अवस्था मे है, यह अभी पूरी तरह से परिपक्व नही हुआ है। हम इस सिद्धांत के टुकड़ो मे जानते है लेकिन अभी पूर्ण तस्वीर बनना शेष है। इस कारण से हम निश्चित अनुमान नही कर सकते है। हाल के कुछ वर्षो मे इस सिद्धांत पर कार्य की गति मे एक त्वरण आया है और हम इस सिद्धांत को ज्यादा बेहतर रूप से जानते है।
स्ट्रींग सिद्धांत निम्नलिखित प्रश्नो का उत्तर देने का प्रयास करता है:
  1. चारों मूलभूत बलों का श्रोत क्या है?
  2. प्रकृति को ढेर सारे मूलभूत कणों की आवश्यकता क्यों है ?
  3. कणों के पास द्रव्यमान और आवेश क्यों होता है?
  4. हम चार आयाम वाले काल-अंतराल मे क्यों है ?
  5. काल-अंतराल और गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति क्या है?
क्या है स्ट्रींग ?
बंद स्ट्रींग और खुली स्ट्रींग
बंद स्ट्रींग और खुली स्ट्रींग
सामान्यत: इलेक्ट्रान के जैसे मूलभूत कणो को बिंदु के जैसे शून्य आयाम की संरचना माना जाता है। मूलभूत स्ट्रींग एक आयामी संरचना होती है। इनकी मोटाई नही होती है लेकिन लंबाई होती है, जो कि 10 -33 सेमी के तुल्य होती है।[10 -33 सेमी अर्थात दशमलव बिंदू के पश्चात 32 शून्य और 1]। सामान्यत: हम जो भी मापन करते है उसकी तुलना मे यह अत्यंत लघु है, यह इतनी छोटी संरचना है कि यह समस्त व्यवहारिक कारणो से बिंदु कणो के जैसे लगती है। लेकिन उनके स्ट्रींग अथवा तंतुनुमा व्यवहार के महत्वपूर्ण निहितार्थ को हम अब देखने जा रहे है।
ये स्ट्रींग/ततुं खुले या बंद हो सकते है। जब यह काल अंतराल मे गति करते है तब एक कल्पित सतह ’विश्वप्रतल(Worldsheet)’ का निर्माण करते हैं।
स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण :ग्रेवीटान स्ट्रींग
स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण :ग्रेवीटान स्ट्रींग
इस स्ट्रींग की कुछ विशिष्ट स्पंदन विधियाँ होती है जो उसके विभिन्न गुणधर्मो जैसे द्रव्यमान, स्पिन को निर्धारित करती हैं। इस सिद्धांत का आधार यह है कि हर स्पंदन विधि एक सुनिश्चित मूलभूत कण के क्वांटम गुणधर्मो को जन्म देती है, निर्धारित करती है। यह एक अंतिम एकीकरण है जिसमे सभी मूलभूत कणो को एक ही वस्तु से समझा जा सकता है ,जिसे स्ट्रींग कहते है। इसे किसी वायोलीन के तार से उत्पन्न विभिन्न ध्वनियों के जैसा माना जा सकता है। वायोलीन का एक ही तार विभिन्न ध्वनीयों को उत्पन्न करता है। स्ट्रींग की स्पंदन विधियाँ वायोलीन की ध्वनियों की तरह है, जिसमे हर मूलभूत कण इन ध्वनीयों मे किसी एक ध्वनी से संबधित होता है।
उदाहरण के लिए एक बंद स्ट्रींग को लेते है जो दिखाये गये चित्र के जैसा है। इस की स्पंदन विधी स्पिन 2 के द्रव्यमान रहित कण ग्रेवीटान के जैसी है, जो गुरुत्वाकर्षण बल का वाहक कण है। स्ट्रींग सिद्धांत की विशेषता है कि यह गुरुत्वाकर्षण का भी मूलभूत बलों के रूप मे समावेश करता है। स्टैण्डर्ड माडेल(मानक प्रतिकृति) गुरुत्वाकर्षण का समावेश नही करती है।
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो/स्ट्रींगों के मध्य प्रतिक्रियायें
कण भौतिकी और स्ट्रींग सिद्धांत मे कणो/स्ट्रींगों के मध्य प्रतिक्रियायें
एकाधिक स्ट्रींग जुड़कर और अलग होकर प्रतिक्रिया करती है। उदाहरण के लीये दो बंद स्ट्रींग जुड़कर एक बंद स्ट्रींग का निर्माण करे तो यह कुछ चित्र मे दिखाये अनुसार होगा। ध्यान दें कि इस प्रतिक्रिया का ’विश्वप्रतल’ एक सपाट सतह होगा। यह प्रक्रिया स्ट्रींग सिद्धांत का एक और महत्वपूर्ण गुणधर्म दर्शाती है, इसमे क्वांटम सिद्धांत की तरह अनंत (∞– infinity) नही आता है। क्वांटम कण भौतिकी मे इस तरह की प्रतिक्रियाये शून्य दूरी पर होती है, जिसे सींगुलरैटी भी कहते है। सींगुलरैटी द्वारा समीकरणो मे ∞ का प्रादुर्भाव होता है। चित्र मे यह स्थिती तीन विश्वरेखाओं के मिलाप बिंदु द्वारा प्रदर्शित है। कण भौतिकी के समीकरण उच्च ऊर्जा पर इस बिंदु के फलस्वरूप कार्य करना बंद कर देते है अर्थात उनके उत्तर मे आना शुरू हो जाता है।
दो बंद स्ट्रींगो का एकीकरण और अलगाव
दो बंद स्ट्रींगो का एकीकरण और अलगाव
क्वांटम व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory)
यदि हम दो मूल बंद स्ट्रींगों को एक साथ जोड़े, तब हम ऐसी प्रक्रिया मीलती है जिसमे दो बंद स्ट्रींग एक अस्थायी मध्यवर्ती बंद स्ट्रींग बनाती है, जो बाद मे दो बंद स्ट्रींगो मे बंट जाती है। यह प्रक्रिया साथ वाले चित्र मे दर्शायी गयी है। यह प्रक्रिया व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory) समझने के लिए आवश्यक है।
क्वांटम यांत्रिकी मे, व्यतिक्रम सिद्धांत कुछ सन्निकटिकरण प्रणालीयों का समुच्चय(set of approximation schemes), है जो जटिल क्वांटम तंत्र को सरल तंत्र के रूप मे वर्णित करता है। यह गणितिय व्यतिक्रम सिद्धांत पर ही आधारित है।
व्यतिक्रम सिद्धांत(perturbation theory) के अनुसार क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना के लिए उच्च स्तर क्वांटम प्रक्रियाओं के योगदानों को जोड़ा जाता है। जब यह योगदान लघु से लघु होते जाते है तथा क्वांटम प्रक्रियाओं का स्तर बढते जाता है , तब व्यतिक्रम सिद्धांत के परिणाम बेहतर होते जाते है। इस स्थिति मे हमे कुछ प्रथम आकृतियों की गणना से ही सटिक परिणाम प्राप्त होते है। स्ट्रींग सिद्धांत मे उच्च स्तर की आकृतियां विश्वप्रतल मे निर्मित वलयों की संख्या से संबधित होती है।
क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना
क्वांटम-यांत्रिकी-आयाम(quantum mechanical amplitudes) की गणना
व्यतिक्रम सिद्धांत के हर स्तर के लिए स्ट्रींग सिद्धांत मे एक ही आकृति होती है। कण भौतिकी मे उच्च स्तरों के लिए आकृतियों की संख्या चरघातांकी(exponentially) रूप से बढते जाती है। लेकिन ऐसी आकृतियों से जिसमे दो से ज्यादा वलय हों परिणाम प्राप्त करना जटिल होते जाता है क्योंकि इससे जुड़ी ’सतह(पृष्ठ) संबधित गणित‘ जटिल है। व्यतिक्रम सिद्धांत ‘कमजोर-नाभिकिय बल‘ के अध्ययन के लीये एक अच्छा उपकरण है। कण-भौतिकी की अधिकतर जानकारी और स्ट्रींग सिद्धांत इसी पर आधारित है। लेकिन यह सिद्धांत अधूरा है। इस सिद्धांत से जुड़े अनेक प्रश्नो का उत्तर इस सिद्धांत के सम्पूर्ण होने पर ही संभव होगा।
अगले भाग मे स्ट्रींग सिद्धांत का इतिहास और विकास पर चर्चा

स्ट्रींग सिद्धांत : क्वांटम भौतिकी और साधारणा सापेक्षतावाद

क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद  दोनो आधुनिक भौतिकी के आधार स्तम्भ है। क्वांटम सिद्धांत जहाँ परमाणु और परमाणु से छोटे कणों से संबंधित है वहीं सापेक्षतावाद खगोलीय पिंडों के लिए है। सापेक्षतावाद के अनुसार अंतराल लचीला होता है जिसमे भारी पिंड वक्रता उत्पन्न कर सकते है, वहीं क्वांटम सिद्धांत मे अंतराल की व्याख्या करने के लिए एकाधिक मत है। क्वांटम भौतिकी मे अनिश्चितता और संभावना का प्रभाव रहता है, वहीं सापेक्षतावाद मे हर घटना निश्चित होती है। इतने सारे विरोधाभासों के बाद भी दोनो सिद्धांतों के पूर्वानुमान सटीक रहते है। वर्तमान मे इन दोनो सिद्धांतों पर आधारित उपकरणों पर संपूर्ण विश्व निर्भर करता है।
इसका अर्थ यह है कि क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद दोनो दो अलग अलग परिस्थितियों मे कार्य करने वाले सिद्धांत है। दोनो का सह अस्तित्व संभव है। लेकिन क्या यह संभव है ?
क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद
क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद
जब साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रस्तावित किया गया था तब उसके समीकरणों ने एक ऐसे क्षेत्र की कल्पना की थी जिसमे एक अत्यंत लघु क्षेत्र मे अनंत द्रव्यमान संघनित हो सकता है। इस क्षेत्र के गुरुत्वाकर्षण से किसी का भी बच निकलना असंभव होगा। उस समय यह माना गया था कि ऐसा क्षेत्र केवल गणितीय या सैधांतिक रूप मे ही संभव है, वास्तविक विश्व मे ऐसा क्षेत्र नही हो सकता है। इस क्षेत्र को श्याम वीवर(Black Hole) नाम दिया गया।
आज हम जानते है कि श्याम वीवर संभव है और हमारे पास उनकी उपस्थिति के प्रमाण है। विडंबना यह है कि जिस साधारण सापेक्षतावाद के समीकरणों ने श्याम वीवर के अस्तित्व की संभावना जतायी थी, उसी सिद्धांत के समीकरण श्याम वीवर की व्याख्या नही कर पाते है। श्याम वीवर का आकार सैधांतिक रूप से शून्य होना चाहिये और इसका द्रव्यमान अत्यधिक (न्यूनतम सूर्य के द्रव्यमान से तीन गुणा ) होना चाहिये। लेकिन शून्य क्षेत्रफल का पिंड होना सामान्य बुद्धि के विपरीत है। इसे सिंगुलरेटी (Singularity) भी कहते है।
यदि सापेक्षतावाद के समीकरणो मे श्याम वीवर के जैसी स्थिति के लिए मूल्य रखे जायें तो परिणाम मे ∞(अनंत – infinity) आना शुरू हो जाता है। गणितीय रूप से किसी समीकरण का उत्तर ∞ आना सही हो सकता है लेकिन वास्तविक भौतिक विश्व मे ∞ का कोई अर्थ नही होता है। हम यह कह सकते है कि साधारण सापेक्षतावाद इस समस्या को हल नही कर सकता क्योंकि यह परमाणु से भी छोटे आकार मे हो रहा है। परमाणु से छोटे आकार के लिए क्वांटम भौतिकी का प्रयोग होना चाहिये!
लेकिन क्वांटम भौतिकी गुरुत्वाकर्षण का समावेश नही करता है। साधारणतः क्वांटम आकार मे गुरुत्वाकर्षण प्रभाव नगण्य होता है। यह बल इतना कमजोर होता है कि क्वांटम गणना मे इसकी उपेक्षा करने से गणना पर कोई अंतर नही आता है। परंतु श्याम वीवर मे स्थिति भिन्न होती है, इसका गुरुत्वाकर्षण अत्यधिक होता है, जिससे बचकर प्रकाश भी नही जा सकता है। इसके गुरुत्वाकर्षण की उपेक्षा नही की जा सकती है।
अर्थात श्याम वीवर को समझने के लिए हम एक ऐसा सिद्धांत चाहिये जो क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद को एक कर सके!
साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे अन्य अंतर
आकार और पैमाना
कार्य क्षेत्र  - साधारण सापेक्षतावाद : ग्रह/तारे/आकाशगंगा और  परमाण्विक कण : क्वांटम भौतिकी
कार्य क्षेत्र - साधारण सापेक्षतावाद : ग्रह/तारे/आकाशगंगा और परमाण्विक कण : क्वांटम भौतिकी
क्वांटम सिद्धांत लघुतम कणो से संबंधित है, वह परमाणु और उससे छोटे कण जैसे इलेक्ट्रान, क्वार्क के व्यवहार की व्याख्या करता है। साधारण सापेक्षतावाद बड़े आकार मे कार्य करता है, वह ग्रह, तारे और आकाशगंगा के व्यवहार की व्याख्या करता है।
अंतराल की संरचना
काल-अंतराल : साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे
काल-अंतराल : साधारण सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी मे
सापेक्षतावाद के अनुसार अंतराल (काल अंतराल) मे पदार्थ के द्वारा वक्रता आती है। यह काल अंतराल कपड़े की एक विशालकाय शांत चादर की तरह होता है। क्वांटम सिद्धांत मे अंतराल स्पष्ट नही है, इसमे छोटी छोटी तरंगे उठती रहती है। क्वांटम सिद्धांत के अनुसार अंतराल एक फ़ोम के जैसे है, जिसमे बुलबुलो की तरह कण बनते और विलुप्त होते रहते हैं।
क्वांटम अनिश्चितता
सापेक्षतावाद के अनुसार भविष्य सैद्धांतिक रूप से पूर्वानुमेय अथवा निश्चयात्मक है। आप किसी ग्रह या तारे की किसी विशेष समय पर गति और स्थिति के बारे मे अचूक गणना कर सकते है। क्वांटम सिद्धांत मे अनिश्चितता एक अनिवार्य भाग है। यह अनिश्चितता किसी उपकरण की शुद्धता या मानवीय गलती पर निर्भर नही है, यह वास्तविकता का अन्तर्निहित गुणधर्म है। क्वांटम भौतिकी मे आप किसी विशेष समय पर किसी कण की गति या स्थिति मे से कोई एक की ही गणना कर सकते है। आप दोनो को एक साथ नही जान सकते क्योंकि इनमे से किसी एक की अचूक जानकारी होने पर दूसरा उतना ही अनिश्चित हो जाता है। यह कुछ ऐसा है कि आप कार से यात्रा कर रहे है और अपनी कार की गति जानते है लेकिन आप नही जान सकते कि आप कहां पर है!
विचित्र क्वांटम गुणधर्म
तीन रंग के क्वार्को से बना प्रोटान
तीन रंग के क्वार्को से बना प्रोटान
क्वांटम सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कणो के कुछ विचित्र गुण जैसे “रंग” तथा “स्पिन” होते है। रंग और स्पिन को समझने के लिए इस लेख को पढ़ें। ये परिचित शब्द होने के बावजूद, क्वांटम सिद्धांत से संबंधित इन शब्दों का रोज़मर्रा के जीवन मे कोई उदाहरण नही है, इन्हे रोज़मर्रा के जीवन की वस्तुओं से समझना कठिन है।
ऐसा ही एक अजीब क्वांटम गुण है, महास्थिति (Superposition)। किसी कण की स्थिति अज्ञात होने पर उसे महास्थिति (Superposition) मे माना जाता है। अर्थात वह कण उस समय पर एक साथ सभी स्थितियों मे होता है। श्रोडींगर की बिल्ली एक साथ जीवित और मृत अवस्था मे होती है।
निष्कर्ष
क्वांटम सिद्धांत ने मूलभूत कणो के व्यवहार और गुणधर्मो की व्याख्या सफलता से की है। लेकिन यह सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण के नगण्य होने पर ही कार्य करता है। कण भौतिकी उसी समय कार्य करती है जब हम मानते है कि गुरुत्वाकर्षण का अस्तित्व नही है।
साधारण सापेक्षतावाद ने ब्रह्माण्ड के अनेको रहस्यों को उजागर किया है जिसमे ग्रहो की कक्षा, तारों, आकाशगंगाओं का जन्म और विकास, महाविस्फोट(The Big Bang), श्याम वीवर तथा गुरुत्विय लेंस का समावेश है। लेकिन यह सिद्धांत उस समय कार्य करता है जब हम मानते हैं कि प्रकृति के व्यवहार की व्याख्या के लिए क्वांटम भौतिकी की आवश्यकता नही है।
स्ट्रींग सिद्धांत इन दोनो सिद्धांतो के मध्य की खाई को पाटने का दावा करता है। अगले अंको मे स्ट्रींग सिद्धांत क्या है?

Wednesday, November 9, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory) : क्वांटम भौतिकी


श्रोडीन्गर की बिल्ली : जीवित या मृत
श्रोडीन्गर की बिल्ली : जीवित या मृत
न्यूटन से आइंस्टाइन तक आते तक भौतिक विज्ञान विकसित हो चुका था, आशा थी कि निकट भविष्य में वैज्ञानिक भगवान के मन को पढ़ने में सफल हो जायेगे। न्यूटन और आइंस्टाइन के सिद्धांतों से खगोलीय पिंडो तथा प्रकाश के व्यवहार को समझा जा चूका था, मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय व्यवहार की व्याख्या करते थे। लेकिन पदार्थ की संरचना के क्षेत्र में नयी खोजो ने सारी स्थिति बदल दी।
क्वांटम सिद्धांत का इतिहास
1803 मे ब्रिटिश वैज्ञानिक जान डाल्टन ने परमाणु के सिद्धांत को प्रस्तावित किया था। डाल्टन के अनुसार हर तत्व एक विशिष्ट प्रकार के परमाणु से बना होता है और परमाणु मिलकर रासायनिक पदार्थो का निर्माण करते है। एक गणितिय फ्रेंच वैज्ञानिक जीन पेर्रिन ने आइंस्टाइन के सिद्धांत का प्रयोग करते हुए परमाणु का द्रव्यमान और आकार मापा था।
1897 मे ट्रीनीटी महाविद्यालय कैम्ब्रिज के प्रोफेसर जे जे थामसन इलेक्ट्रान के अस्तित्व को प्रमाणित कर चूके थे। अब परमाणु अविभाज्य नही था। 1900 मे मैक्स प्लैंक ने प्रस्तावित किया कि ऊर्जा सतत प्रवाह ना होकर छोटी छोटी ईकाई से बनी होती है जिसे उन्होने क्वांटा नाम दिया। प्लैंक ने इसे आगे बढाते हुये एक नयी भौतिकी का निर्माण किया जिसे आज हम क्वांटम भौतिकी कहते है। 1905 मे आइंस्टाइन ने प्रस्तावित किया कि ना केवल ऊर्जा बल्कि विकिरण भी छोटी छोटी ईकाईयों से बनी होती है तथा प्रकाश के जैसे विद्युत-चुंबकिय विकिरण भी इसी व्यवहार को दर्शाते है। आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश की फोटान के जैसे कणो निर्मित होने की व्याख्या की जा सकती है, फोटान ऊर्जा के पैकेट के जैसे होते है और एक विशिष्ट तरंग दैधर्य से संबधित होते है।
निल्स बोहर द्वारा प्रस्तावित परमाणु संरचना
निल्स बोहर द्वारा प्रस्तावित परमाणु संरचना
1911 मे अर्नेसट रदरफोर्ड ने प्रमाणित किया कि परमाणु मे आंतरिक संरचना होती है, उनके अनुसार परमाणु मे धनात्मक आवेश वाले नन्हे केन्द्र के आसपास इलेक्ट्रान परिक्रमा करते है। सर्वप्रथम यह माना गया कि परमाणु इलेक्ट्रान और धनात्मक आवेश वाले प्रोटान से बना होता है। निल्स बोहर ने इस पर आधारित परमाणु का माडेल बनाया। 1924 मे लुइस दे ब्रोग्ली (Louis de Broglie) ने प्रस्तावित किया कि पदार्थ और ऊर्जा के मूलभूत कण दोहरा व्यवहार रखते है, वे कण और तरंग दोनो की तरह व्यवहार करते हैं।
पाल डीरेक ने मैक्सवेल के समीकरणों के आधार पर इलेक्ट्रान के व्यवहार की व्याख्या करने वाला समीकरण खोज निकाला। यह क्वांटम सिद्धांतों के आधारभूत स्तम्भ में से एक है। तब यह सोचा गया कि ऐसा ही समीकरण प्रोटान के लिये मिल जाएगा और भौतिकी समाप्त।
लेकिन 1932 मे जेम्स चैडवीक ने परमाणु के केन्द्र मे एक और कण न्यूट्रॉन को खोज निकाला जिसपर कोई आवेश नही होता है। अगले 30 वर्षो तक न्यूट्रॉन और प्रोटान को मूलभूत कण माना जाता रहा। लेकिन कुछ प्रयोगो ने सिद्ध किया कि प्रोटान और न्यूट्रॉन और भी छोटे कणो से बने है। इन कणो को मुर्रे गेलमन ने क्वार्क नाम दिया। अगले दशकों में ऐसे दर्जनों कण खोजे गये। पता चला कि लघु स्तर पर परमाण्विक कणो का एक चिडी़याघर है।
लघु स्तर पर के परमाण्विक कणो के चिडी़याघर को समझने के लिए क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model) का विकास हुआ।
क्वांटम सिद्धांत के मूल में निम्नलिखित प्रमुख स्तम्भ है:
1. मूलभूत कणो का दोहरा व्यवहार : सभी मूलभूत कण दोहरा व्यवहार करते है,वे कभी कण जैसे व्यवहार करते है, कभी तरंग के जैसे। यह न्यूटन के प्रकाश कण के सिद्धांत और मैक्सवेल-हायजेन्स के प्रकाश तरंग के सिद्धांत का मिश्रण है।
2. हीजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत : ‘अनिश्चितता के सिद्धांत(Uncertainty Principle)’ के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता। यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न बरती जाए। जितनी अचूक गति की जानकारी होगी, स्थिति उतनी ज्यादा अज्ञात होगी या इसके विपरीत जितनी अचूक स्थिति की जानकारी होगी , उसकी गति उतनी ही अज्ञात होगी। वर्तमान मे किसी भी परमाण्विक कण की स्थिती एवं गति की गणना को हम संभावना मे मापते है। हम कहते है कि किसी परमाण्विक कण के ’क’ स्थान पर ’ख’ ऊर्जा पर होने की ’म’ प्रतिशत प्रायिकता है।
क्वांटम सिद्धांत के विकास मे आइंस्टाइन ने प्रमुख भूमिका निभाईं है, लेकिन वे इस अनिश्चितता का सिद्धांत से सहमत नही थे। इस सिद्धांत के विरोध मे उन्होने कहा था
“भगवान पांसे नही खेलता! (God does not play dice)”!
क्वांटम सिद्धांत के इस गुणधर्म के कारण प्रकृति एक निश्चित, सुनियोजित अवस्था ना होकर अनिश्चित, अव्यवस्थित हो गयी।
श्रोडीन्गर की बिल्ली : क्वांटम विश्व मे यदि किसी परमाण्विक कण की अवस्था का निरीक्षण नही हुआ हो तो उसे एक महास्थिती (Superposition) मे माना जाता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार यदि किसी कण का निरीक्षण नही किया जा रहा है तब वह कण एक साथ सभी संभव अवस्थाओं मे रहता है। जब हम उस कण का निरीक्षण करते है तब वह सभी संभव अवस्थाओं मे से एक अवस्था ग्रहण करता है। यह विचित्र लगता है लेकिन यह क्वांटम सिद्धांत की बुनियाद है। यदि एकाधिक व्यक्ति एक साथ एकाधिक निरीक्षण करें तो हर व्यक्ति को उस कण की भिन्न अवस्था दिखायी देगी। इसे निरीक्षक प्रभाव(Observer Effect) कहते है। इसे रोजमर्रा के जीवन के परिपेक्ष मे समझने के लिए मान लिजिये कि हम एक स्टील के बक्से मे एक बिल्ली को तेजाब से भरी एक कांच की बोतल के साथ बंद कर देते है। इस बोतल के साथ एक हथौड़ा जुड़ा है। इस बक्से मे एक रेडीयो सक्रिय पदार्थ की छोटी सी मात्रा है। यदि रेडीयो सक्रिय पदार्थ से एक भी परमाणु का क्षय होता है, तो हथौड़ा कांच की बोतल को तोड़ देगा, जिससे बिल्ली की मृत्यु हो जायेगी। बक्से को बंद करने के पश्चात कोई भी निरीक्षक नही जानता कि रेडीयो सक्रिय पदार्थ मे परमाणु का क्षय कब होगा, इसलिए उसे ज्ञात नही होगा कि कांच की बोतल टूटी या नही और बिल्ली जीवित है या मृत ? हम यह नही जानते है कि बिल्ली जीवित है या मृत अर्थात क्वांटम भौतिकी के अनुसार बिल्ली एक साथ जीवित और मृत दोनो अवस्थाओं मे है। जब हम बक्से को खोलकर निरीक्षण करेंगे तब बिल्ली इन दोनो संभव अवस्था मे से एक अवस्था को ग्रहण करेगी। इस तर्क को आगे बढा़ते हुये हम यह भी कह सकते है कि एक ब्रह्माण्ड मे बिल्ली जीवित होगी तथा समानांतर ब्रह्माण्ड मे मृत, या इसके विपरीत।
3. क्वांटम एन्टेन्गलमेंट : प्रकृति के परमाण्विक स्तर पर विचित्र व्यवहार की कड़ी मे है क्वांटम एन्टेन्गलमेंट (Quantum Entanglement)। एन्टेन्गलमेंट का शाब्दिक अर्थ होता है उलझाव, गुंथा होना। यह एक अजीब व्यव्हार है। इसके अंतर्गत जब दो परमाण्विक कण (इलेक्ट्रान, फोटान, क्वार्क, परमाणु अथवा अणु) एक दूसरे से भौतिक रूप से टकरा्ने के पश्चात अलग हो जाते है, वे एक एन्टेंगल्ड(अन्तःगुंथित) अवस्था मे आ जाते है। इन दोनो कणो की क्वां‍टम यांत्रिकी अवस्थायें समान होती है अर्थात उनका स्पिन,संवेग, ध्रुवीय अवस्था समान होती है। एन्टेंगल्ड अवस्था मे आने के बाद यदि एक कण की अवस्था मे परिवर्तन होने पर वह परिवर्तन दूसरे कण पर स्वयं हो जाता है, चाहे दोनो कणो के मध्य कितनी भी दूरी हो। सरल शब्दो मे एन्टेंगल्ड कण-युग्म के एक कण पर आप के द्वारा किया गया परिवर्तन दूसरे कण पर भी परिलक्षित होता है।
4. कुछ भौतिक गुणों का क्वांटाइजेशन : पदार्थ से ऊर्जा का प्रवाह सतत रूप से न होकर ऊर्जा के पैकेट मे होता है। ऊर्जा के इन पैकेट्स को फोटान कहा जाता है।
क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model)
मानक प्रतिकृति (Standard Model)
मानक प्रतिकृति (Standard Model)
क्वांटम सिद्धांत के विभिन्न भागो को मानक प्रतिकृति (Standard Model) द्वारा व्यवस्थित रूप दिया गया है, यह मूलभूत बल तथा मूलभूत कणो के सम्पूर्ण ज्ञात सिद्धांतो का समावेश करता है। यह सिद्धांत 20 वी शताब्दी की शुरुवात से लेकर मध्य तक विकसीत हुआ है तथा 1970 मे क्वार्क के आस्तित्व के प्रायोगिक निरीक्षण के पश्चात मान्य हुआ है। इसके पश्चात इस सिद्धांत द्वारा अनुमानित बाटम क्वार्क (1977), टाप क्वार्क(1995) तथा टाउ न्युट्रीनो(2000) की खोज के बाद इस सिद्धांत को प्रामाणिकता मिली है। इस सिद्धांत द्वारा विभिन्न प्रायोगीक निरीक्षणो को सैद्धांतिक रूप से सत्यापन करने मे मिली सफलता के कारण इसे पूर्ण सिद्धांत माना जाता है।
सैद्धांतिक वैज्ञानिको के लिए मानक प्रतिकृति यह क्वांटम फ़ील्ड सिद्धांत का एक प्रतिमान है जो विभिन्न भौतिक प्रक्रियाये जैसे सहम सममीती विखंडन(Spontaneous Symmetry Breaking) असंगति की व्याख्या करता है।
इस मानक प्रतिकृति के पिछे 1960 मे शेल्डन ग्लाशो की विद्युत चुंबक और कमजोर नाभिकिय बल को एकीकृत करने वाली खोज रही है। 1967 मे स्टीवन वेनबर्ग तथा अब्दूस सलाम ने शेल्डन ग्लाशो के इलेक्ट्रोवीक सिद्धांत(विद्युत-चुंबक-कमजोर नाभिकिय बल एकीकृत सिद्धांत) मे हीग्स मेकेनिज्म को जोडा और यह मानक प्रतिकृती(Standard Model) आस्तित्व मे आयी।
मानक प्रतिकृति (Standard Model) : स्ट्रींग सिद्धांत इस चित्र मे दर्शाये गये "थ्योरी आफ एवरीथींग" का सबसे बड़ा उम्मीदवार है।
मानक प्रतिकृति (Standard Model) : स्ट्रींग सिद्धांत इस चित्र मे दर्शाये गये "थ्योरी आफ एवरीथींग" का सबसे बड़ा उम्मीदवार है।
मानक प्रतिकृति मे हीग्स मेकेनिज्म सभी मूलभूत कणो को द्रव्यमान प्रदान करता है। इसमे W तथा Z बोसान के अतिरिक्त सभी फर्मीआन (क्वार्क तथा लेप्टान) का भी समावेश है। 1973-74 मे जब प्रयोगो के अनुसार यह प्रमाणित हो गया की हेड्रान आंशिक रूप से आवेशित क्वार्क से बने होते है ,इस सिद्धांत मे मजबूत नाभिकिय बल का भी समावेश कर दिया गया।
मानक प्रतिकृति मे मूलभूत कणो कणो को दो वर्गो मे बांटा गया है : पदार्थ का निर्माण करने वाले फर्मीयान, बलो का वहन करने वाले बोसान।

1.फर्मीयान
मानक प्रतिकृति(Standard Model) मे 1/2 स्पिन के 12 मूलभूत कण है जिसे फर्मियान(fermions) कहते है। स्पिन-सांख्यकी प्रमेय(spin-statistics theorem) के अनुसार फर्मियान पाली व्यतिरेक सिद्धांत(Pauli exclusion principle) का पालन करते है। जिसका अर्थ है कि एक साथ एक अवस्था ( स्थिति तथा ऊर्जा) मे एक से ज्यादा कण नही रह सकते। हर फर्मियान(कण) का एक प्रतिकण(anti-particle) होता है।
मानक प्रतिकृति के कणो का वर्गीकरण उनके आवेश के अनुसार किया गया है। इसमे छः क्वार्क (अप, डाउन,चार्म, स्ट्रेंज, टाप, बाटम) तथा छः लेप्टान (इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान न्युट्रीनो, म्युआन,म्युआन न्युट्रीनो,टाउ, टाउ न्युट्रीनो) का समावेश है।
क्वार्क को परिभाषित करने वाला गुणधर्म उनके द्वारा रंगीन आवेश का वहन है और वे मजबूत नाभिकिय बल द्वारा प्रतिक्रिया करते है। एक गुणधर्म रंग बंधन(color confinement), उन्हे निरंतर रूप से एक दूसरे से बांधे रखता है, जिससे रंगहीन(या सफेद) कण का निर्माण होता है। इन रंगहीन कणो मे एक क्वार्क तथा एक प्रतिक्वार्क(मेसान) से बने हेड्रान(hadrons) कण या तीन क्वार्क से बने बायरान(baryons) कण होते है। प्रोटान और न्युट्रान दो सबसे ज्यादा जाने पहचाने सबसे कम द्रव्यमान वाले बायरान कण है। क्वार्क विद्युत आवेश तथा कमजोर समभारिक स्पिन वाले कण है, इस कारण क्वार्क अन्य फर्मीयान कणो से विद्युत चुंबकिय बल से तथा कमजोर नाभिकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
शेष: छः फर्मीयान कणो का रंग नही होता है और उन्हे लेप्टान कहते है। तीन न्युट्रीनो कण मे विद्युत आवेश भी नही होता है, जिससे उनकी जांच कमजोर नाभिकिय बल से ही की जा सकती है और इससे उन्हे जांच कर पाना अत्यंत कठीन हो जाता है। अन्य विद्युत आवेशीत लेप्टान (इलेक्ट्रान, म्युआन तथा टाउ) विद्युतचुंबकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
2.गाज बोसान
मानक प्रतिकृति मे गाज बोसान मजबूत नाभिकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा विद्युत चुंबक बल का वहन करने वाले बल वाहक कणो के रूप मे जाने जाते है। भौतिकी मे बल का अर्थ एक कण द्वारा दूसरे कण पर डाला गया प्रभाव है। क्वांटम के अनुसार मूलभूत बल पदार्थ कणो के मध्य बलवाहक कणो के आदानप्रदान का परिणाम है। बोसान पाली के व्यतिरेक सिद्धांत का पालन नही करते है, इस कारण बलवाहक कणो के घनत्व की कोई सीमा नही है। विभिन्न तरह के बोसान निन्नलिखित है:
  1. फोटान : यह विद्युतचुंबक बल का वाहक कण है और विद्युत आवेशीत कणो के मध्य आदान प्रदान होता है। इसका द्रव्यमान नही है और क्वांटम इलेक्ट्रोडायनेमिक्स द्वारा इसकी पूर्ण तरीके से व्याख्या संभव है।
  2. W+, W− तथा Z गाज बोसान: यह भिन्न तरह के कणो(क्वार्क और लेप्टान) के मध्य कमजोर नाभिकिय बलो के लिए उत्तरदायी है। ये कण भारी होते है।
  3. ग्लूआन द्वारा रंगीन आवेशित कणो के मध्य मजबूत नाभिकिय बल उत्पन्न होता है। इन कणो का द्रव्यमान नही होता है।
  4. हिग्स बोसान :यह एक परिकल्पित कण है, इसे प्रयोगशाला मे अब तक देखा नही गया है। यह एक भारी कण है । यह मानक प्रतिकृति के सिद्धांत के आधार स्तंभो मे से एक है।
अब आधुनिक भौतिकी मे दो सफल सिद्धांत है, बड़े विशाल पैमाने पर पिंडों के व्यवहार की व्याख्या करने वाला सिद्धांत – साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत तथा परमाण्विक स्तर पर के व्यवहार की व्याख्या करने वाला सिद्धांत – क्वांटम सिद्धांत। दोनो सिद्धांत अपने क्षेत्र मे सफल सिद्धांत है। दोनो के पूर्वानुमान सटीक रहे है। दोनो सिद्धांतो को प्रायोगिक रूप से मान्यता मिली है।
लेकिन दोनो सिद्धांतो का सह अस्तित्व संभव नही है! ऐसा क्यों ? अगले भाग मे…
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अभी तक स्ट्रींग सिद्धांत की भूमिका ही बन रही है, अगले लेख से स्ट्रींग सिद्धांत का परिचय होगा…..

Thursday, November 3, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory):सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन

18 वीं तथा 19 वी शताब्दी मे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत सर्वमान्य सिद्धांत बन चूका था। यूरेनस की खोज तथा ग्रहो की गति और पथ की सफल व्याख्या इसे प्रमाणित करती थी। नेपच्युन के खोजे जाने के पश्चात यह पाया गया था कि इसके पथ मे एक विचलन है जो किसी अज्ञात ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से संभव है। इस विचलन आधारित गणना से अज्ञात ग्रह के पथ और स्थिति की गणना की गयी, इसके परिणामो द्वारा प्राप्त स्थान पर यूरेनस खोज निकाला गया था। इन सबके अतिरिक्त यह सिद्धांत तोप से दागे जाने वाले गोले की गति और पथ की गणना मे भी सक्षम था।
यह एक सफल सिद्धांत था, जिसके आधार मे कैलकुलस आधारित गणितीय माडेल था।
यह स्थिती 20 वी शताब्दी के प्रारंभ तक रही, जब 1905 -1915 के मध्य मे अलबर्ट आइंस्टाइन ने अपने विशेष और साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत से भौतिकी की जड़े हिला दी। पहले उन्होने सिद्ध किया कि न्यूटन के तीनो गति के नियम आंशिक रूप से सही है, वे गति के प्रकाशगति तक पहुंचने पर कार्य नही करते है। उसके पश्चात उन्होने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी आंशिक रूप से सही बताया, यह भी अत्यधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे कार्य नही करता है।

आइंस्टाइन जानते थे कि न्यूटन के सिद्धांत गतिशील पिंडो की व्याख्या करते है और वे ग्रहो और अन्य आकाशीय पिंन्डो की गति की व्याख्या करने मे सफल रहे है। वहीं पर मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय तरंगों के साथ साथ प्रकाश के व्यवहार की व्याख्या करने मे सफल रहे हैं। यह दोनो सिद्धांत उस समय भौतिकी के स्तम्भ थे। लेकिन आइंस्टाइन ने पाया कि ये दोनो सिद्धांत एक दूसरे के विरोध मे है और इन स्तम्भो मे से एक का ध्वस्त होना आवश्यक है।
न्यूटन के अनुसार आप प्रकाश से तेज चल सकते है क्योंकि प्रकाश गति मे कोई विशेषता नही है। इसका अर्थ यह है कि जब आप प्रकाश की धारा के बाजू मे दौड लगायेंगे तो प्रकाश धारा को स्थायी रहना चाहीये। यह प्रकाश धारा किसी जमी हुयी धारा के जैसे होगी जिसे आज तक किसी ने देखा नही है। न्यूटन का सिद्धांत सामान्य बुद्धि से मेल नही खाता था। आइन्स्टाइन ने मैक्सवेल के समीकरणो मे एक ऐसी विशेषता खोज निकाली जो मैक्सवेल स्वयं नही जानते थे।आइन्स्टाइन ने पाया कि प्रकाशगति एक स्थिरांक है। आप कितनी ही गति से चले प्रकाश अपनी स्थिर गति से ही आप से दूर जायेगा। यदि आप किसी गेंद को किसी गतिवान कार से फेंकते है तब उस गेंद की गति मे कार की गति जुड जाती है लेकिन प्रकाश के साथ ऐसा नही होता, वह अपनी स्थिर गति से ही आपसे दूर जायेगा। प्रकाश की गति निरिक्षक के सापेक्ष होगी और हमेशा स्थिर होगी।
समय की गति ब्रह्माण्ड मे समान नही होती है।
समय की गति ब्रह्माण्ड मे समान नही होती है।
इसी तरह न्यूटन के सिद्धांतो मे समय ब्रह्माण्ड हर स्थान पर समान गति से था। पृथ्वी का एक सेकंड, मंगल पर एक सेकंड के बराबर था. लेकिन आइन्स्टाइन के अनुसार समय की गति स्थानानुसार परिवर्तित होती है, पृथ्वी का एक सेकंड , मंगल के एक सेकंड के बराबर नही है। प्रकाशगति के तुल्य चलने पर समय धीमा हो जाता है, उसी तरह अत्याधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे भी वह थम जाता है।
भारी पिंडों द्वारा काल-अंतराल मे निर्मित विकृति
भारी पिंडों द्वारा काल-अंतराल मे निर्मित विकृति
सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार काल (समय) और अंतराल (अंतरिक्ष) अलग नही है, दोनो एक दूसरे से संबंधित है। काल और अंतराल मिलकर ब्रह्माण्ड मे एक कपड़े जैसी संरचना का निर्माण करते है। पदार्थ के द्रव्यमान के कारण इस काल-अंतराल मे विकृति निर्मित होती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी तने हुये कपड़े की चादर पर एक भारी गेंद लुढ़का दी जाये। यह गेंद चादर पर एक विकृति निर्माण करेगी। सूर्य के द्वारा काल-अंतराल की चादर मे मे आयी इस विकृति के कारण ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। जैसे उपरोक्त चादर पर कुछ कंचे डालने पर वह भारी गेंद के चारो ओर परिक्रमा करते हुये भारी गेंद की ओर स्पायरल पथ से जायेंगे।
न्यूटन के नियमों से यह कहीं से पता नही चलता कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही है जो कि अलबर्ट आइंस्टाइन प्रसिद्ध समीकरण से स्पष्ट है।
ध्यान दें कि आइंस्टाइन ने न्यूटन को गलत नही साबित किया, उन्होने न्यूटन के सिद्धांतो की सीमा तय की। उन्होने इस सीमा के पश्चात न्यूटन के सिद्धांतो का विस्तार किया।
आइंस्टाइन के विशेष तथा साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के प्रस्तुति के पश्चात लाखों प्रयोगो ने उन्हे प्रमाणित किया है। रोजाना प्रयोग मे आने वाली जी पी एस प्रणाली इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जीपीएस के उपग्रहो मे लगी घड़ियाँ पृथ्वी की घड़ियाँ से भिन्न गति से चलती है। यह जी पी एस प्रणाली अचूक स्थिती दिखाने मे समर्थ है और इसमे एक सेंटीमीटर की भी गलती नही होती है। इस सिद्धांत द्वारा प्रस्तावित और प्रयोगो द्वारा प्रमाणित कुछ मुख्य उदाहरण:
1.बुध की कक्षा : बुध की कक्षा मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से अनुमानित कक्षा से एक विचलन है। न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत इसे समझा जा सकता है लेकिन आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद से की गयी कक्षा की गणना और निरीक्षित की गयी कक्षा मे कोई अंतर नही है। दोनो सिद्धांतो मे यह अंतर बहुत कम है लेकिन स्पष्ट है। यह अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की सीमा दर्शाता है।
अत्यधिक गुरुत्वीय क्षेत्र का प्रकाश पर प्रभाव
अत्यधिक गुरुत्वीय क्षेत्र का प्रकाश पर प्रभाव
2. न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के विपरीत लेकिन आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश किरणे अत्याधिक गुरुत्व मे मुड़ जाती है। इसे सूर्यग्रहणो मे देखा जा चुका है, इस प्रभाव के कारण सूर्य के पीछे के तारे सूर्यग्रहण के दौरान देखे जा सकते है। गुरुत्वीय लेंसींग भी इसी का एक उदाहरण है।
3. साधारण सापेक्षतावाद के अनुसार मजबूत गुरुत्वीय क्षेत्र से आते हुये प्रकाश मे लाल विचलन होना चाहिये। यह निरीक्षण मे सही पाया गया है और इसकी मात्रा भी साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना कीये गये मूल्य के समान है।
दो श्याम वीवरों द्वारा एक दूसरे की परिक्रमा से उत्पन्न गुरुत्विय तरंगे
दो श्याम वीवरों द्वारा एक दूसरे की परिक्रमा से उत्पन्न गुरुत्विय तरंगे
एक सिद्धांत जिसका प्रायोगिक सत्यापन अभी शेष है , वह है गुरुत्वीय तरंगे। विद्युत चुंबकीय क्षेत्र की तरंगे होती है जो ऊर्जा का वहन करती है, इन्ही तरंगो को प्रकाश कहा जाता है। इसी तरह से गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र मे ऊर्जा वहन करने वाली गुरुत्वीय तरंगे होना चाहीये। इन तरंगो को काल-अंतराल की वक्रता मे लहरों के रूप मे समझा जा सकता है, जोकि प्रकाशगति से गति करती हैं।
आइंस्टाइन का सापेक्षतावाद का सिद्धांत उस समय के ज्ञात मूलभूत बल गुरुत्वाकर्षण तथा विद्युत-चुंबकीय बल की सफल व्याख्या करता था। यह सिद्धांत प्रकाश के व्यवहार, समय के प्रवाह की भी सफल व्याख्या करता था। अधिकतर वैज्ञानिक मानते थे कि अब भौतिकी मे जानने योग्य ज्यादा कुछ शेष नही है।
लेकिन 1911 मे रदरफोर्ड द्वारा इलेक्ट्रान की खोज तथा उसके पश्चात प्रोटान, न्यूट्रॉन की खोज के पश्चात क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ।

Wednesday, October 26, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory):सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन


स्ट्रींग सिद्धांत यह कण भौतिकी का एक ऐसा सैद्धांतिक ढांचा है जो क्वांटम भौतिकी तथा साधारण सापेक्षतावाद के एकीकरण का प्रयास करता है। यह महाएकीकृत सिद्धांत(Theory of Everything) का सबसे प्रभावी उम्मीदवार सिद्धांत है जोकि सभी मूलभूत कणो और बलो की गणितीय व्याख्या कर सकता है। यह सिद्धांत अभी परिपूर्ण नही है और इसे प्रायोगिक रूप से जांचा नही जा सकता है लेकिन वर्तमान मे यह अकेला सिद्धांत है जो महाएकीकृत सिद्धांत होने का दावा करता है।
इस लेखमाला मे हम इस सिद्धांत को समझने का प्रयास करेंगे। इस लेख माला के विषय होंगे
  • सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन
  • सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन
  • क्वांटम भौतिकी और गुरुत्वाकर्षण
  • स्ट्रिंग सिद्धांत क्यों ?
  • स्ट्रिंग सिद्धांत क्या है?
  • कितने स्ट्रिंग सिद्धांत है?
  • क्या ये सभी स्ट्रिंग सिद्धांत एक दूसरे संबंधित है?
  • क्या इससे ज्यादा मूलभूत सिद्धांत भी है?
  • स्ट्रिंग सिद्धांत के अनसुलझे प्रश्न और आलोचना

सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी गणित का प्रयोग कर प्रकृति के कुछ पहलूओं की व्याख्या करते है। आइजैक न्युटन को पहला सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी माना जाता है, जबकि उनके समय मे उनके व्यवसाय को प्रकृति का दर्शनशास्त्र(natural philosophy) कहा जाता था।
बीज गणित और ज्यामिति से स्थिर पिंडो के बारे मे गणितीय गणना संभव है।
बीज गणित और ज्यामिति से स्थिर पिंडो के बारे मे गणितीय गणना संभव है।
न्युटन के युग के समय तक बीजगणित(algebra) और ज्यामिति(Geometry) के प्रयोग से वास्तुकला के अद्भूत भवनो का निर्माण हो चूका था जिनमे युरोप के महान चर्चो का भी समावेश है। लेकिन बीजगणित तथा ज्यामिति स्थिर वस्तु की व्याख्या करने मे ही सक्षम है। गतिवान वस्तुओं या अवस्था परिवर्तन करने वाली वस्तुओं की व्याख्या के लिए न्युटन ने कैलकुलस(Calculus) की खोज की थी।( महान गणीतज्ञ लिब्निज(Leibniz) ने न्युटन के साथ ही कैलकुलस की खोज की थी और इसकी खोज के श्रेय के लिये दोनो के मध्य कटु विवाद भी रहा था। लेकिन वर्तमान मे इसका श्रेय न्युटन को ही दिया जाता है। भारतीय गणितज्ञ माधवाचार्य ने कैलकुलस के प्रारंभिक स्वरूप की खोज 14 वी शताब्दी मे की थी।)
मानव को चमत्कृत करनेवाली गतिमान वस्तुओं के सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और तारों का समावेश रहा है। न्युटन की नयी गणितीय खोज कैलकुलस और गति के नियमो ने मिलकर गुरुत्वाकर्षण के एक गणितिय माडेल का निर्माण किया था जोकि ना केवल आकाश मे ग्रहों तारो की गति की व्याख्या करता था बल्कि दोलन तथा तोप के गोलो की गति की भी व्याख्या करता था।
गतिशील पिंडो से संबधित गणनाओं के लिए कैलकुलस की आवश्यकता होती है।
गतिशील पिंडो से संबधित गणनाओं के लिए कैलकुलस की आवश्यकता होती है।
वर्तमान की सैद्धांतिक भौतिकी ज्ञात गणित की सीमाओं के अंतर्गत कार्य करती है, जिसमे आवश्यकता के अनुसार नयी गणित का आविष्कार भी शामिल है जैसे न्युटन ने कैलकुलस का आविष्कार किया था।
न्युटन एक सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रायोगिक वैज्ञानिक भी थे। उन्होने अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुये कई बार लंबी अवधी मे कार्य किया था, जिससे कि वह समझ सके की प्रकृति का व्यवहार कैसा है और वे उसकी व्याख्या कर सकें। न्युटन के गति के नियम ऐसे नियम नही है कि प्रकृति उनके पालन करने के लिये बाध्य हो, वे प्रकृति के व्यवहार के निरीक्षण का परिणाम है और उस व्यवहार का गणितिय माडेल मात्र है। न्युटन के समय मे सिद्धांत और प्रयोग एक साथ ही चलते थे।
वर्तमान मे सिद्धांत(Theoritical) और निरीक्षण/प्रायोगिक(Observation/Experimental) भौतिक विज्ञान के दो भिन्न समुदाय है। प्रायोगिक विज्ञान और सैद्धांतिक विज्ञान दोनो ही न्युटन के काल की तुलना मे अधिक जटिल हैं। सैद्धांतिक वैज्ञानिक प्रकृति के व्यवहार को गणितीय नियमो और गणनाओं से समझने का प्रयास करते हैं जीनका वर्तमान तकनीक की सीमाओं के फलस्वरूप प्रयोगों के द्वारा निरीक्षण संभव नही है। ऐसे कई सैद्धांतिक वैज्ञानिक जो आज जीवित है, अपने कार्य के गणितीय माडेल के प्रायोगिक सत्यापन के लिए शायद जीवित नही रहेंगे। वर्तमान सैद्धांतिक वैज्ञानिको ने अपने कार्य की अनिश्चितता और संशयात्मक स्थिति के मध्य मे जीना सीख लीया है।
गति के नियम तथा गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए श्रेय न्युटन को दिया जाता है। उन्होने इन नियमो को अपनी महान पुस्तक Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica(अंग्रेजी मे Mathematical Principles of Natural Philosophy, हिन्दी मे प्रकृति दर्शनशास्त्र के गणितिय नियम) मे प्रस्तुत किया है। इन नियमों को विश्व के सम्मुख लाने का श्रेय एडमंड हेली को जाता है, एडमंड हेली ने ही न्युटन को इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया था। एडमंड हेली को आज उस धुमकेतु के नाम से जाना जाता है जिसकी खोज उन्होने नही की थी। उन्होने केवल यह बताया था कि सन 1456,1531 तथा 1607 मे दिखायी दिया धूमकेतु एक ही है और वह 1758 मे वापिस आयेगा। इससे हेली की महानता कम नही होती, वे एक महान खगोल वैज्ञानिक थे और कई अन्य महत्वपूर्ण खोजें भी की थी। एक शाम राबर्ट हूक (कोशीका की खोज करने वाले वैज्ञानिक), खगोल वैज्ञानिक क्रिस्टोफर व्रेन तथा हेली लंदन मे शाम का खाना खा रहे थे। उनकी चर्चा ग्रहो की गति की ओर मुड़ गयी। उस समय तक ज्ञात था कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृत्त मे ना कर दिर्घवृत्त(ellipse) मे करते है। लेकिन ऐसा क्यों है, किसी को ज्ञात नही था। राबर्ट हूक जोकि दूसरो के आइडीये का श्रेय लेने के लिए कुख्यात थे, ने दावा किया इसका कारण उन्हे ज्ञात है लेकिन वह उसे उस समय प्रकाशित नही करेंगे। हेली इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आतुर थे।
उन्होने न्युटन से संपर्क किया। न्युटन को एक सनकी, चिड़चिड़ा व्यक्तित्व माना जाता है लेकिन आशा के विपरीत न्युटन हेली से मिलने तैयार हो गये। इस मुलाकात मे हेली ने न्युटन से पूछा कि ग्रहो की गति कैसी होती है। न्युटन के उत्तर दिया की वे दिर्घवृत्त मे परिक्रमा करते हैं। हेली जो कि खगोल वैज्ञानिक थे, इस उत्तर से चकित रह गये। उन्होने न्युटन से पुछा कि वे कैसे जानते है कि ग्रह दिर्घवृत्त मे परिक्रमा करते है। न्युटन का उत्तर था कि उन्होने इसकी गणना की है। हेली ने उन्हे अपनी गणना दिखाने कहा। अब न्युटन महाशय को यह पता नही कि उन्होने वह गणना का कागज कहां रखा है! यह कुछ ऐसा है कि आपने कैंसर का इलाज खोज लिया है लेकिन उस इलाज को कहीं रख के भूल गये। हेली ने हार नही मानी, उनके अनुरोध पर न्युटन ने फिर से गणना करने का निर्णय लिया। न्युटन ने इस बार पूरा समय लेते हुये दो वर्षो की मेहनत से अपनी महान पुस्तक Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica लिखी। इसके प्रकाशन मे भी कई रोढे़ आये, एडमंड हेली ने इस पुस्तक के प्रकाशन का खर्च उठाया। इस अकेली पुस्तक ने ब्रह्माण्ड को देखने का पूरा नजरिया पलट कर रख दीया।
इस पुस्तक ना केवल गति के नियमो को प्रस्तुत करती है, बल्कि गुरुत्वाकर्षण की भी व्याख्या करती है। इसके नियम हर गतिशील पिंड की गति और पथ की व्याख्या करते है।
अगले भाग मे सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन

Friday, October 21, 2011

समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


क्या आप जानते है कि समय यह अंग्रेजी भाषा मे सबसे ज्यादा प्रयुक्त संज्ञा है। समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य“, यह शीर्षक कुछ दार्शनिकअंदाज लिये हुये है, लेकिन आप तो विज्ञान से संबधित चिठ्ठे पर है। समय शायद एक ऐसा विषय है जो हर क्षेत्र मे उपस्थित है, धर्मदर्शन शास्त्र या विज्ञान। पिछले कुछ समय से मै भौतिकी से संबधित लेखो को पढ़ रहा हूं, उनपर लेख लिख रहा हूं, कुछ शब्द जो बार बार आते है, वे है समय“, “अंतराल/अंतरिक्षऔर ब्रह्माण्ड। यह लेख समय पर कुछ टिप्पणियों का संग्रहण है।
1.समय का आस्तित्व है। यह एक बहुत साधारण सा लगने वाला लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या समय का अस्तित्व है? हां समय का अस्तित्व है, आखिर हम लोग अपनी अलार्म घड़ीयोँ मे से समय निर्धारित करते ही है! समय ब्रह्माण्ड को क्षणो को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे रखता है। ब्रह्माण्ड हर क्षण भिन्न अवस्था मे रहता है, ब्रह्माण्ड की किसी भी क्षण की अवस्था किसी अन्य क्षण की अवस्था के समान नही होती है। यदि समय इन अवस्थाओं को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे न रखे तो अनुमान लगाना कठिन है कि कैसी अव्यवस्था होगी ? वास्तविक प्रश्न है कि क्या समय मूलभूत है अथवा उत्पन्न है? एक समय हम मानते थे कि तापमान प्रकृति का बुनियादी गुणधर्म है, लेकिन अब हम जानते है कि वह परमाणु के आपसी टकराव से उत्पन्न होता है। लेकिन क्या समय की उत्पत्ती होती है, या वह ब्रह्माण्ड का बुनियादी गुणधर्म है ? इसका उत्तर कोई नही जानता है। लेकिन मै अपनी शर्त इसके बुनियादी गुणधर्म होने पर लगाउंगा लेकिन इसे सिद्ध करने हमे क्वांटम गुरुत्वको समझना जरूरी है।
2.भूतकाल और भविष्यकाल भी समान रूप से वास्तविक होते है। इस तथ्य को सभी स्वीकार नही करते है, लेकिन यह तथ्य है। सहज ज्ञान से हम मानते है कि केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्थायी है और इतिहास मे दर्ज है, जबकि भविष्य अभी तक आया नही है। लेकिन भौतिकी के अनुसार भूतकाल और भविष्य की हर घटना वर्तमान मे अंतर्निहित है। इसे रोजाना के कार्यो मे देखना कठिन है क्योंकि हम किसी भी क्षण मे ब्रह्माण्ड की अवस्था नही जानते है, ना ही कभी जान पायेंगे। लेकिन समीकरण कभी गलत नही होते है। आइंस्टाइन के अनुसार
अब तक के तीन आयामो मे अस्तित्व के विकास की बजाय चार आयामो को भौतिक वास्तविकता के रूप मे स्वीकार करना ज्यादा प्राकृतिक है।
इसमे चतुर्थ आयाम समय है।
3.हम किसी का समय का अनुभव भिन्न होता है। यह भौतिकी तथा जीव शास्त्र दोनो स्तरों पर सत्य है। भौतिकी मे इतिहास मे हमने न्युटन के समय के दृष्टिकोण को देखा है जिसमे समय सभी के लिए सार्वभौमिक और समान था। लेकिन आइंस्टाइन ने यह प्रमाणित कर दिया कि समय भिन्न भिन्न स्थानो पर गति और गुरुत्व के अनुसार भिन्न होता है। विशेषतः यह प्रकाशगति के समीप यात्रा करने वाले व्यक्ति या श्याम वीवर के जैसे अत्याधिक गुरुत्व वाले स्थानो पर थम सा जाता है। प्रकाशगति से यात्रा करने वाला व्यक्ति यदि पृथ्वी पर वापिस आये तो उसके एक वर्ष मे पृथ्वी पर हजारो वर्ष व्यतित हो चुके होंगे। जैविक या मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी किसी परमाणु घड़ी द्वारा मापा गया समय हमारी आंतरिक लय और स्मृतियोँ के संग्रह से ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। समय का प्रभाव किसी घड़ी से ना होकर व्यक्ति पर, उसके अनुभवो पर निर्भर करता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जैसे हम उम्रदराज होते है समय तेजी से व्यतित होता है।
4.आप भूतकाल मे जीते है। सटीक तौर पर कहा जाये तो आप 80 मीलीसेकंड भूतकाल मे जीते है। यदि आप एक हाथ से नाक को छुये और ठीक उसी समय दूसरे हाथ से पैरो को छुये, आप को महसूस होगा कि दोनो कार्य एक साथ हुये है। लेकिन पैरो से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाला समय,नाक से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाले समय से ज्यादा है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमारी आंतरिक चेतना का सुचना जमा करने मे समय लगता है तथा हमारा मस्तिष्क सारी आगत सुचनाओं के इकठ्ठा होते तक प्रतिक्षा करता है, उसके पश्चात उसे वर्तमानके रूप मे महसूस करता है। हमारे मस्तिष्क का यह वर्तमान’ वास्तविक वर्तमान से 80 मीलीसेकंड पिछे होता है, यह अंतराल प्रयोगों द्वारा प्रमाणित है।
5.आपकी स्मृति आपकी अपनी मान्यता से कमजोर होती है। आपका मस्तिष्क भविष्य की कल्पना के लिये ठीक वैसी ही प्रक्रिया अपनाता है जब आप किसी भूतकाल की घटना को याद करते है। यह प्रक्रिया किसी लिखे नाटक के मंचन की बजाये वीडीयो को रीप्ले करने के जैसे ही है। किसी कारण से यदि नाट्य लेख गलत हो तो आप अपनी मिथ्या स्मृति का सहारा लेते है जो कि वास्तविकता के जैसा ही प्रतित होता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि न्यायालयों मे चश्मदीद गवाहो के बयान सबसे कम भरोसेमंद होते है।
6.हमारी चेतना अपनी समय के साथ हेरफेर की क्षमता पर निर्भर होती है। हमे पूर्णतः ज्ञात नही है लेकिन हमारी चेतना के लिये काफी सारी संज्ञानात्मक क्षमतायें अनिवार्य होती है। लेकिन हमारी चेतना समय तथा प्रायिकता के साथ हेरफेर करने मे सक्षम है और यह मानव चेतना का एक महत्वपूर्ण गुण है। जलचर जीवन के विपरीत, धरती के जीव जिनकी दृश्य क्षमता सैकड़ो मीटर तक होती है, एक साथ कई पर्यायो पर विचार कर सर्वोतम को चुन सकने मे सक्षम है। वे भविष्य का पूर्वानुमान लगा सकते है। एक चीता 70-80 किमी की गति से रफ्तार से दौड़ते हुये चिंकारे की अगली अवस्था का अनुमान लगा कर छलांग लगा सकता है और दबोज सकता है। उसकी चेतना समय के साथ हेरफेर मे सक्षम है। व्याकरण की उत्पत्ती के साथ हम भविष्य की काल्पनिक स्थितियोँ का वर्णन कर सकते है। भविष्य की कल्पना की क्षमता की अनुपस्थिति मे चेतना का अस्तित्व ही संभव नही है।
7.समय के साथ अव्यवस्था बढती है। भूतकाल और भविष्य के हर अंतर के हृदय मे होते है स्मृति, बुढा़पा,कारण-कार्य-सिद्धांत, जो दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। किसी भौतिक विज्ञानी के शब्दो मे एन्ट्रोपी बढ़ रही है। व्यवस्था(कम एन्ट्रोपी) से अव्यवस्था(अधिक एन्ट्रोपी) की ओर बढने के एकाधिक पथ होते है, इसलिए एन्ट्रोपी का बढ़ना प्राकृतिक लगता है। आप किसी फुलदान को कितने ही सारे तरीकों से तोड़ सकते है। लेकिन भूतकाल की कम एन्ट्रोपी की व्याख्या के लिए हमे बिग बैंग (महाविस्फोट) तक जाना होगा। हमने उस समय के कुछ कठिन और जटिल प्रश्नो का उत्तर ज्ञात नही है जैसे : बिग बैंग के समय एन्ट्रोपी इतनी कम क्यों थी ? बढ़ती हुयी एन्ट्रोपी स्मृति, कारण-कार्य-सिद्धान्त और अन्य के लिये कैसे उत्तरदायी है?
8.जटिलता आती है और जाती है। इंटेलीजेंट डीजाइन के समर्थकों(क्रियेशनीस्ट) के अतिरिक्त अधिकतर व्यक्तियों को व्यवस्थित (कम एन्ट्रोपी) तथा जटिलता के मध्य अंतर समझने मे परेशानी नही होती है। एन्ट्रोपी बढती है अर्थात अव्यवस्था बढ़ती है लेकिन जटिलता अल्पकालिक होती है, वह जटिल विधियोँ से कम और ज्यादा होते रहती है। जटिल संरचनाओं के निर्माण का कार्य ही अव्यवस्था को बढा़वा देना है, जैसे जीवन का उद्भव। इस महत्वपूर्ण घटना को पूरी तरह से समझना अभी बाकि है।
9.उम्रदराज होने की विपरीत प्रक्रिया संभव है। हमारा उम्रदराज होना अव्यवस्था मे वृद्धि के सिद्धांत के अनुरूप ही है। लेकिन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे वृद्धी होना चाहीये, किसी वैयक्तिक भाग मे नही। किसी भाग मे अव्यवस्था मे कमी आ सकती है, बशर्ते सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे बढ़ोत्तरी हो। ऐसा ना हो तो किसी रेफ्रिजरेटर का निर्माण असंभव हो जाता। किसी जीवित संरचना के लिए समय की धारा को पलटना तकनीकी रूप से चुनौती भरा जरूर है लेकिन असंभव नही है। हम इस दिशा मे नयी खोज भी कर रहे है जिसमे स्टेम कोशीकायें के साथ साथ मानव पेशीयों का निर्माण भी शामील है। एक जीवविज्ञानी ने कहा था कि
आप और मै हमेशा जीवित नही रहेंगे, लेकिन अपने पोतों के लिए मै ऐसा नही कह सकता।
10.एक जीवन = एक अरब धड़कन : जटिल जैविक संरचनाओं की मृत्यु होती है। यह किसी व्यक्ति के लिए दुखद हो सकता है लेकिन प्रकृति के लिए यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है जो पुराने को हटाकर नये के लिए मार्ग बनाती है। इसके लिए एक साधारण परिमाण नियम है जो कि प्राणी चयापचय तथा उसके भार से संबधित है। बड़े प्राणी अधिक जीते है लेकिन उनकी चयापचय प्रक्रिया धीमी होती है और धड़कनो की गति धीमी होती है। छछूंदर से लेकर ब्लू व्हेल तक जीवन समान होता है, लगभग डेढ़ अरब धड़कने। समय सभी के सापेक्ष है, सभी की जीवन अवधि समान होती है। यह तब तक सत्य रहेगा जब तक आप इसके पहले वाले बिंदु मे सफलता हासील नही कर लेते!