Tuesday, January 31, 2012

स्ट्रींग सिद्धांत: विज्ञान या दर्शन ?


स्ट्रींग सिद्धांत ब्रह्माण्ड के अध्ययन और व्याख्या की एक क्रांतिकारी विधि है। यह हमारे ब्रह्माण्ड के हर पहलू की व्याख्या करती है, पदार्थ का निर्माण करने वाले कण तथा पदार्थ पर प्रतिक्रिया करने बलों की वह ऊर्जा की अत्यंत सुक्ष्म तंतुओ के रूप मे सफल व्याख्या करती है। स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा के अत्यंत सुक्ष्म तंतु या तंतुवलय इस ब्रह्माण्ड के छोटे परमाण्विक कणो से लेकर विशालकाय आकाशगंगा के व्यवहार तथा संरचना को समझने की मुख्य कुंजी है।
स्ट्रींग सिद्धांत के आलोचको का मानना है कि यह सिद्धांत “थ्योरी आफ एवरीथींग” के रूप मे असफल रहा है। इसके आलोचको मे  पीटर वोइट(Peter Woit) ली स्मोलीन(Lee Smolin)फिलीप वारेन एन्डरसन(Philip Warren Anderson)शेल्डन ग्लाशो (Sheldon Glashow)लारेंस क्राउस (Lawrence Krauss), तथा कार्लो रोवेल्ली(Carlo Rovelli) जैसे बड़े नाम है।
स्ट्रींग सिद्धांत की आलोचना के मुख्य बिंदु है :
  • अत्यधिक मात्रा मे ऊर्जा की आवश्यकता से क्वांटम  गुरुत्वाकर्षण के प्रायोगिक परीक्षण मे असमर्थता।
  • अत्यधिक रूप से संभव परिणामों के कारण पूर्वानुमान  मे असमर्थता।
  • पृष्ठभूमि स्वतंत्रता (background independence) का अभाव।

अत्यधिक मात्रा मे ऊर्जा की आवश्यकता

यह माना जाता है कि क्वांटम गुरुत्वाकर्षण के किसी भी सिद्धांत के प्रायोगिक परीक्षण के लिये अत्याधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो कि लार्ज हेड्रान कोलाईडर जैसे कण त्वरकों की क्षमता के बाहर है। इसके पीछे कारण यह है कि स्ट्रींग सिद्धांत की स्ट्रींग या तंतु प्लैंक दूरी से थोड़े ही बड़े होते है, जो कि प्रोटान की त्रिज्या से भी कम होती है। इतनी लघु दूरी पर के किसी भी प्रयोग के मापन हेतु अत्याधिक ऊर्जा चाहीये होती है। साधारण शब्दो मे क्वांटम गुरुत्वाकर्षण का प्रायोगिक परीक्षण कठिन है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल अन्य बलो की तुलना मे अत्यंत कमजोर है तथा क्वांटम प्रभाव प्लैंक स्थिरांक (h) द्वारा नियंत्रित होते है और वह भी एक सुक्ष्म राशी है जिसके फलस्वरूप क्वांटम गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अत्यंत कमजोर होता है।

कितने ब्रह्माण्ड ?

स्ट्रींग सिद्धांत के समीकरणों का एक हल(Solution) नही है, इसके बड़ी संख्या मे हल  होते है। इन हलों को जिन्हे स्ट्रींग निर्वात(String Vaccua) कहते है। ये स्ट्रींग-निर्वात एक दूसरे से इतने भिन्न होते है कि ये कम ऊर्जा पर दृश्यमान हर संभव स्वरूप का समावेश कर सकते है।
अभी तक इस सिद्धांत की निर्वात-संरचना(Vaccua Structure) को अच्छी तरह से समझा नही जा सका है।
स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार भिन्न मितस्थायी(meta-stable) स्ट्रींग निर्वात की संख्या असंख्य  हो सकती है। हर  एक निर्वात मे एक ब्रह्माण्ड संभव है और इन असंख्य निर्वातो मे  से 10520* निर्वात “हमारे ब्रह्माण्ड के जैसे” है। हमारे ब्रह्माण्ड के जैसे का अर्थ है कि इनमे भी 4 आयाम(4 dimension), विशाल प्लैंक पैमाना(large Plank Scale), गाज समूह(Gauge group) तथा चीराल(chiral) फर्मीयान है।  इनमे से प्रत्येक स्ट्रींग-निर्वात एक संभव ब्रह्माण्ड से संबधित है लेकिन वह दूसरे संभव ब्रह्माण्ड से भिन्न है अर्थात दूसरे संभव ब्रह्माण्ड से भिन्न तरह के कण तथा बल से बना है। हमारे ब्रह्मांड के लिये किस स्ट्रींग-निर्वात को चुना जाये एक अनसुलझा प्रश्न है। इस सिद्धांत मे कोई भी सतत कारक (continuous parameters ) नही है, इसमे संभव ब्रह्मांडो का एक बड़ा सा समूह है जो एक दूसरे से एकदम भिन्न है।
लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे अच्छा मानते है क्योंकि यह हमारे ब्रह्माण्ड के विभिन्न भौतिक स्थिरांको के लिए एक प्राकृतिक और सरल स्पष्टीकरण देता है, विशेष रूप से ब्रह्मांडीय स्थिरांक की लघु मूल्य का। इसके पिछे तर्क यह है कि अधिकतर अन्य ब्रह्माण्डो मे इन भौतिक स्थिरांको का मूल्य इस तरह है कि उसमे जीवन संभव नही है, हम सबसे ज्यादा मित्रवत ब्रह्माण्ड मे रहते है। यह तर्क पृथ्वी पर जीवन पर भी लागु किया जाता है कि क्यों पृथ्वी एक मध्यम आकार के तारे सूर्य की असंख्य संभव कक्षाओ मे से केवल गोल्डीलाक क्षेत्र वाले कक्षा मे है। इस तर्क को आगे बढ़ाते हुये आकाशगंगा के अपेक्षाकृत शांत और स्थिर क्षेत्र मे सौरमंडल पर भी लागु किया जाता है।

स्ट्रींग सिद्धांत विज्ञान या दर्शन ?

कुछ भौतिक विज्ञानी जिसमे कुछ स्ट्रींग सिद्धांत के समर्थकों का  भी समावेश है मानते है कि स्ट्रींग सिद्धांत के क्रांतिकारी विचार का सामान्य विज्ञान की तरह मान्यता प्राप्त करना एक नाज़ुक धागे के द्वारा लटका हुआ है। इस सिद्धांत का मूल ’स्ट्रींग अर्थात तंतु’ किसी भी परमाण्विक कण से छोटा है और इसे देखा जाना या इसका परीक्षण कर पाना असंभव है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या स्ट्रींग सिद्धांत की प्रायोगिक परीक्षण संभव है ?
शेल्डन ग्लाशो
शेल्डन ग्लाशो
वैज्ञानिक तौर पर किसी भी सिद्धांत के उपयोगी तथा मान्य होने के लिये, उस सिद्धांत द्वारा ऐसे पूर्वानुमान संभव होना चाहीये जिसका परीक्षण किया जा सके। इन पूर्वानुमानो को परीक्षण द्वारा प्रमाणित करना उस सिद्धांत को सहारा देता है जबकि परीक्षण मे असफलता दर्शाती है कि सिद्धांत गलत हो सकता है। जब तक इस तरह के परीक्षण संभव नही होते है, तब तक कोई भी सिद्धांत दार्शनिक (philosophical) ही होता है ,वैज्ञानिक (scientific)  नही ! स्ट्रींग सिद्धांत आधारित गणितीय सिद्धांत भले ही कुछ अनसुलझे धारणाओं की व्याख्या करने मे सक्षम हो लेकिन परीक्षणो की अनुपस्थिति मे इसे शायद ही कभी वैज्ञानिक सिद्धांत के तौर पर मान्यता मिले।
भौतिक विज्ञानी शेल्डन ग्लासो  ने एक साक्षात्कार मे कहा था :
स्ट्रींग सिद्धांत के वैज्ञानिको के पास एक दृढ़ तथा खूबसूरत लगने वाला जटिल सिद्धांत है लेकिन वह मेरी समझ से बाहर है। इस सिद्धांत द्वारा गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या करने वाला क्वांटम सिद्धांत प्राप्त होता है लेकिन उससे कोई भी पूर्वानुमान प्राप्त नही किया जा सकता। यह कहा जा सकता है कि इस सिद्धांत से ना कोई प्रयोग किया जा सकता है नाही कोई निरीक्षण किया जा सकता है, जिससे यह कह सके कि “आप गलत है।” यह एक सुरक्षित सिद्धांत है, हमेशा के लिये। मै आपसे पूछता हूं कि यह भौतिकशास्त्र का सिद्धांत है या दर्शनशास्त्र का ?

निर्वात ऊर्जा की व्याख्या मे असफलता

स्टीवन वेनबर्ग
स्टीवन वेनबर्ग
भौतिकशास्त्र के सामने सबसे बड़ा अनसुलझा प्रश्न है, ब्रह्मांडीय स्थीरांक(cosmological constant) अर्थात निर्वात की ऊर्जा है, इसे प्रकृति मे देखा जा चुका है लेकिन इसकी कोई व्याख्या नही है। स्ट्रींग सिद्धांत अपने क्रांतिकारी अवधारणाओ के बाद भी इसपर कोई रोशनी डालने मे असमर्थ है। यदि आप रिक्त अंतरिक्ष की समस्त ऊर्जा की गणना करे और हमारी भौतिकी द्वारा ज्ञात हर संभव तरंग का समावेश करें, एक अविश्वशीय रूप से विशालकाय ऊर्जा प्राप्त होती है, जो इतनी विशाल होती है कि उससे ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति मे विस्तार की व्याख्या संभव है। लेकिन प्रायोगिक परीक्षणो द्वारा प्राप्त निर्वात ऊर्जा का मूल्य अत्यंत कम है। कहीं कुछ ऐसी जटिल गणनाये होना चाहीये जिससे यह ऊर्जा निर्वात अंतरिक्ष मे लघु हो जाती है।
स्ट्रींग सिद्धांत से यह नही समझा जा सकता है कि निर्वात की ऊर्जा का प्रायोगिक परीक्षणो द्वारा प्राप्त मूल्य इतना कम क्यों है। स्ट्रींग सिद्धांत से इस जटिल प्रश्न के हल की आशा थी लेकिन वह भी इसे हल नही कर पा रहा है। स्टीवन वेनबर्ग के अनुसार यह स्ट्रींग सिद्धांत की सबसे बड़ी असफलता है।

स्ट्रींग सिद्धांत का भविष्य

इस सिद्धांत का भविष्य इस सिद्धांत के जैसे ही अस्पष्ट है। यह एक बेहतरीन गणितीय माडेल है जिसने अनेक प्रश्नो का उत्तर दिया है लेकिन कई नये प्रश्न भी खड़े किये है। इस सिद्धांत द्वारा परीक्षण के योग्य पूर्वानुमान न लगा पाने की असमर्थता इस पर कई प्रश्न चिह्न खड़े  करती है लेकिन यह सिद्धांत अभी तक पूरी तरह से विकसित नही हुआ है। भविष्य मे शायद यह सिद्धांत इन प्रश्न चिह्नो का उत्तर देने मे समर्थ हो।
(समाप्त) : यह श्रृंखला इस लेख के साथ समाप्त होती है। इस श्रृंखला के कुछ लेख जटिल हो गये है, उन लेखों को दोबारा सरल भाषा मे प्रस्तुत करने का मेरा मेरा प्रयास रहेगा।
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*10520  : 10 के पश्चात 520 शून्य

स्ट्रींग सिद्धांत: श्याम विवर


साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत(Theory of general relativity) के अनुसार अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप “श्याम विवर (Black Hole) का निर्माण होता है। इसके समीकरणो के अनुसार श्याम विवर के कई प्रकार होते है लेकिन सभी के कुछ समान गुण धर्म होते है। श्याम वीवर के आसपास एक विशेष क्षेत्र होता है जिसे घटना-क्षितिज (Event Horizon) कहते है और वह श्याम विवर को शेष विश्व से अलग करता है। श्याम वीवर का गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि प्रकाश समेत कोई भी पिंड घटना-क्षितिज की सीमा पारकरने के पश्चात श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण से बच नही सकता है। इस सिद्धांत के श्याम विवर की कोई विशेषता नही होती है, लेकिन उनकी व्याख्या कुछ निरीक्षण कीये जा सकने वाले कारको जैसे द्रव्यमान(mass),  आवेश(charge) तथा कोणीय संवेग (Angular momentum) से की जा सकती है।

स्ट्रींग सिद्धांत मे श्याम विवर
स्ट्रींग सिद्धांत मे श्याम विवर
श्याम विवर स्ट्रींग सिद्धांत की जांच करने के लिये विशेष “प्रयोगशाला” है, क्योंकि क्वांटम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव श्याम विवर जैसे विशालकाय छिद्र के लिये भी महत्वपूर्ण है। श्याम विवर सही अर्थो मे श्याम नही होते है क्योंकि उनसे भी विकिरण उत्सर्जित होता है, जिसे हाकींग विकिरण(Hawking Radiation) कहते है और यह उत्सर्जन घटना-क्षितिज के समीप के क्षेत्र मे होता है। स्ट्रींग सिद्धांत क्वांटम-गुरुत्व (quantum gravity) का समावेश करता है, जिससे इस सिद्धांत द्वारा श्याम विवर की भी व्याख्या संभव होना चाहीये। स्ट्रींग गति के समीकरणो के कुछ हल श्याम विवर हल की व्याख्या भी करते हैं।गति के ये समीकरण साधारण सापेक्षतावाद के समीकरणो के जैसे ही है लेकिन इनमे कुछ अतिरिक्त कारक है जो स्ट्रींग सिद्धांत से आते है। सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार कुछ श्याम विवर महासममीतीक भी होते है।
स्ट्रींग सिद्धांत के कुछ नाटकीय परिणामो मे श्याम विवर के लिये बेकेन्सटाइन-हाकींग एन्ट्रापी सूत्र(Bekenstein-Hawking entropy formula ) की व्युत्पत्ति है जोकि श्याम विवर का निर्माण करने वाली अत्यंत सूक्ष्म स्ट्रींग अवस्थाओं की गणना से प्राप्त है। बेकेन्सटाइन के अनुसार श्याम विवर के क्षेत्रफल नियम का पालन करते हैं जिसके अनुसार dM=K dA
A = घटना क्षितिज का क्षेत्रफल
K = अनुपात का स्थिरांक
M = श्याम विवर का द्रव्यमान
स्ट्रींग सिद्धांत और श्याम विवर संबंध
स्ट्रींग सिद्धांत और श्याम विवर संबंध
श्याम विवर का कुल द्रव्यमान ‘M’ स्थिर ऊर्जा(energy at rest) है, बेकेन्सटाइन के अनुसार यह उष्मा-गतिकी(Thermodynamics) के एन्ट्रापी के नियम dE= T dS के जैसे ही है। स्टीफ़न हाकींग ने सिद्ध किया कि श्याम विवर के तापमान की गणना T=4k से की जा सकती है। [k एक सतह के गुरुत्व का स्थिरांक है।] अर्थात किसी श्याम विवर की एन्ट्रापी को S=A/4 के रूप मे लिखा जा सकता है।एण्ड्र्यु स्ट्रीमींगर (Andrew Strominger)  तथाक्युमरीन वाफा(Cumrin Vafa)ने सिद्ध किया कि एन्ट्रापी के शुद्ध सूत्र की व्युत्पत्ति स्ट्रींग और D-ब्रेन के विन्यास की क्वांटम अवस्थाओं के ह्रास की गणना से की जा सकती है। यह व्युत्पत्ति स्ट्रींग सिद्धांत के श्याम विवर की व्याख्या करती है। यह एक अकाट्य प्रमाण था कि D-ब्रेन के द्वारा श्याम विवर के लघु दूरी युग्मन की व्याख्या संभव है। एण्ड्र्यु स्ट्रीमींगर तथा क्युमरीन वाफा द्वारा अध्ययन किये गये श्याम विवर को 5-ब्रेन, 1-ब्रेन तथा 1-ब्रेन तक गतिमान खुली स्ट्रींग और इन सभी को समाविष्ट करने वाले टारस(Torus) से समझा जा सकता है, जिससे प्रभावी एक आयामी पिंड प्राप्त होता है। यही स्ट्रींग सिद्धांत मे श्याम विवर है।
इन्ही परिस्थितियों द्वारा हाकींग विकिरण की भी व्याख्या होती है, लेकिन इसके लिये दोनो दिशाओ मे गतिमान खुली स्ट्रींग की आवश्यकता होती है। इन खुली स्ट्रींग की आपसी प्रतिक्रिया से निर्मित बंद स्ट्रींग के रूप मे विकिरण का उत्सर्जन होता है।
हाकींग विकिरण
हाकींग विकिरण
कुछ विशेष महासममीतीक श्याम विवरो के लिये सुस्पष्ट गणनायें दर्शाती हैं कि स्ट्रींग सिद्धांत के परिणाम क्वांटम सिद्धांत तथा सापेक्षतावाद के परिणामो से मेल खाते है। इससे यह प्रमाणित होता है कि स्ट्रींग सिद्धांत क्वांटम गुरुत्व के लिये एक मूलभूत सिद्धांत है।
अगले तथा अंतिम भाग मे स्ट्रींग सिद्धांत की आलोचना!

स्ट्रींग सिद्धांत: M सिद्धांत


पांच तरह के सुपरस्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से भिन्न लगते है लेकिन भिन्न स्ट्रींग द्वैतवाद के प्रकाश मे मे वे एक ही सिद्धांत के भिन्न पहलू के रूप मे आते है। दो सिद्धांत जब एक जैसी भौतिक प्रक्रिया की व्याख्या करते है तब उन्हे द्वैत(dual) सिद्धांत कहते है।
प्रथम प्रकार का द्वैतवाद T-द्वैतवाद(T -Duality) है। यह द्वैतवाद एक R त्रिज्या वाले वृत्त पर संकुचित सिद्धांत(compatified) को 1/R त्रिज्या वाले वृत्त पर संकुचित सिद्धांत से जोड़ता है। अर्थात एक सिद्धांत मे आयाम एक छोटे वृत्त पर लिपटा हुआ है लेकिन दूसरे सिद्धांत मे आयाम एक विशाल वृत्त पर लिपटा हुआ है(संकुचन नाम मात्र का हुआ है) लेकिन दोनो सिद्धांत एक जैसी भौतिक प्रक्रियाओं की व्याख्या कर रहे हैं। प्रकार IIA तथा IIB सुपरस्ट्रींग सिद्धांत T-द्वैतवाद द्वारा एक दूसरे से संबधित है, वहीं पर SO(32) हेटेरोटीक तथा E(8) x E(8) हेटेरोटीक सिद्धांत भी T-द्वैतवाद द्वारा एक दूसरे से संबधित हैं।
दूसरे तरह के द्वैतवाद S-द्वैतवाद(S- Duality) मे एक सिद्धांत की मजबूत युग्मन सीमा(Strong Coupling Limit) को दूसरे सिद्धांत की कमजोर युग्मन सीमा(Weak Coupling Limit) से जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये SO(32) हेटेरोटीक तथा प्रकार I के स्ट्रींग सिद्धांत 10 आयामो मे स्ट्रींग S-द्वैतवाद से जुड़े है। इसका अर्थ है कि SO(32) हेटेरोटीक स्ट्रींग की मजबूत युग्मन सीमा प्रकार 1 की कमजोर युग्मन सीमा के तुल्य है, इसके अतिरिक्त इसका विपरीत भी सत्य है। मजबूत और कमजोर युग्मन सीमा के मध्य द्वैतवाद की खोज का प्रमाण पाने का एक उपाय हर चित्र मे प्रकाश वर्णक्रम अवस्थाओं की तुलना करना है और देखना है कि वे एक जैसी है या नही। उदाहरण के लिये प्रकार I स्ट्रींग सिद्धांत की D-स्ट्रींग अवस्था कमजोर युग्मन मे भारी होती है लेकिन मजबूत युग्मन मे हल्की होती है। यह D-स्ट्रींग SO(32) हेटेरोटीक सिद्धांत के विश्वप्रतल(worldsheet) पर समान प्रकाश अवस्था रखेंगी, इसलिये प्रकार I के सिद्धांत मे यह D स्ट्रींग मजबूत युग्मन मे अत्यंत हल्की होगी, इस तरह से कमजोर युग्मित हेटेरोटीक स्ट्रींग(weakly coupled heterotic string) व्याख्या सामने आती है। 10 आयामो मे S-द्वैतवाद मे स्वयं से संबधित सिद्धांत IIB है जोकि एक IIB स्ट्रींग की मजबूत युग्मन सीमा को S-द्वैतवाद से दूसरी IIB स्ट्रींग की कमजोर युग्मन सीमा से जोड़ता है। IIB सिद्धांत मे एक D-स्ट्रींग भी है जो मजबूत युग्मन पर हल्की होती है लेकिन यह D स्ट्रींग किसी अन्य मूलभूत IIB प्रकार की स्ट्रींग जैसे लगती है।
भिन्न सुपरस्ट्रींग सिद्धांतो के मध्य द्वैतवाद
भिन्न सुपरस्ट्रींग सिद्धांतो के मध्य द्वैतवाद
1997 मे गणितज्ञ भौतिकशास्त्री एडवर्ड वीट्टन ने प्रस्तावित किया कि प्रकार IIA तथा E8xE8 एक नये आयामो वाले सिद्धांत “M सिद्धांत” द्वारा एक दूसरे से संबधित है। इस खोज से सभी पांच तरह के स्ट्रींग सिद्धांतो के मध्य की गुम कड़ी(स्ट्रींग द्वैतवाद) का पता चला। इन स्ट्रींग सिद्धांतों के मध्य के द्वैतवाद के कारण ये सभी सिद्धांत एक ही मूल सिद्धांत की भिन्न भिन्न व्याख्या करते है। हर सिद्धांत की अपनी सीमा और व्याख्या है, एक सिद्धांत की सीमा के बाहर दूसरा सिद्धांत प्रभावी हो जाता है लेकिन मूल सिद्धांत एक ही रहता है।
टोरस का एक वृत्त के रूप मे संकुचन
टोरस का एक वृत्त के रूप मे संकुचन
कम ऊर्जा पर M सिद्धांत की व्याख्या 11 आयामो वाले महागुरुत्व सिद्धांत(Supergravity) से की जा सकती है। इस सिद्धांत मे एक मेमब्रेन(membrane – सतह) तथा 5-ब्रेन है लेकिन कोई स्ट्रींग नही है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत मे स्ट्रींग कैसे नही है ? हम 11 आयामो वाले M सिद्धांत को 10 आयाम वाले सिद्धांत के लिये एक छोटे वृत्त पर संकुचित कर देते है। यदि हम किसी टोरस(torus)* की सतह को किसी वृत्त के रूप मे लपेट दे अर्थात एक आयाम कम कर दे, तब उसकी सतह एक बंद स्ट्रींग के रूप मे आ जायेगी। अर्थात 11 आयामो वाले स्ट्रींग सिद्धांत को 10 आयामो मे संकुचित करने पर प्रकार IIA स्ट्रींग दिखायी देती है।
अब हम कैसे जानते है कि एक वृत्त पर M-सिद्धांत प्रकार IIA की सुपरस्ट्रींग देता है, वह IIB या हेटेरोटीक सुपरस्ट्रींग नही देता है ?
इसका उत्तर 11 आयामी महागुरुत्व के एक वृत्त पर संकुचन से उत्पन्न द्रव्यमान रहित बल-क्षेत्र(massless gauge fields) के ध्यानपूर्वक अध्ययन से मिलता है। दूसरी आसान जांच है कि हम M-सिद्धांत की उत्पत्ति प्रकार IIA की D-ब्रेन अवस्थाओं मे देख सकते है, जोकि केवल प्रकार IIA मे हैं। इस स्थिती को निचे दी गयी सारणी मे देखा जा सकता है।
एक वृत्त पर M सिद्धांत10 आयामो मे IIA सिद्धांत
एक वृत्त पर लपेटा मेमब्रेनप्रकार IIA सुपरस्ट्रींग
मेमब्रेन का शून्य आकार मे संकुचनD0-ब्रेन
खुला हुआ मेमब्रेनD2-ब्रेन
वृत्त पर लिपटा हुआ 5-ब्रेनD4-ब्रेन
खुला हुआ 5-ब्रेनNS 5-ब्रेन
इस सारणी मे D6 तथा D8-ब्रेन को छोड़ दिया गया है। D6 ब्रेन को “कालुजा केलिन एकध्रुव -Kaluza Klein Monopole” के जैसा माना जा सकता है जो कि 11 आयामी महागुरुत्व के एक वृत्त पर संकुचन का एक विशेष प्रकार का हल है। D8 ब्रेन की M सिद्धांत मे अभी तक कोई व्याख्या नही है। यह वर्तमान शोधो का विषय है।
M सिद्धांत का एक रेखाखंड पर संकुचन
M सिद्धांत का एक रेखाखंड पर संकुचन
यदि हम M सिद्धांत को एक छोटे रेखाखंड पर संकुचित करे तब भी हमे एक स्पष्ट सिद्धांत मिलता है। इसके लिये 11 आयामो मे से एक आयाम की लंबाई सीमित होती है। इस रेखाखंड के अंतबिंदु अन्य 9 आयामो की सीमायें निर्धारण करते है। एक खूली मेमब्रेन(सतह) इस सीमाओं पर समाप्त हो सकती है। किसी सीमा और सतह का अंतःप्रतिच्छेदन एक स्ट्रींग होती है जिससे हर सीमा के 9+1 आयामो वाले विश्व मे मेमब्रेन के अंतबिंदु से प्राप्त स्ट्रींग हो सकती है। इस सब से यही सिद्ध होता है कि महागुरुत्व सिद्धांत की असंगतियों के निराकरण के लिये हर सीमा पर एक E8 बल समूह चाहीये। इसलिये हम इन सीमाओं के मध्य अंतराल को लघु मान कर चलते है जिससे हमे एक 10 आयामी सिद्धांत जिसमे स्ट्रींग तथा E8 x E8 बल क्षेत्र समूह वाला सिद्धांत प्राप्त होता है। इसे E8 x E8 हेटेरोटीक स्ट्रींग कहते है।
इस तरह से इस नये 11 आयामी स्ट्रींग सिद्धांत तथा उनके अन्य स्ट्रींग सिद्धांत के साथ वाले द्वैतवाद से हमारे पास एक मूलभूत सिद्धांत है जो सभी कणो और बलो की व्याख्या करता है। इसे ही M-सिद्धांत कहते है। सभी पांच सुपरस्ट्रींग सिद्धांत तथा 11-D महागुरुत्व इसकी सीमायें है।
M सिद्धांत और उसकी सीमायें
M सिद्धांत और उसकी सीमायें
M सिद्धांत अभी संपूर्ण नही है, इस पर अध्ययन जारी है।
अगले भागो मे स्ट्रींग सिद्धांत और श्याम वीवर और स्ट्रींग सिद्धांत की समालोचना
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स्ट्रींग सिद्धांत: सुपरस्ट्रींग सिद्धांत से M सिद्धांत की ओर


स्ट्रींग सिद्धांत के अंतर्गत पांच तरह के अलग अलग सिद्धांत का विकास हो गया था। समस्या यह थी कि ये सभी सिद्धांत विरोधाभाषी होते हुये भी, तार्किक रूप से सही थे। ये पांच सिद्धांत थे प्रकार I, प्रकार IIA, प्रकार IIB तथा दो तरह के हेटेरोटीक स्ट्रींग सिद्धांत। पांच अलग अलग सिद्धांत सभी बलो और कणो को एकीकृत करने वाले “थ्योरी आफ एवरीथींग” के मुख्य उम्मीदवार का दावा कैसे कर सकते थे। यह माना जाता था कि इनमे से कोई एक ही सिद्धांत सही है, जो अपनी निम्न ऊर्जा सीमा तथा दस आयामो को चार आयामो मे संकुचन के पश्चात वास्तविक विश्व की सही व्याख्या करेगा। अन्य सिद्धांतो को स्ट्रींग सिद्धांत के प्रकृती द्वारा अमान्य गणितीय हल के रूप मे मान कर रद्द कर दिया जायेगा।
लेकिन कुछ नयी खोजो और सैद्धांतिक विकास के पश्चात पता चला कि उपरोक्त तस्वीर सही नही है, यह पांचो स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़े हुये है तथा एक ही मूल सिद्धांत के भिन्न भिन्न पहलुओं को दर्शाते है। यह सभी सिद्धांत एक रूपांतरण द्वारा जुड़े हुये है जिसे द्वैतवाद(dualities) कहते है। यदि दो सिद्धांत किसी द्वैतवाद रूपांतरण(Duality Transformation) द्वारा जुड़े हों तो इसका अर्थ यह होता है कि एक सिद्धांत का रूपांतरण इस तरह से हो सकता है कि वह दूसरे सिद्धांत की तरह दिखायी दे। यह दोनो सिद्धांत इस रूपांतरण के अंतर्गत एक दूसरे के द्विक(Dual) कहलायेंगे।
यह द्वैतवाद ऐसे परिमाणो को भी आपस मे जोड़ती है जिन्हे भिन्न समझा जाता है। न्युटन के क्लासीकल सिद्धांत तथा क्वांटम सिद्धांत मे विशाल और लघु दूरी के पैमाने, कमजोर और मजबूत युग्मन (weak and strong coupling) क्षमता द्वारा किसी भी भौतिक प्रणाली की विशिष्ट सीमाये तय की गयी है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत द्वारा विशाल और लघु, मजबूत और कमजोर के मध्य का अंतर धुंधला हो जाता है, इसी कारण से यह सभी पांचो भिन्न स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़ जाते है।
लघु और विशाल दूरी
जिस द्वैतवाद सममीती से लघु और विशाल दूरी पैमानो के मध्य का अंतर धुंधला हो जाता है T-द्वैतवाद (T-Duality) कहलाता है और यह दस आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के अतिरिक्त आयामो के संकुचन से उत्पन्न होता है।
मान लिजिये की हम किसी दस आयामी काल-अंतराल वाले विश्व मे है, अर्थात हमारे पास अंतराल के नौ तथा समय का एक आयाम है। इन नौ अंतराल के आयामो मे से एक को लिजीये और उसे एक R त्रिज्या वाले वृत्त मे लपेट दिजिये, अब यदि आप उसी दिशा मे 2πR की दूरी तय करें तो आप उस वृत्त का संपूर्ण चक्कर लगा कर उसी जगह पर वापिस आ जायेंगे जहां से आपने प्रारंभ किया था।
इस वृत्त का चक्कर लगाने वाला कण का वृत के पास एक क्वांटम संवेग होगा और वह कण की कुल ऊर्जा का एक भाग होगा। लेकिन स्ट्रींग (तंतु) भिन्न होती है क्योंकि वह वृत्त की परिक्रमा गति करने के अतिरिक्त वृत्त पर लपेटी भी जा सकती है। किसी वृत्त के पर किसी स्ट्रींग के लपेटे जाने की संख्या को चक्र संख्या (winding number) कहते है और यह भी एक क्वांटम मात्रा होती है।
स्ट्रींग सिद्धांत मे विचित्र यह है कि संवेग विधी(momentum mode) तथा चक्र विधी को आपस मे बदला भी जा सकता है, यदि वृत्त की त्रिज्या R को  Lst2/R से बदला जाये जिसमे Lst स्ट्रींग की लंबाई है।
यदि R स्ट्रींग की लंबाई से बहुत कम हो तो Lst2/R का मूल्य बहुत ज्यादा होगा। अर्थात किसी स्ट्रींग के संवेग और चक्र विधी का विनियम से विशाल दूरी के पैमाने का लघु दूरी के पैमाने से विनियम होता है।
इस तरह के द्वैतवाद को T-द्वैतवाद (T-duality) कहते है। T-द्वैतवाद प्रकार IIA तथा प्रकार IIB सुपरस्ट्रींग सिद्धांत हो जोड़ता है। इसका अर्थ यह है कि यदि हम प्रकार IIA तथा प्रकार IIB को लेकर उन्हे किसी वृत्त के रूप मे संकुचित करे, उसके पश्चात संवेग तथा चक्र विधि ,लघु तथा विशाल दूरी के पैमानो का आपस मे विनियम करने के पश्चात यह दोनो सिद्धांत एक दूसरे मे परिवर्तित हो जायेंगे। यह दोनो हेटेरोटीक सिद्धांतो पर भी लागु होता है।
T-द्वैतवाद विशाल तथा लघु दूरी के मध्य के अंतर को धुंधला कर देता है। किसी स्ट्रींग के संवेग विधि(momentum mode) को जो एक विशाल दूरी प्रतित होती है वह किसी स्ट्रींग के चक्रविधि( winding mode ) को एक लघु दूरी प्रतित होती है। यह न्युटन और केप्लर की भौतिकी से विपरीत है।
मजबूत और कमजोर युग्मन(Strong and Weak Coupling)
युग्मन स्थिरांक(Coupling Constant) क्या होता है ? यह वह संख्या है जो दर्शाती है कि किसी प्रतिक्रिया की क्षमता क्या है। गुरुत्वाकर्षण बल के लिये युग्मन स्थिरांक न्युटन स्थिरांक(Newtons Constant) है। यदि न्युटन के स्थिरांक का मूल्य उसके वास्तविक मूल्य का दोगुना हो तो हम पृथ्वी से दोगुना गुरुत्वाकर्षण महसूस करेंगे तथा पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य से दोगुना गुरुत्वाकर्षण बल महसूस करेगी। विशाल युग्मन स्थिरांक का अर्थ है, ज्यादा मजबूत बल तथा लघु युग्मन स्थिरांक का अर्थ है कमजोर बल।
सभी बलों का युग्मन स्थिरांक होता है। विद्युत चुंबकिय बल का युग्मन स्थिरांक विद्युत आवेश के वर्ग के समानुपाती होता है। विद्युत चुंबक बल के क्वांटम व्यवहार के अध्यन मे वैज्ञानिक सम्पूर्ण सिद्धांत को एक साथ नही समझ पाते है, वे उसे छोटे टुकड़ो मे हल कर समझते हैं, इन छोटे टूकडो के साथ एक युग्मन स्थिरांक जुड़ा होता है। विद्युत-चुंबकीय बल के संदर्भ मे कम ऊर्जा पर युग्मन स्थिरांक लघु होता है, इस कारण से इन छोटे टुकड़ो से प्राप्त परिणाम वास्तविक परिणाम से अत्यंय समीप होते है। लेकिन यदि युग्मन स्थिरांक विशाल हो तो गणना विधि कार्य नही करती है, तथा यह छोटे टुकड़े वास्तविक भौतिक गणनाओं के लिये किसी मतलब के नही होते है।
यह स्ट्रींग सिद्धांत मे भी संभव है। स्ट्रींग सिद्धांत मे भी युग्मन स्थिरांक होता है। लेकिन कण भौतिकी से भिन्न रूप से यह युग्मन स्थिरांक एक संख्या मात्र नही है। वह स्ट्रींग की स्पंदन विधी अर्थात डाइलेशन(dilation) पर निर्भर करता है। डाइलेशन क्षेत्र के उसके ऋणात्मक मूल्य से विनिमय(exchange) के दौरान एक विशाल युग्मन स्थिरांक का एक लघु विनियम स्थिरांक के साथ विनिमय होता है।
इस सममीती को S-द्वैतवाद कहा जाता है। यदि दो स्ट्रींग सिद्धांत S-द्वैतवाद से जुड़े हों तो विशाल युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत लघु स्थिरांक वाले सिद्धांत के जैसा ही है। ध्यान दें कि विशाल युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत किसी क्रम(series) के विस्तार से नही समझा जा सकता है लेकिन लघु युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत समझा जा सकता है। इस्का अर्थ यह है कि यदि हम कमजोर सिद्धांत को समझ लेते है तो वह मजबूत सिद्धांत को समझने के तुल्य होगा। किसी भौतिक वैज्ञानिक के लिये यह एक के साथ एक मुफ्त वाला सौदा होगा।
S-द्वैतवाद से संबधित सुपरस्ट्रींग सिद्धांत है : प्रकार I सुपरस्ट्रींग सिद्धांत हेटेरोटीक SO(32) से संबधित है तथा प्रकार IIB स्वयं से।
इस सबका अर्थ क्या है?
T-द्वैतवाद यह स्ट्रींग सिद्धांत के लिये ही है। यह कण भौतिकी मे संभव नही है, क्योंकि कोई कण किसी स्ट्रींग(तंतु) के जैसे वृत्त पर लपेटा नही जा सकता है। यदि स्ट्रींग सिद्धांत प्रकृति की सही व्याख्या करता है, तब इसका अर्थ है कि गहरे स्तर पर किसी जगह लघु और विशाल पैमाने मे कोई स्थायी अंतर नही रह जाता है, यह एक द्रवित अंतर जैसा परिवर्तनशील हो जाता है। यह अंतर हमारी दूरी मापने के उपकरण पर निर्भर हो जाता है कि कैसे हम उस उपकरण से अवस्था का मापन करते है।
S-द्वैतवाद के साथ भी ऐसा ही है जो यह दर्शाता है कि एक स्ट्रींग सिद्धांत के विशाल युग्मन स्थिरांक को दूसरे स्ट्रींग सिद्धांत के लघु युग्मन स्थिरांक से समझा जा सकता है।
यह परंपरागत भौतिक विज्ञान से कहीं भिन्न है लेकिन यह क्वांटम सिद्धांत मे गुरुत्वाकर्षण का परिणाम है क्योंकि आइन्स्टाइन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अनुसार इसी तरह से पिंडो के आकार और प्रतिक्रियाओं के मूल्य वक्रकाल-अंतराल मे मापे जाते है।
p-ब्रेन और D-ब्रेन
सुपरस्ट्रींग सिद्धांत एक आयामी स्ट्रींग का ही सिद्धांत नही है, इसके घटक बहु आयामी भी हो सकते है और वे शून्य से लेकर नौ आयाम के हो सकते है। इन घटको को p ब्रेन(brane) कहते है। यह ब्रेन शब्द मेम्ब्रेन(membrane – झिल्ली जैसी संरचना) से बना है। मेम्ब्रेन मे 2 ब्रेन(लंबाई और चौड़ाई) होते है, स्ट्रींग मे 1 ब्रेन(लंबाई) तथा किसी बिंदु मे शून्य ब्रेन होते है।
एक p-ब्रेन काल अंतराल का वह पिंड है,जो आइंस्टाइन के समीकरण का सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के कम ऊर्जा स्तर पर के हल से उत्पन्न होता है, इसमे गुरुत्वाकर्षण के अतिरिक्त अन्य बलो का ऊर्जा घनत्व नौ आयामो मे से p आयामो मे बंधा रहता है। ध्यान दें कि सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे 10 आयाम है जिसमे से एक समय का तथा 9 अंतराल के आयाम है। उदाहरण के लिये विद्युत आवेश के समीकरण के हल मे यदि विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र का ऊर्जा घनत्व अंतराल मे किसी रेखा पर वितरीत हो, तब यह एक आयामी रेखा p=1 वाली p-ब्रेन होगी।
स्ट्रींग सिद्धांत मे एक विशेष तरह की p-ब्रेन D-ब्रेन कहलाती है। मोटे तौर पर Dब्रेन मे स्ट्रींग के खुले सीरे उस ब्रेन मे ही स्थानीय होते है। या D ब्रेन को एक से ज्यादा स्ट्रींग के समूह का सामुहीक उद्दीपन कह सकते है जैसे कागज के एक पन्ने मे एक से ज्यादा रेखाये।
स्ट्रींग सिद्धांत मे इस तरह के घटक बहुत बाद मे खोजे गये क्योंकि ये सभी T-द्वैतवाद की गणितीय जटिलताओं मे खोये हुये थे। D-ब्रेन स्ट्रींग सिंद्धांत के संदर्भ मे श्याम वीवर (black hole) को समझने मे अत्यावश्यक है, विशेषतः श्याम वीवर की एन्ट्रापी की ओर बढने वाली क्वांटम अवस्थाओं की गणना मे। यह स्ट्रींग सिद्धांत की एक बड़ी सफलता है।
कितने आयाम
स्ट्रींग सिद्धांत पर सैद्धांतिक भौतिकी वैज्ञानीको का पूरी तरह से ध्यानाकर्षण से पहले सबसे ज्यादा लोकप्रिय एकीकृत सिद्धांत 11 आयामो वाला महागुरुत्व सिद्धांत था जिसमे गुरुत्वाकर्षण के साथ महासममीती को सयुक्त किया गया था। यह 11 आयामो वाला काल-अंतराल संकुचित कर 7 आयामो वाले गोले मे करने की योजना थी जिससे कीसी दूरी पर स्थित निरीक्षक को केवल 4 काल-अंतराल के आयाम महसूस होंगे।
लेकिन यह एक असफल सिद्धांत था क्योंकि इसमे बिंदु कण की क्वांटम अवस्थाओ के लिए तर्कसंगत सीमा नही थी। लेकिन 11 आयामो वाली महागुरुत्विय सिद्धांत को मजबूत संयुग्मन सीमा वाले 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत से एक नया जीवन मीला।
लेकिन 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत का 11 आयाम वाले महागुरुत्व सिद्धांत मे रूपांतरण कैसे संभव है ? हम पहले ही देख चुके है कि सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के द्वैतवाद से दो भिन्न सिद्धांतो मे संबध स्थापित किया जा सकता है, विशाल दूरी की लघु दूरी से तुलना की जा सकती है तथा मजबुत संयुग्मन और कमजोर संयुग्मन का विनियम संभव है। अर्थात कोई ऐसा द्वैतवाद संबध होगा जो 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत को 11 आयाम वाले क्वांटम स्थिरता वाले सिद्धांत मे रूपांतरण कर दे।
हम जानते है कि सभी स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़े हुये है और हमे संदेह है कि वे सभी सिद्धांत एक ही मूल सिद्धांत की विभिन्न सीमाओं को प्रदर्शित करते है, अर्थात 11 आयामो मे किसी मूलभूत सिद्धांत का अस्तित्व है। यह सिद्धांत ही M सिद्धांत है।
अगले भाग मे M सिद्धांत
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Sunday, January 8, 2012

स्ट्रींग सिद्धांत: विसंगतियो का निराकरण और सुपरस्ट्रींग सिद्धांत का प्रवेश


स्ट्रींग सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण बल को अन्य बलों के साथ सफलतापूर्वक एकीकृत कर देता था लेकिन इस सिद्धांत के कुछ पूर्वानुमान जैसे टेक्यान और 26 आयामी ब्रह्माण्ड इसे हास्यास्पद स्थिति मे ले आते थे। वैज्ञानिको ने इन विसंगतियों को दूर करने का प्रयास किया और एक नये सिद्धांत सुपरस्ट्रींग का विकास किया जिसमे टेक्यान नही थे, 26 आयाम का ब्रह्माण्ड 10 आयामो मे सीमट गया था। यह सिद्धांत आश्चर्यजनक रूप से महासममीती, महाएकीकृत सिद्धांत (GUT) तथा कालिजा-केलीन सुझाव सभी का समावेश करता था।
स्ट्रींग सिद्धांत मे ऋणात्मक द्रव्यमान के वर्गमूल से काल्पनिक द्रव्यमान वाले टेक्यान का निर्माण होता है। किसी बाह्य निरीक्षक के दृष्टिकोण से यह स्ट्रींग की ऋणात्मक ऊर्जा वाली अवस्था के रूप मे होगा। वस्तुतः यह क्वांटम यांत्रीकी के एक तथ्य से संबधित है, अनिश्चितता के सिद्धांत के अनुसार किसी स्थानिय प्रणाली(localised system) मे की निम्नतम ऊर्जा शून्य की ओर प्रवृत्त होकर कम होती है, लेकिन हमेशा शून्य से ज्यादा रहती है। इस ऊर्जा को अविलोपशील ऊर्जा (non-vanishing)कहते है क्योंकि यह कम होती है लेकिन कभी शून्य नही होती है। स्ट्रींग सिद्धांत मे टेक्यान की उपस्थिति को गणितीय रूप से इसी ’अविलोपशील’ शून्यबिंदु ऊर्जा(zero-point energy) की उपस्थिति के रूप मे देखा जा सकता है। इससे यह माना गया कि यदि हम एक ऐसे विशेष क्वांटम प्रणाली को परिभाषित कर पाये जिसमे यह शून्यबिंदु ऊर्जा विलोपित(नष्ट) हो जाये अर्थात शून्य हो जाये तब हम एक विशेष स्ट्रींग सिद्धांत का निर्माण कर पायेंगे जिसमे टेक्यान नही होंगे।
महासममीती सिद्धांत की उपस्थिती मे शून्य बिंदु ऊर्जा के बिना भी क्वांटम प्रणाली संभव है। हमने पहले यह देखा है कि महासममीती सिद्धांत बोसान और फर्मीयान ’डीग्री आफ फ़्रीडम’ के मध्य एक संबध स्थापित करता है। इन दोनो प्रकार की डीग्री आफ फ़्रीडम से संबधित शून्य बिंदु ऊर्जा विपरीत चिह्न की होती है, जो महासममीतीक प्रणाली मे एक दूसरे को रद्द कर देती है। इस खोज की राह जटिल थी, लेकिन हमारी आधुनिक जानकारी के अनुसार यह एक ऐसे स्ट्रींग सिद्धांत का मूल है जिसमे टेक्यान नही है। इस सिद्धांत को सुपरस्ट्रींग सिद्धांत कहा जाता है।
स्ट्रींग सिद्धांत से सुपरस्ट्रींग सिद्धांत की ओर बढने से एक ऐसा सिद्धांत का जन्म हुआ जो वास्तविक विश्व की व्याख्या करता था या दूसरे शब्दो मे इसके पूर्व के स्ट्रींग सिद्धांत से बेहतर था। सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे भी मूलभूत अभिधारणा है कि एक स्ट्रींग(तंतु) की भिन्न तरंगो से ही भिन्न प्रकार के कण बनते है। लेकिन महासममीती(Supersymmetry) के कारण इसमे टेक्यान का अस्तित्व नही है। अतिरिक्त लाभ के रूप मे महासममीती सिद्धांत के प्रवेश से अनुरूपता नियम(consistency condition) के अनुसार काल-अंतराल के आयाम 26 से घटकर 10 रह गये है। अंत मे ग्रेवीटान कण की उपस्थिती होने से यह गुरुत्वाकर्षण की भी व्याख्या करता है। इसे महागुरुत्व(supergravity) भी कह सकते है क्योंकि इसमे गुरुत्वाकर्षण का महासममीतीक विस्तार है।
सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के गुण
सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे मूलभूत कण सुपरस्ट्रींग है, एक स्ट्रींग जिसमे अतिरिक्त डीग्री आफ फ़्रीडम उसे महासममीतीक बनाती है। विकास की एक लंबी श्रंखला के पश्चात इस सिद्धांत के आधार का निर्माण हुआ है, अब हम इस सिद्धांत की चर्चा वास्तविक विश्व के परिपेक्ष मे करेंगे।
पांच भिन्न भिन्न सिद्धांत
एक स्ट्रींग दो अंतबिंदुओ के साथ खुली या एक वलय(l00p) के जैसे बंद हो सकती है। प्राकृतिक भौतिक नियमो के अनुसार दो खूली स्ट्रींगो के मध्य प्रतिक्रिया उनके अंतबिंदु(end points) के स्पर्श करने पर होगी, वे जुडकर एक ज्यादा लंबी खुली स्ट्रींग बनायेंगे। लेकिन यदि दो स्ट्रींग के दोनो अंतबिदु एक दूसरे से स्पर्श करे तो वे जुड़कर एक बंद स्ट्रींग का निर्माण करेंगे। अर्थात खुली स्ट्रींग के सिद्धांत मे बंद स्ट्रींग का सिद्धांत अंतर्निर्मित है।
लेकिन इसका विपरीत सत्य नही है। एक बंद स्ट्रींग का युग्म उसी समय जुड़ेगा जब बिंदुओं के युग्म एक साथ स्पर्श करेंगे और एक बंद स्ट्रींग का निर्माण करेंगे। इस सिद्धांत मे केवल बंद स्ट्रींग हो सकती है, इसमे खुली स्ट्रींग का अस्तित्व संभव नही है। इस तरह से हम पांच भिन्न भिन्न तरह के सुपरस्ट्रींग सिद्धांतो को देखते है:
  1. प्रकार I: स्ट्रींग खुली हुयी होती है।
  2. प्रकार IIA : बंद स्ट्रींग का एक प्रकार
  3. प्रकार IIB: बंद स्ट्रींग सिद्धांत का दूसरा प्रकार
  4. प्रकार हेटेरोटीक A: सुपरस्ट्रींग सिद्धांत और साधारण स्ट्रींग(महासममीती विहीन)के मिश्रित सिद्धांत का एक प्रकार
  5. प्रकार हेटेरोटीक B:  सुपरस्ट्रींग सिद्धांत और साधारण स्ट्रींग(महासममीती विहीन)के मिश्रित सिद्धांत का दूसरा प्रकार
वर्तमान मे हम जानते है कि क्यों केवल पांच सुपरस्ट्रींग सिद्धांत है और वे किस तरह से एक दूसरे से संबधित है।
स्ट्रींगो के मध्य प्रतिक्रियायें
स्ट्रींगो के मध्य प्रतिक्रियायें
प्रकार I
स्ट्रींग सिद्धांत मे सबसे सरल प्रतिक्रिया की व्याख्या, एक निश्चित संख्या के मूलभूत कणो के क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत से की जा सकती है। हम कुछ देर के लिये वृद्धी करती हुयी ऊर्जा के असंख्य संभव स्ट्रींग उद्दीपनो(प्रतिक्रियाओं) की उपेक्षा करते हुये इस क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत की चर्चा करते है। किसी खुली स्ट्रींग के लिये कम ऊर्जा वालेसिद्धांत मे 10 आयाम वाले काल अंतराल, एक द्रव्यमान रहित ग्रेवीटान तथा गाज (gauge) क्षेत्रो के एक समूह का समावेश होता है। यह (gauge) क्षेत्रो का  समूह वास्तविक विश्व  मे फोटान, W तथा Z बोसान, ग्लुआन के  व्याख्या करने वाले गाज (gauge) क्षेत्र के जैसा ही है। इस तरह से हम पाते हैं कि प्रकार I के सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे प्राकृतिक बलों (गुरुत्वाकर्षण और गाज बलों) का समावेश है लेकिन ये बल 10 आयामी काल-अंतराल(spece-time) मे कार्य करते है। इसमे फर्मीयान कणो का भी अस्तित्व है, जोकि गाज बलो से आवेशित होते है, यह क्वार्क कणो के रंग आवेशित होने या इलेक्ट्रान के विद्युत आवेशित होने के तथ्य के जैसे ही है। साथ ही 10 आयामी विश्व मे प्रकार 1 सिद्धांत के फर्मीयान ’दायें-बायें सममीती (parity symmetry)’ का उल्लंघन करते है, यह वास्तविक विश्व मे कमजोर नाभिकिय बल के ’दायें-बायें सममीती (parity symmetry)’ के उल्लंघन के समान है। यह अत्यंत उत्साहवर्धक है क्योंकि यह सभी कण और बल खुली स्ट्रींग के साधारण से नियम का पालन कर रहे हैं।
लेकिन इसमे कई खामीयाँ भी है। 10 आयामी विश्व मे प्रकार 1 की स्ट्रींग के गाज कणो से संबधित सममीती समूहों की संख्या SO(32) है, जो कि वास्तविक विश्व मे मजबूत नाभिकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा विद्युत चुंबकिय से संबधित सममती समूहों से कही ज्यादा है। वास्तविक विश्व के मूलभूत बलों के सममीती समूहो की संख्या SU(3), SU(2) का U(1) गुणनफल है। सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे बहुत सारे बल और उनके वाहक कण प्रतित होते है। इसके अतिरिक्त इस सिद्धांत मे कम ऊर्जा के कण द्रव्यमान रहित है लेकिन वास्तविक विश्व के कण जैसे क्वार्क और इलेक्ट्रान का निश्चित द्रव्यमान होता है। अंत मे इस सिद्धांत मे 4 की बजाये 10 आयाम है। लेकिन इनमे से कोई भी वास्तविक बाधा नही है। हम जानते है कि अत्यंत उच्च ऊर्जा पर वास्तविक विश्व 10 आयामी विश्व के जैसे लग सकता है और ढेर सारे द्रव्यमान रहित कण हो सकते है और बहुत से गाज सममीती समूह हो सकते है। 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत को इसी रोशनी मे देखा जाना चाहीये जोकि उच्च ऊर्जा वाले वास्तविक विश्व की व्याख्या करता है। इसे कम ऊर्जा वाले विश्व के परिपेक्ष मे देखने के लिए हमे इसके 4 आयाम मे संकुचन और सममीती विखंडण के जैसे प्रश्नो का उत्तर देना होगा।
प्रकार IIA तथा IIB
IIA तथा IIB प्रकार के सुपरस्ट्रींग सिद्धांत भिन्न है। इनमे एक द्रव्यमान रहित कण ग्रेवीटान  का अस्तित्व है लेकिन प्रकार 1 सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के जैसे गाज कण(बल वाहक) नही है। इस सिद्धांत मे फर्मीयान पदार्थ कण है लेकिन बलवाहक कण न होने से ये आवेश का वहन नही कर सकते। प्रकार IIA मे फर्मीयान कण दायेबायें सममीती का पालन करते है लेकिन IIB मे पालन नही करते है। अंत मे इसमे एक विचित्र बल क्षेत्र होता है जिसे टेंसर गाज क्षेत्र कहा जाता है, जो कि फोटान के गुण वाले लेकिन उच्च स्पिन वाले कण के जैसा है। लेकिन फर्मीयान और अन्य द्रव्यमान रहित कण इस विचित्र क्षेत्र से आवेशित नही होते है। इन सभी कारणो से इन सिद्धांतो को विचित्र माना जाता रहा और इन्हे कभी गंभीरता से नही लिया गया लेकिन वर्तमान मे स्थिति मे परिवर्तन आ रहा है। एक ज्यादा आयामो वाले विश्व से 4 आयामी विश्व मे संकुचन की प्रक्रिया से गाज कणो का निर्माण हो सकता है और फर्मीयान इन गाज कणो से आवेशित हो सकते है।
प्रकार हेटेरोटीक A तथा B
अब हम मिश्रीत हेटेरोटीक स्ट्रींग की चर्चा करते है। यह उस निरीक्षण पर आधारित था जिसमे किसी बंद स्ट्रींग की हलचल एक दिशा से या विपरीत दिशा से तरंग के रूप मे जाती है। इन दो तरह की तरंगो को वाम-परिवाहक(left movers) तथा दक्षिण परिवाहक(right movers) नाम दिया गया। ये दोनो तरंगे एक ही स्ट्रींग मे प्रवाहित होने के बाद भी एक दूसरे से कोई प्रतिक्रिया नही करती है। इसलिये साधारण बाये प्रवाहित होने वाली तरंग को महासममीतीक दायें प्रवाहित होने वाली तरंगो के साथ जोड़ा सा सकता है। ध्यान दे कि प्रकार II मे दोनो तरंगे महासममीतीक होती है। हेटेरोटीक स्ट्रींग मे एक साधारण स्ट्रींग जबकि दूसरी महासममीतीक स्ट्रींग लेकिन विपरीत दिशा मे प्रवाहित स्ट्रींग से प्रतिक्रिया करती है।
अब यह एक पहेली है कि साधारण स्ट्रींग सिद्धांत मे 26 आयाम है लेकिन सुपर स्ट्रींग सिद्धांत मे 10 आयाम है। अब इन दोनो सिद्धांत को जोड़ा जाये तो कितने आयाम होंगे ? इसका उत्तर कालुजा केलिन का सुझाव देता है। 26 आयाम के 16 आयाम छोटे वृत्तो के रूप मे लिपटे हुये है, अब बचे हुये 10 आयामो का सिद्धांत से उपर दर्शाये गये मिश्रित सिद्धांत की व्याख्या संभव है। अंतिम सिद्धांत मे 10 आयाम है लेकिन बाये प्रवाहित तरंग के 26 आयाम है, इसकारण से कुछ अदृश्य डीग्री आफ फ़्रीडम का निर्माण होता है जो कि इन 16 आयामो से संबधित है। ये अदृश्य डीग्री आफ फ़्रीडम गाज क्षेत्रो के रूप मे कार्य करते है तथा सममीती समूह इन संकुचित आयामो पर निर्भर करते है। ये 16 संकुचित आयाम एक टोरस के जैसे आकार का निर्माण करते है। किसी नियमित स्ट्रींग सिद्धांत के लिये केवल दो तरह के टोरस पर्याय संभव है, एक पर्याय से SO(32) का गाज सममीती समूह मिलता है, यह सिद्धांत प्रकार 1 (खुली स्ट्रींग) के सिद्धांत के जैसा है। दूसरे पर्याय से E(8)xE(8) का गाज सममीती समूह मिलता है। यह पांचवे तरह का सुपरस्ट्रींग सिद्धांत है। प्रक्रार 1 के सिद्धांत के जैसे ही ये दोनो हेटेरोटीक सुपरस्ट्रींग सिद्धांत 10 आयाम मे दाये-बाये सममीती का उल्लंघन करते है।
नामस्ट्रींग का प्रकारगुरुत्वाकर्षण?गाज सममीती का पालन?दाये-बायें सममीती(Parity Symmetry) का पालन
प्रकार Iखुली और बंदहाँSO(32)उल्लंघन
प्रकार IIAबंदहाँनहीपालन
प्रकार IIBबंदहाँनहीउल्लंघन
हेटेरोटीक(Heterotic)-HOबंदहाँSO(32)उल्लंघन
हेटेरोटीक(Heterotic)- HEबंदहाँE(8) x E(8)उल्लंघन
इन पांच तरह के स्ट्रींग सिद्धांतो को चार आयामी विश्व मे संकुचित करने के प्रारंभिक प्रयासो ने E(8) x E(8) हेटेरोटीक सिद्धांत को बढ़ावा दिया। SO(32) सुपरस्ट्रींग सिद्धांत (हेटेरोटीक तथा प्रकार I) का 10 आयाम मे ’दायें-बायें दिशा सममीती विखंडण’ 4 आयामो मे संकुचन मे लुप्त हो गया, लेकिन वास्तविक विश्व मे ’दायें-बायें दिशा सममीती विखंडण’ होता है, जिससे यह सिद्धांत वास्तविक विश्व की व्याख्या नही कर पाता है। यह प्रकार IIB के सिद्धांत पर भी लागु होता है। दूसरी ओर प्रकार IIA मे तो 10 आयामो मे भी ’दायें-बायें दिशा सममीती विखंडण’ नही होता है, और इसके 4 आयामो के संकुचन मे ’दायें-बायें दिशा सममीती विखंडण’ का प्रश्न ही नही उठता है।
वर्तमान स्ट्रींग सिद्धांत के अनुसार ये सभी पांचो सिद्धांत अलग अलग नही है, ये सभी एक दूसरे से जुड़े हुये है। दूसरे शब्दो मे ये सभी सिद्धांत एक ही सिद्धांत के भिन्न भिन्न पहलू है और अपनी सीमाओं मे कार्य करते है। लेकिन इन सभी सिद्धांतो को एकीकृत करने वाला सिद्धांत अभी विकास की प्रक्रिया मे है लेकिन यह सिद्धांत 4 आयामो वाले विश्व मे ’दायें-बायें दिशा सममीती विखंडण’ का पालन करेगा।
अगले भाग मे स्ट्रींग सिद्धांत के कुछ और गुणधर्मो की चर्चा। 
यह विषय अब थोड़ा जटिल होते जा रहा है और क्वांटम सिद्धांत न जानने वाले पाठको के लिये कठीन!  लेकिन पूर्णता की दृष्टी से यह श्रंखला अगले 3-4 लेखों मे जारी रहेगी।