Wednesday, November 9, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory) : क्वांटम भौतिकी


श्रोडीन्गर की बिल्ली : जीवित या मृत
श्रोडीन्गर की बिल्ली : जीवित या मृत
न्यूटन से आइंस्टाइन तक आते तक भौतिक विज्ञान विकसित हो चुका था, आशा थी कि निकट भविष्य में वैज्ञानिक भगवान के मन को पढ़ने में सफल हो जायेगे। न्यूटन और आइंस्टाइन के सिद्धांतों से खगोलीय पिंडो तथा प्रकाश के व्यवहार को समझा जा चूका था, मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय व्यवहार की व्याख्या करते थे। लेकिन पदार्थ की संरचना के क्षेत्र में नयी खोजो ने सारी स्थिति बदल दी।
क्वांटम सिद्धांत का इतिहास
1803 मे ब्रिटिश वैज्ञानिक जान डाल्टन ने परमाणु के सिद्धांत को प्रस्तावित किया था। डाल्टन के अनुसार हर तत्व एक विशिष्ट प्रकार के परमाणु से बना होता है और परमाणु मिलकर रासायनिक पदार्थो का निर्माण करते है। एक गणितिय फ्रेंच वैज्ञानिक जीन पेर्रिन ने आइंस्टाइन के सिद्धांत का प्रयोग करते हुए परमाणु का द्रव्यमान और आकार मापा था।
1897 मे ट्रीनीटी महाविद्यालय कैम्ब्रिज के प्रोफेसर जे जे थामसन इलेक्ट्रान के अस्तित्व को प्रमाणित कर चूके थे। अब परमाणु अविभाज्य नही था। 1900 मे मैक्स प्लैंक ने प्रस्तावित किया कि ऊर्जा सतत प्रवाह ना होकर छोटी छोटी ईकाई से बनी होती है जिसे उन्होने क्वांटा नाम दिया। प्लैंक ने इसे आगे बढाते हुये एक नयी भौतिकी का निर्माण किया जिसे आज हम क्वांटम भौतिकी कहते है। 1905 मे आइंस्टाइन ने प्रस्तावित किया कि ना केवल ऊर्जा बल्कि विकिरण भी छोटी छोटी ईकाईयों से बनी होती है तथा प्रकाश के जैसे विद्युत-चुंबकिय विकिरण भी इसी व्यवहार को दर्शाते है। आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश की फोटान के जैसे कणो निर्मित होने की व्याख्या की जा सकती है, फोटान ऊर्जा के पैकेट के जैसे होते है और एक विशिष्ट तरंग दैधर्य से संबधित होते है।
निल्स बोहर द्वारा प्रस्तावित परमाणु संरचना
निल्स बोहर द्वारा प्रस्तावित परमाणु संरचना
1911 मे अर्नेसट रदरफोर्ड ने प्रमाणित किया कि परमाणु मे आंतरिक संरचना होती है, उनके अनुसार परमाणु मे धनात्मक आवेश वाले नन्हे केन्द्र के आसपास इलेक्ट्रान परिक्रमा करते है। सर्वप्रथम यह माना गया कि परमाणु इलेक्ट्रान और धनात्मक आवेश वाले प्रोटान से बना होता है। निल्स बोहर ने इस पर आधारित परमाणु का माडेल बनाया। 1924 मे लुइस दे ब्रोग्ली (Louis de Broglie) ने प्रस्तावित किया कि पदार्थ और ऊर्जा के मूलभूत कण दोहरा व्यवहार रखते है, वे कण और तरंग दोनो की तरह व्यवहार करते हैं।
पाल डीरेक ने मैक्सवेल के समीकरणों के आधार पर इलेक्ट्रान के व्यवहार की व्याख्या करने वाला समीकरण खोज निकाला। यह क्वांटम सिद्धांतों के आधारभूत स्तम्भ में से एक है। तब यह सोचा गया कि ऐसा ही समीकरण प्रोटान के लिये मिल जाएगा और भौतिकी समाप्त।
लेकिन 1932 मे जेम्स चैडवीक ने परमाणु के केन्द्र मे एक और कण न्यूट्रॉन को खोज निकाला जिसपर कोई आवेश नही होता है। अगले 30 वर्षो तक न्यूट्रॉन और प्रोटान को मूलभूत कण माना जाता रहा। लेकिन कुछ प्रयोगो ने सिद्ध किया कि प्रोटान और न्यूट्रॉन और भी छोटे कणो से बने है। इन कणो को मुर्रे गेलमन ने क्वार्क नाम दिया। अगले दशकों में ऐसे दर्जनों कण खोजे गये। पता चला कि लघु स्तर पर परमाण्विक कणो का एक चिडी़याघर है।
लघु स्तर पर के परमाण्विक कणो के चिडी़याघर को समझने के लिए क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model) का विकास हुआ।
क्वांटम सिद्धांत के मूल में निम्नलिखित प्रमुख स्तम्भ है:
1. मूलभूत कणो का दोहरा व्यवहार : सभी मूलभूत कण दोहरा व्यवहार करते है,वे कभी कण जैसे व्यवहार करते है, कभी तरंग के जैसे। यह न्यूटन के प्रकाश कण के सिद्धांत और मैक्सवेल-हायजेन्स के प्रकाश तरंग के सिद्धांत का मिश्रण है।
2. हीजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत : ‘अनिश्चितता के सिद्धांत(Uncertainty Principle)’ के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता। यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न बरती जाए। जितनी अचूक गति की जानकारी होगी, स्थिति उतनी ज्यादा अज्ञात होगी या इसके विपरीत जितनी अचूक स्थिति की जानकारी होगी , उसकी गति उतनी ही अज्ञात होगी। वर्तमान मे किसी भी परमाण्विक कण की स्थिती एवं गति की गणना को हम संभावना मे मापते है। हम कहते है कि किसी परमाण्विक कण के ’क’ स्थान पर ’ख’ ऊर्जा पर होने की ’म’ प्रतिशत प्रायिकता है।
क्वांटम सिद्धांत के विकास मे आइंस्टाइन ने प्रमुख भूमिका निभाईं है, लेकिन वे इस अनिश्चितता का सिद्धांत से सहमत नही थे। इस सिद्धांत के विरोध मे उन्होने कहा था
“भगवान पांसे नही खेलता! (God does not play dice)”!
क्वांटम सिद्धांत के इस गुणधर्म के कारण प्रकृति एक निश्चित, सुनियोजित अवस्था ना होकर अनिश्चित, अव्यवस्थित हो गयी।
श्रोडीन्गर की बिल्ली : क्वांटम विश्व मे यदि किसी परमाण्विक कण की अवस्था का निरीक्षण नही हुआ हो तो उसे एक महास्थिती (Superposition) मे माना जाता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार यदि किसी कण का निरीक्षण नही किया जा रहा है तब वह कण एक साथ सभी संभव अवस्थाओं मे रहता है। जब हम उस कण का निरीक्षण करते है तब वह सभी संभव अवस्थाओं मे से एक अवस्था ग्रहण करता है। यह विचित्र लगता है लेकिन यह क्वांटम सिद्धांत की बुनियाद है। यदि एकाधिक व्यक्ति एक साथ एकाधिक निरीक्षण करें तो हर व्यक्ति को उस कण की भिन्न अवस्था दिखायी देगी। इसे निरीक्षक प्रभाव(Observer Effect) कहते है। इसे रोजमर्रा के जीवन के परिपेक्ष मे समझने के लिए मान लिजिये कि हम एक स्टील के बक्से मे एक बिल्ली को तेजाब से भरी एक कांच की बोतल के साथ बंद कर देते है। इस बोतल के साथ एक हथौड़ा जुड़ा है। इस बक्से मे एक रेडीयो सक्रिय पदार्थ की छोटी सी मात्रा है। यदि रेडीयो सक्रिय पदार्थ से एक भी परमाणु का क्षय होता है, तो हथौड़ा कांच की बोतल को तोड़ देगा, जिससे बिल्ली की मृत्यु हो जायेगी। बक्से को बंद करने के पश्चात कोई भी निरीक्षक नही जानता कि रेडीयो सक्रिय पदार्थ मे परमाणु का क्षय कब होगा, इसलिए उसे ज्ञात नही होगा कि कांच की बोतल टूटी या नही और बिल्ली जीवित है या मृत ? हम यह नही जानते है कि बिल्ली जीवित है या मृत अर्थात क्वांटम भौतिकी के अनुसार बिल्ली एक साथ जीवित और मृत दोनो अवस्थाओं मे है। जब हम बक्से को खोलकर निरीक्षण करेंगे तब बिल्ली इन दोनो संभव अवस्था मे से एक अवस्था को ग्रहण करेगी। इस तर्क को आगे बढा़ते हुये हम यह भी कह सकते है कि एक ब्रह्माण्ड मे बिल्ली जीवित होगी तथा समानांतर ब्रह्माण्ड मे मृत, या इसके विपरीत।
3. क्वांटम एन्टेन्गलमेंट : प्रकृति के परमाण्विक स्तर पर विचित्र व्यवहार की कड़ी मे है क्वांटम एन्टेन्गलमेंट (Quantum Entanglement)। एन्टेन्गलमेंट का शाब्दिक अर्थ होता है उलझाव, गुंथा होना। यह एक अजीब व्यव्हार है। इसके अंतर्गत जब दो परमाण्विक कण (इलेक्ट्रान, फोटान, क्वार्क, परमाणु अथवा अणु) एक दूसरे से भौतिक रूप से टकरा्ने के पश्चात अलग हो जाते है, वे एक एन्टेंगल्ड(अन्तःगुंथित) अवस्था मे आ जाते है। इन दोनो कणो की क्वां‍टम यांत्रिकी अवस्थायें समान होती है अर्थात उनका स्पिन,संवेग, ध्रुवीय अवस्था समान होती है। एन्टेंगल्ड अवस्था मे आने के बाद यदि एक कण की अवस्था मे परिवर्तन होने पर वह परिवर्तन दूसरे कण पर स्वयं हो जाता है, चाहे दोनो कणो के मध्य कितनी भी दूरी हो। सरल शब्दो मे एन्टेंगल्ड कण-युग्म के एक कण पर आप के द्वारा किया गया परिवर्तन दूसरे कण पर भी परिलक्षित होता है।
4. कुछ भौतिक गुणों का क्वांटाइजेशन : पदार्थ से ऊर्जा का प्रवाह सतत रूप से न होकर ऊर्जा के पैकेट मे होता है। ऊर्जा के इन पैकेट्स को फोटान कहा जाता है।
क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model)
मानक प्रतिकृति (Standard Model)
मानक प्रतिकृति (Standard Model)
क्वांटम सिद्धांत के विभिन्न भागो को मानक प्रतिकृति (Standard Model) द्वारा व्यवस्थित रूप दिया गया है, यह मूलभूत बल तथा मूलभूत कणो के सम्पूर्ण ज्ञात सिद्धांतो का समावेश करता है। यह सिद्धांत 20 वी शताब्दी की शुरुवात से लेकर मध्य तक विकसीत हुआ है तथा 1970 मे क्वार्क के आस्तित्व के प्रायोगिक निरीक्षण के पश्चात मान्य हुआ है। इसके पश्चात इस सिद्धांत द्वारा अनुमानित बाटम क्वार्क (1977), टाप क्वार्क(1995) तथा टाउ न्युट्रीनो(2000) की खोज के बाद इस सिद्धांत को प्रामाणिकता मिली है। इस सिद्धांत द्वारा विभिन्न प्रायोगीक निरीक्षणो को सैद्धांतिक रूप से सत्यापन करने मे मिली सफलता के कारण इसे पूर्ण सिद्धांत माना जाता है।
सैद्धांतिक वैज्ञानिको के लिए मानक प्रतिकृति यह क्वांटम फ़ील्ड सिद्धांत का एक प्रतिमान है जो विभिन्न भौतिक प्रक्रियाये जैसे सहम सममीती विखंडन(Spontaneous Symmetry Breaking) असंगति की व्याख्या करता है।
इस मानक प्रतिकृति के पिछे 1960 मे शेल्डन ग्लाशो की विद्युत चुंबक और कमजोर नाभिकिय बल को एकीकृत करने वाली खोज रही है। 1967 मे स्टीवन वेनबर्ग तथा अब्दूस सलाम ने शेल्डन ग्लाशो के इलेक्ट्रोवीक सिद्धांत(विद्युत-चुंबक-कमजोर नाभिकिय बल एकीकृत सिद्धांत) मे हीग्स मेकेनिज्म को जोडा और यह मानक प्रतिकृती(Standard Model) आस्तित्व मे आयी।
मानक प्रतिकृति (Standard Model) : स्ट्रींग सिद्धांत इस चित्र मे दर्शाये गये "थ्योरी आफ एवरीथींग" का सबसे बड़ा उम्मीदवार है।
मानक प्रतिकृति (Standard Model) : स्ट्रींग सिद्धांत इस चित्र मे दर्शाये गये "थ्योरी आफ एवरीथींग" का सबसे बड़ा उम्मीदवार है।
मानक प्रतिकृति मे हीग्स मेकेनिज्म सभी मूलभूत कणो को द्रव्यमान प्रदान करता है। इसमे W तथा Z बोसान के अतिरिक्त सभी फर्मीआन (क्वार्क तथा लेप्टान) का भी समावेश है। 1973-74 मे जब प्रयोगो के अनुसार यह प्रमाणित हो गया की हेड्रान आंशिक रूप से आवेशित क्वार्क से बने होते है ,इस सिद्धांत मे मजबूत नाभिकिय बल का भी समावेश कर दिया गया।
मानक प्रतिकृति मे मूलभूत कणो कणो को दो वर्गो मे बांटा गया है : पदार्थ का निर्माण करने वाले फर्मीयान, बलो का वहन करने वाले बोसान।

1.फर्मीयान
मानक प्रतिकृति(Standard Model) मे 1/2 स्पिन के 12 मूलभूत कण है जिसे फर्मियान(fermions) कहते है। स्पिन-सांख्यकी प्रमेय(spin-statistics theorem) के अनुसार फर्मियान पाली व्यतिरेक सिद्धांत(Pauli exclusion principle) का पालन करते है। जिसका अर्थ है कि एक साथ एक अवस्था ( स्थिति तथा ऊर्जा) मे एक से ज्यादा कण नही रह सकते। हर फर्मियान(कण) का एक प्रतिकण(anti-particle) होता है।
मानक प्रतिकृति के कणो का वर्गीकरण उनके आवेश के अनुसार किया गया है। इसमे छः क्वार्क (अप, डाउन,चार्म, स्ट्रेंज, टाप, बाटम) तथा छः लेप्टान (इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान न्युट्रीनो, म्युआन,म्युआन न्युट्रीनो,टाउ, टाउ न्युट्रीनो) का समावेश है।
क्वार्क को परिभाषित करने वाला गुणधर्म उनके द्वारा रंगीन आवेश का वहन है और वे मजबूत नाभिकिय बल द्वारा प्रतिक्रिया करते है। एक गुणधर्म रंग बंधन(color confinement), उन्हे निरंतर रूप से एक दूसरे से बांधे रखता है, जिससे रंगहीन(या सफेद) कण का निर्माण होता है। इन रंगहीन कणो मे एक क्वार्क तथा एक प्रतिक्वार्क(मेसान) से बने हेड्रान(hadrons) कण या तीन क्वार्क से बने बायरान(baryons) कण होते है। प्रोटान और न्युट्रान दो सबसे ज्यादा जाने पहचाने सबसे कम द्रव्यमान वाले बायरान कण है। क्वार्क विद्युत आवेश तथा कमजोर समभारिक स्पिन वाले कण है, इस कारण क्वार्क अन्य फर्मीयान कणो से विद्युत चुंबकिय बल से तथा कमजोर नाभिकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
शेष: छः फर्मीयान कणो का रंग नही होता है और उन्हे लेप्टान कहते है। तीन न्युट्रीनो कण मे विद्युत आवेश भी नही होता है, जिससे उनकी जांच कमजोर नाभिकिय बल से ही की जा सकती है और इससे उन्हे जांच कर पाना अत्यंत कठीन हो जाता है। अन्य विद्युत आवेशीत लेप्टान (इलेक्ट्रान, म्युआन तथा टाउ) विद्युतचुंबकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
2.गाज बोसान
मानक प्रतिकृति मे गाज बोसान मजबूत नाभिकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा विद्युत चुंबक बल का वहन करने वाले बल वाहक कणो के रूप मे जाने जाते है। भौतिकी मे बल का अर्थ एक कण द्वारा दूसरे कण पर डाला गया प्रभाव है। क्वांटम के अनुसार मूलभूत बल पदार्थ कणो के मध्य बलवाहक कणो के आदानप्रदान का परिणाम है। बोसान पाली के व्यतिरेक सिद्धांत का पालन नही करते है, इस कारण बलवाहक कणो के घनत्व की कोई सीमा नही है। विभिन्न तरह के बोसान निन्नलिखित है:
  1. फोटान : यह विद्युतचुंबक बल का वाहक कण है और विद्युत आवेशीत कणो के मध्य आदान प्रदान होता है। इसका द्रव्यमान नही है और क्वांटम इलेक्ट्रोडायनेमिक्स द्वारा इसकी पूर्ण तरीके से व्याख्या संभव है।
  2. W+, W− तथा Z गाज बोसान: यह भिन्न तरह के कणो(क्वार्क और लेप्टान) के मध्य कमजोर नाभिकिय बलो के लिए उत्तरदायी है। ये कण भारी होते है।
  3. ग्लूआन द्वारा रंगीन आवेशित कणो के मध्य मजबूत नाभिकिय बल उत्पन्न होता है। इन कणो का द्रव्यमान नही होता है।
  4. हिग्स बोसान :यह एक परिकल्पित कण है, इसे प्रयोगशाला मे अब तक देखा नही गया है। यह एक भारी कण है । यह मानक प्रतिकृति के सिद्धांत के आधार स्तंभो मे से एक है।
अब आधुनिक भौतिकी मे दो सफल सिद्धांत है, बड़े विशाल पैमाने पर पिंडों के व्यवहार की व्याख्या करने वाला सिद्धांत – साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत तथा परमाण्विक स्तर पर के व्यवहार की व्याख्या करने वाला सिद्धांत – क्वांटम सिद्धांत। दोनो सिद्धांत अपने क्षेत्र मे सफल सिद्धांत है। दोनो के पूर्वानुमान सटीक रहे है। दोनो सिद्धांतो को प्रायोगिक रूप से मान्यता मिली है।
लेकिन दोनो सिद्धांतो का सह अस्तित्व संभव नही है! ऐसा क्यों ? अगले भाग मे…
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अभी तक स्ट्रींग सिद्धांत की भूमिका ही बन रही है, अगले लेख से स्ट्रींग सिद्धांत का परिचय होगा…..

Thursday, November 3, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory):सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन

18 वीं तथा 19 वी शताब्दी मे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत सर्वमान्य सिद्धांत बन चूका था। यूरेनस की खोज तथा ग्रहो की गति और पथ की सफल व्याख्या इसे प्रमाणित करती थी। नेपच्युन के खोजे जाने के पश्चात यह पाया गया था कि इसके पथ मे एक विचलन है जो किसी अज्ञात ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से संभव है। इस विचलन आधारित गणना से अज्ञात ग्रह के पथ और स्थिति की गणना की गयी, इसके परिणामो द्वारा प्राप्त स्थान पर यूरेनस खोज निकाला गया था। इन सबके अतिरिक्त यह सिद्धांत तोप से दागे जाने वाले गोले की गति और पथ की गणना मे भी सक्षम था।
यह एक सफल सिद्धांत था, जिसके आधार मे कैलकुलस आधारित गणितीय माडेल था।
यह स्थिती 20 वी शताब्दी के प्रारंभ तक रही, जब 1905 -1915 के मध्य मे अलबर्ट आइंस्टाइन ने अपने विशेष और साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत से भौतिकी की जड़े हिला दी। पहले उन्होने सिद्ध किया कि न्यूटन के तीनो गति के नियम आंशिक रूप से सही है, वे गति के प्रकाशगति तक पहुंचने पर कार्य नही करते है। उसके पश्चात उन्होने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी आंशिक रूप से सही बताया, यह भी अत्यधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे कार्य नही करता है।

आइंस्टाइन जानते थे कि न्यूटन के सिद्धांत गतिशील पिंडो की व्याख्या करते है और वे ग्रहो और अन्य आकाशीय पिंन्डो की गति की व्याख्या करने मे सफल रहे है। वहीं पर मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय तरंगों के साथ साथ प्रकाश के व्यवहार की व्याख्या करने मे सफल रहे हैं। यह दोनो सिद्धांत उस समय भौतिकी के स्तम्भ थे। लेकिन आइंस्टाइन ने पाया कि ये दोनो सिद्धांत एक दूसरे के विरोध मे है और इन स्तम्भो मे से एक का ध्वस्त होना आवश्यक है।
न्यूटन के अनुसार आप प्रकाश से तेज चल सकते है क्योंकि प्रकाश गति मे कोई विशेषता नही है। इसका अर्थ यह है कि जब आप प्रकाश की धारा के बाजू मे दौड लगायेंगे तो प्रकाश धारा को स्थायी रहना चाहीये। यह प्रकाश धारा किसी जमी हुयी धारा के जैसे होगी जिसे आज तक किसी ने देखा नही है। न्यूटन का सिद्धांत सामान्य बुद्धि से मेल नही खाता था। आइन्स्टाइन ने मैक्सवेल के समीकरणो मे एक ऐसी विशेषता खोज निकाली जो मैक्सवेल स्वयं नही जानते थे।आइन्स्टाइन ने पाया कि प्रकाशगति एक स्थिरांक है। आप कितनी ही गति से चले प्रकाश अपनी स्थिर गति से ही आप से दूर जायेगा। यदि आप किसी गेंद को किसी गतिवान कार से फेंकते है तब उस गेंद की गति मे कार की गति जुड जाती है लेकिन प्रकाश के साथ ऐसा नही होता, वह अपनी स्थिर गति से ही आपसे दूर जायेगा। प्रकाश की गति निरिक्षक के सापेक्ष होगी और हमेशा स्थिर होगी।
समय की गति ब्रह्माण्ड मे समान नही होती है।
समय की गति ब्रह्माण्ड मे समान नही होती है।
इसी तरह न्यूटन के सिद्धांतो मे समय ब्रह्माण्ड हर स्थान पर समान गति से था। पृथ्वी का एक सेकंड, मंगल पर एक सेकंड के बराबर था. लेकिन आइन्स्टाइन के अनुसार समय की गति स्थानानुसार परिवर्तित होती है, पृथ्वी का एक सेकंड , मंगल के एक सेकंड के बराबर नही है। प्रकाशगति के तुल्य चलने पर समय धीमा हो जाता है, उसी तरह अत्याधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे भी वह थम जाता है।
भारी पिंडों द्वारा काल-अंतराल मे निर्मित विकृति
भारी पिंडों द्वारा काल-अंतराल मे निर्मित विकृति
सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार काल (समय) और अंतराल (अंतरिक्ष) अलग नही है, दोनो एक दूसरे से संबंधित है। काल और अंतराल मिलकर ब्रह्माण्ड मे एक कपड़े जैसी संरचना का निर्माण करते है। पदार्थ के द्रव्यमान के कारण इस काल-अंतराल मे विकृति निर्मित होती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी तने हुये कपड़े की चादर पर एक भारी गेंद लुढ़का दी जाये। यह गेंद चादर पर एक विकृति निर्माण करेगी। सूर्य के द्वारा काल-अंतराल की चादर मे मे आयी इस विकृति के कारण ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। जैसे उपरोक्त चादर पर कुछ कंचे डालने पर वह भारी गेंद के चारो ओर परिक्रमा करते हुये भारी गेंद की ओर स्पायरल पथ से जायेंगे।
न्यूटन के नियमों से यह कहीं से पता नही चलता कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही है जो कि अलबर्ट आइंस्टाइन प्रसिद्ध समीकरण से स्पष्ट है।
ध्यान दें कि आइंस्टाइन ने न्यूटन को गलत नही साबित किया, उन्होने न्यूटन के सिद्धांतो की सीमा तय की। उन्होने इस सीमा के पश्चात न्यूटन के सिद्धांतो का विस्तार किया।
आइंस्टाइन के विशेष तथा साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के प्रस्तुति के पश्चात लाखों प्रयोगो ने उन्हे प्रमाणित किया है। रोजाना प्रयोग मे आने वाली जी पी एस प्रणाली इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जीपीएस के उपग्रहो मे लगी घड़ियाँ पृथ्वी की घड़ियाँ से भिन्न गति से चलती है। यह जी पी एस प्रणाली अचूक स्थिती दिखाने मे समर्थ है और इसमे एक सेंटीमीटर की भी गलती नही होती है। इस सिद्धांत द्वारा प्रस्तावित और प्रयोगो द्वारा प्रमाणित कुछ मुख्य उदाहरण:
1.बुध की कक्षा : बुध की कक्षा मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से अनुमानित कक्षा से एक विचलन है। न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत इसे समझा जा सकता है लेकिन आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद से की गयी कक्षा की गणना और निरीक्षित की गयी कक्षा मे कोई अंतर नही है। दोनो सिद्धांतो मे यह अंतर बहुत कम है लेकिन स्पष्ट है। यह अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की सीमा दर्शाता है।
अत्यधिक गुरुत्वीय क्षेत्र का प्रकाश पर प्रभाव
अत्यधिक गुरुत्वीय क्षेत्र का प्रकाश पर प्रभाव
2. न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के विपरीत लेकिन आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश किरणे अत्याधिक गुरुत्व मे मुड़ जाती है। इसे सूर्यग्रहणो मे देखा जा चुका है, इस प्रभाव के कारण सूर्य के पीछे के तारे सूर्यग्रहण के दौरान देखे जा सकते है। गुरुत्वीय लेंसींग भी इसी का एक उदाहरण है।
3. साधारण सापेक्षतावाद के अनुसार मजबूत गुरुत्वीय क्षेत्र से आते हुये प्रकाश मे लाल विचलन होना चाहिये। यह निरीक्षण मे सही पाया गया है और इसकी मात्रा भी साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना कीये गये मूल्य के समान है।
दो श्याम वीवरों द्वारा एक दूसरे की परिक्रमा से उत्पन्न गुरुत्विय तरंगे
दो श्याम वीवरों द्वारा एक दूसरे की परिक्रमा से उत्पन्न गुरुत्विय तरंगे
एक सिद्धांत जिसका प्रायोगिक सत्यापन अभी शेष है , वह है गुरुत्वीय तरंगे। विद्युत चुंबकीय क्षेत्र की तरंगे होती है जो ऊर्जा का वहन करती है, इन्ही तरंगो को प्रकाश कहा जाता है। इसी तरह से गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र मे ऊर्जा वहन करने वाली गुरुत्वीय तरंगे होना चाहीये। इन तरंगो को काल-अंतराल की वक्रता मे लहरों के रूप मे समझा जा सकता है, जोकि प्रकाशगति से गति करती हैं।
आइंस्टाइन का सापेक्षतावाद का सिद्धांत उस समय के ज्ञात मूलभूत बल गुरुत्वाकर्षण तथा विद्युत-चुंबकीय बल की सफल व्याख्या करता था। यह सिद्धांत प्रकाश के व्यवहार, समय के प्रवाह की भी सफल व्याख्या करता था। अधिकतर वैज्ञानिक मानते थे कि अब भौतिकी मे जानने योग्य ज्यादा कुछ शेष नही है।
लेकिन 1911 मे रदरफोर्ड द्वारा इलेक्ट्रान की खोज तथा उसके पश्चात प्रोटान, न्यूट्रॉन की खोज के पश्चात क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ।