Wednesday, October 26, 2011

स्ट्रींग सिद्धांत(String Theory):सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन


स्ट्रींग सिद्धांत यह कण भौतिकी का एक ऐसा सैद्धांतिक ढांचा है जो क्वांटम भौतिकी तथा साधारण सापेक्षतावाद के एकीकरण का प्रयास करता है। यह महाएकीकृत सिद्धांत(Theory of Everything) का सबसे प्रभावी उम्मीदवार सिद्धांत है जोकि सभी मूलभूत कणो और बलो की गणितीय व्याख्या कर सकता है। यह सिद्धांत अभी परिपूर्ण नही है और इसे प्रायोगिक रूप से जांचा नही जा सकता है लेकिन वर्तमान मे यह अकेला सिद्धांत है जो महाएकीकृत सिद्धांत होने का दावा करता है।
इस लेखमाला मे हम इस सिद्धांत को समझने का प्रयास करेंगे। इस लेख माला के विषय होंगे
  • सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन
  • सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन
  • क्वांटम भौतिकी और गुरुत्वाकर्षण
  • स्ट्रिंग सिद्धांत क्यों ?
  • स्ट्रिंग सिद्धांत क्या है?
  • कितने स्ट्रिंग सिद्धांत है?
  • क्या ये सभी स्ट्रिंग सिद्धांत एक दूसरे संबंधित है?
  • क्या इससे ज्यादा मूलभूत सिद्धांत भी है?
  • स्ट्रिंग सिद्धांत के अनसुलझे प्रश्न और आलोचना

सैद्धांतिक भौतिकी और न्युटन
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी गणित का प्रयोग कर प्रकृति के कुछ पहलूओं की व्याख्या करते है। आइजैक न्युटन को पहला सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी माना जाता है, जबकि उनके समय मे उनके व्यवसाय को प्रकृति का दर्शनशास्त्र(natural philosophy) कहा जाता था।
बीज गणित और ज्यामिति से स्थिर पिंडो के बारे मे गणितीय गणना संभव है।
बीज गणित और ज्यामिति से स्थिर पिंडो के बारे मे गणितीय गणना संभव है।
न्युटन के युग के समय तक बीजगणित(algebra) और ज्यामिति(Geometry) के प्रयोग से वास्तुकला के अद्भूत भवनो का निर्माण हो चूका था जिनमे युरोप के महान चर्चो का भी समावेश है। लेकिन बीजगणित तथा ज्यामिति स्थिर वस्तु की व्याख्या करने मे ही सक्षम है। गतिवान वस्तुओं या अवस्था परिवर्तन करने वाली वस्तुओं की व्याख्या के लिए न्युटन ने कैलकुलस(Calculus) की खोज की थी।( महान गणीतज्ञ लिब्निज(Leibniz) ने न्युटन के साथ ही कैलकुलस की खोज की थी और इसकी खोज के श्रेय के लिये दोनो के मध्य कटु विवाद भी रहा था। लेकिन वर्तमान मे इसका श्रेय न्युटन को ही दिया जाता है। भारतीय गणितज्ञ माधवाचार्य ने कैलकुलस के प्रारंभिक स्वरूप की खोज 14 वी शताब्दी मे की थी।)
मानव को चमत्कृत करनेवाली गतिमान वस्तुओं के सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और तारों का समावेश रहा है। न्युटन की नयी गणितीय खोज कैलकुलस और गति के नियमो ने मिलकर गुरुत्वाकर्षण के एक गणितिय माडेल का निर्माण किया था जोकि ना केवल आकाश मे ग्रहों तारो की गति की व्याख्या करता था बल्कि दोलन तथा तोप के गोलो की गति की भी व्याख्या करता था।
गतिशील पिंडो से संबधित गणनाओं के लिए कैलकुलस की आवश्यकता होती है।
गतिशील पिंडो से संबधित गणनाओं के लिए कैलकुलस की आवश्यकता होती है।
वर्तमान की सैद्धांतिक भौतिकी ज्ञात गणित की सीमाओं के अंतर्गत कार्य करती है, जिसमे आवश्यकता के अनुसार नयी गणित का आविष्कार भी शामिल है जैसे न्युटन ने कैलकुलस का आविष्कार किया था।
न्युटन एक सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रायोगिक वैज्ञानिक भी थे। उन्होने अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुये कई बार लंबी अवधी मे कार्य किया था, जिससे कि वह समझ सके की प्रकृति का व्यवहार कैसा है और वे उसकी व्याख्या कर सकें। न्युटन के गति के नियम ऐसे नियम नही है कि प्रकृति उनके पालन करने के लिये बाध्य हो, वे प्रकृति के व्यवहार के निरीक्षण का परिणाम है और उस व्यवहार का गणितिय माडेल मात्र है। न्युटन के समय मे सिद्धांत और प्रयोग एक साथ ही चलते थे।
वर्तमान मे सिद्धांत(Theoritical) और निरीक्षण/प्रायोगिक(Observation/Experimental) भौतिक विज्ञान के दो भिन्न समुदाय है। प्रायोगिक विज्ञान और सैद्धांतिक विज्ञान दोनो ही न्युटन के काल की तुलना मे अधिक जटिल हैं। सैद्धांतिक वैज्ञानिक प्रकृति के व्यवहार को गणितीय नियमो और गणनाओं से समझने का प्रयास करते हैं जीनका वर्तमान तकनीक की सीमाओं के फलस्वरूप प्रयोगों के द्वारा निरीक्षण संभव नही है। ऐसे कई सैद्धांतिक वैज्ञानिक जो आज जीवित है, अपने कार्य के गणितीय माडेल के प्रायोगिक सत्यापन के लिए शायद जीवित नही रहेंगे। वर्तमान सैद्धांतिक वैज्ञानिको ने अपने कार्य की अनिश्चितता और संशयात्मक स्थिति के मध्य मे जीना सीख लीया है।
गति के नियम तथा गुरुत्वाकर्षण की खोज के लिए श्रेय न्युटन को दिया जाता है। उन्होने इन नियमो को अपनी महान पुस्तक Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica(अंग्रेजी मे Mathematical Principles of Natural Philosophy, हिन्दी मे प्रकृति दर्शनशास्त्र के गणितिय नियम) मे प्रस्तुत किया है। इन नियमों को विश्व के सम्मुख लाने का श्रेय एडमंड हेली को जाता है, एडमंड हेली ने ही न्युटन को इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया था। एडमंड हेली को आज उस धुमकेतु के नाम से जाना जाता है जिसकी खोज उन्होने नही की थी। उन्होने केवल यह बताया था कि सन 1456,1531 तथा 1607 मे दिखायी दिया धूमकेतु एक ही है और वह 1758 मे वापिस आयेगा। इससे हेली की महानता कम नही होती, वे एक महान खगोल वैज्ञानिक थे और कई अन्य महत्वपूर्ण खोजें भी की थी। एक शाम राबर्ट हूक (कोशीका की खोज करने वाले वैज्ञानिक), खगोल वैज्ञानिक क्रिस्टोफर व्रेन तथा हेली लंदन मे शाम का खाना खा रहे थे। उनकी चर्चा ग्रहो की गति की ओर मुड़ गयी। उस समय तक ज्ञात था कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृत्त मे ना कर दिर्घवृत्त(ellipse) मे करते है। लेकिन ऐसा क्यों है, किसी को ज्ञात नही था। राबर्ट हूक जोकि दूसरो के आइडीये का श्रेय लेने के लिए कुख्यात थे, ने दावा किया इसका कारण उन्हे ज्ञात है लेकिन वह उसे उस समय प्रकाशित नही करेंगे। हेली इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आतुर थे।
उन्होने न्युटन से संपर्क किया। न्युटन को एक सनकी, चिड़चिड़ा व्यक्तित्व माना जाता है लेकिन आशा के विपरीत न्युटन हेली से मिलने तैयार हो गये। इस मुलाकात मे हेली ने न्युटन से पूछा कि ग्रहो की गति कैसी होती है। न्युटन के उत्तर दिया की वे दिर्घवृत्त मे परिक्रमा करते हैं। हेली जो कि खगोल वैज्ञानिक थे, इस उत्तर से चकित रह गये। उन्होने न्युटन से पुछा कि वे कैसे जानते है कि ग्रह दिर्घवृत्त मे परिक्रमा करते है। न्युटन का उत्तर था कि उन्होने इसकी गणना की है। हेली ने उन्हे अपनी गणना दिखाने कहा। अब न्युटन महाशय को यह पता नही कि उन्होने वह गणना का कागज कहां रखा है! यह कुछ ऐसा है कि आपने कैंसर का इलाज खोज लिया है लेकिन उस इलाज को कहीं रख के भूल गये। हेली ने हार नही मानी, उनके अनुरोध पर न्युटन ने फिर से गणना करने का निर्णय लिया। न्युटन ने इस बार पूरा समय लेते हुये दो वर्षो की मेहनत से अपनी महान पुस्तक Philosophiæ Naturalis Principia Mathematica लिखी। इसके प्रकाशन मे भी कई रोढे़ आये, एडमंड हेली ने इस पुस्तक के प्रकाशन का खर्च उठाया। इस अकेली पुस्तक ने ब्रह्माण्ड को देखने का पूरा नजरिया पलट कर रख दीया।
इस पुस्तक ना केवल गति के नियमो को प्रस्तुत करती है, बल्कि गुरुत्वाकर्षण की भी व्याख्या करती है। इसके नियम हर गतिशील पिंड की गति और पथ की व्याख्या करते है।
अगले भाग मे सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन

Friday, October 21, 2011

समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


क्या आप जानते है कि समय यह अंग्रेजी भाषा मे सबसे ज्यादा प्रयुक्त संज्ञा है। समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य“, यह शीर्षक कुछ दार्शनिकअंदाज लिये हुये है, लेकिन आप तो विज्ञान से संबधित चिठ्ठे पर है। समय शायद एक ऐसा विषय है जो हर क्षेत्र मे उपस्थित है, धर्मदर्शन शास्त्र या विज्ञान। पिछले कुछ समय से मै भौतिकी से संबधित लेखो को पढ़ रहा हूं, उनपर लेख लिख रहा हूं, कुछ शब्द जो बार बार आते है, वे है समय“, “अंतराल/अंतरिक्षऔर ब्रह्माण्ड। यह लेख समय पर कुछ टिप्पणियों का संग्रहण है।
1.समय का आस्तित्व है। यह एक बहुत साधारण सा लगने वाला लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या समय का अस्तित्व है? हां समय का अस्तित्व है, आखिर हम लोग अपनी अलार्म घड़ीयोँ मे से समय निर्धारित करते ही है! समय ब्रह्माण्ड को क्षणो को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे रखता है। ब्रह्माण्ड हर क्षण भिन्न अवस्था मे रहता है, ब्रह्माण्ड की किसी भी क्षण की अवस्था किसी अन्य क्षण की अवस्था के समान नही होती है। यदि समय इन अवस्थाओं को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे न रखे तो अनुमान लगाना कठिन है कि कैसी अव्यवस्था होगी ? वास्तविक प्रश्न है कि क्या समय मूलभूत है अथवा उत्पन्न है? एक समय हम मानते थे कि तापमान प्रकृति का बुनियादी गुणधर्म है, लेकिन अब हम जानते है कि वह परमाणु के आपसी टकराव से उत्पन्न होता है। लेकिन क्या समय की उत्पत्ती होती है, या वह ब्रह्माण्ड का बुनियादी गुणधर्म है ? इसका उत्तर कोई नही जानता है। लेकिन मै अपनी शर्त इसके बुनियादी गुणधर्म होने पर लगाउंगा लेकिन इसे सिद्ध करने हमे क्वांटम गुरुत्वको समझना जरूरी है।
2.भूतकाल और भविष्यकाल भी समान रूप से वास्तविक होते है। इस तथ्य को सभी स्वीकार नही करते है, लेकिन यह तथ्य है। सहज ज्ञान से हम मानते है कि केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्थायी है और इतिहास मे दर्ज है, जबकि भविष्य अभी तक आया नही है। लेकिन भौतिकी के अनुसार भूतकाल और भविष्य की हर घटना वर्तमान मे अंतर्निहित है। इसे रोजाना के कार्यो मे देखना कठिन है क्योंकि हम किसी भी क्षण मे ब्रह्माण्ड की अवस्था नही जानते है, ना ही कभी जान पायेंगे। लेकिन समीकरण कभी गलत नही होते है। आइंस्टाइन के अनुसार
अब तक के तीन आयामो मे अस्तित्व के विकास की बजाय चार आयामो को भौतिक वास्तविकता के रूप मे स्वीकार करना ज्यादा प्राकृतिक है।
इसमे चतुर्थ आयाम समय है।
3.हम किसी का समय का अनुभव भिन्न होता है। यह भौतिकी तथा जीव शास्त्र दोनो स्तरों पर सत्य है। भौतिकी मे इतिहास मे हमने न्युटन के समय के दृष्टिकोण को देखा है जिसमे समय सभी के लिए सार्वभौमिक और समान था। लेकिन आइंस्टाइन ने यह प्रमाणित कर दिया कि समय भिन्न भिन्न स्थानो पर गति और गुरुत्व के अनुसार भिन्न होता है। विशेषतः यह प्रकाशगति के समीप यात्रा करने वाले व्यक्ति या श्याम वीवर के जैसे अत्याधिक गुरुत्व वाले स्थानो पर थम सा जाता है। प्रकाशगति से यात्रा करने वाला व्यक्ति यदि पृथ्वी पर वापिस आये तो उसके एक वर्ष मे पृथ्वी पर हजारो वर्ष व्यतित हो चुके होंगे। जैविक या मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी किसी परमाणु घड़ी द्वारा मापा गया समय हमारी आंतरिक लय और स्मृतियोँ के संग्रह से ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। समय का प्रभाव किसी घड़ी से ना होकर व्यक्ति पर, उसके अनुभवो पर निर्भर करता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जैसे हम उम्रदराज होते है समय तेजी से व्यतित होता है।
4.आप भूतकाल मे जीते है। सटीक तौर पर कहा जाये तो आप 80 मीलीसेकंड भूतकाल मे जीते है। यदि आप एक हाथ से नाक को छुये और ठीक उसी समय दूसरे हाथ से पैरो को छुये, आप को महसूस होगा कि दोनो कार्य एक साथ हुये है। लेकिन पैरो से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाला समय,नाक से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाले समय से ज्यादा है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमारी आंतरिक चेतना का सुचना जमा करने मे समय लगता है तथा हमारा मस्तिष्क सारी आगत सुचनाओं के इकठ्ठा होते तक प्रतिक्षा करता है, उसके पश्चात उसे वर्तमानके रूप मे महसूस करता है। हमारे मस्तिष्क का यह वर्तमान’ वास्तविक वर्तमान से 80 मीलीसेकंड पिछे होता है, यह अंतराल प्रयोगों द्वारा प्रमाणित है।
5.आपकी स्मृति आपकी अपनी मान्यता से कमजोर होती है। आपका मस्तिष्क भविष्य की कल्पना के लिये ठीक वैसी ही प्रक्रिया अपनाता है जब आप किसी भूतकाल की घटना को याद करते है। यह प्रक्रिया किसी लिखे नाटक के मंचन की बजाये वीडीयो को रीप्ले करने के जैसे ही है। किसी कारण से यदि नाट्य लेख गलत हो तो आप अपनी मिथ्या स्मृति का सहारा लेते है जो कि वास्तविकता के जैसा ही प्रतित होता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि न्यायालयों मे चश्मदीद गवाहो के बयान सबसे कम भरोसेमंद होते है।
6.हमारी चेतना अपनी समय के साथ हेरफेर की क्षमता पर निर्भर होती है। हमे पूर्णतः ज्ञात नही है लेकिन हमारी चेतना के लिये काफी सारी संज्ञानात्मक क्षमतायें अनिवार्य होती है। लेकिन हमारी चेतना समय तथा प्रायिकता के साथ हेरफेर करने मे सक्षम है और यह मानव चेतना का एक महत्वपूर्ण गुण है। जलचर जीवन के विपरीत, धरती के जीव जिनकी दृश्य क्षमता सैकड़ो मीटर तक होती है, एक साथ कई पर्यायो पर विचार कर सर्वोतम को चुन सकने मे सक्षम है। वे भविष्य का पूर्वानुमान लगा सकते है। एक चीता 70-80 किमी की गति से रफ्तार से दौड़ते हुये चिंकारे की अगली अवस्था का अनुमान लगा कर छलांग लगा सकता है और दबोज सकता है। उसकी चेतना समय के साथ हेरफेर मे सक्षम है। व्याकरण की उत्पत्ती के साथ हम भविष्य की काल्पनिक स्थितियोँ का वर्णन कर सकते है। भविष्य की कल्पना की क्षमता की अनुपस्थिति मे चेतना का अस्तित्व ही संभव नही है।
7.समय के साथ अव्यवस्था बढती है। भूतकाल और भविष्य के हर अंतर के हृदय मे होते है स्मृति, बुढा़पा,कारण-कार्य-सिद्धांत, जो दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। किसी भौतिक विज्ञानी के शब्दो मे एन्ट्रोपी बढ़ रही है। व्यवस्था(कम एन्ट्रोपी) से अव्यवस्था(अधिक एन्ट्रोपी) की ओर बढने के एकाधिक पथ होते है, इसलिए एन्ट्रोपी का बढ़ना प्राकृतिक लगता है। आप किसी फुलदान को कितने ही सारे तरीकों से तोड़ सकते है। लेकिन भूतकाल की कम एन्ट्रोपी की व्याख्या के लिए हमे बिग बैंग (महाविस्फोट) तक जाना होगा। हमने उस समय के कुछ कठिन और जटिल प्रश्नो का उत्तर ज्ञात नही है जैसे : बिग बैंग के समय एन्ट्रोपी इतनी कम क्यों थी ? बढ़ती हुयी एन्ट्रोपी स्मृति, कारण-कार्य-सिद्धान्त और अन्य के लिये कैसे उत्तरदायी है?
8.जटिलता आती है और जाती है। इंटेलीजेंट डीजाइन के समर्थकों(क्रियेशनीस्ट) के अतिरिक्त अधिकतर व्यक्तियों को व्यवस्थित (कम एन्ट्रोपी) तथा जटिलता के मध्य अंतर समझने मे परेशानी नही होती है। एन्ट्रोपी बढती है अर्थात अव्यवस्था बढ़ती है लेकिन जटिलता अल्पकालिक होती है, वह जटिल विधियोँ से कम और ज्यादा होते रहती है। जटिल संरचनाओं के निर्माण का कार्य ही अव्यवस्था को बढा़वा देना है, जैसे जीवन का उद्भव। इस महत्वपूर्ण घटना को पूरी तरह से समझना अभी बाकि है।
9.उम्रदराज होने की विपरीत प्रक्रिया संभव है। हमारा उम्रदराज होना अव्यवस्था मे वृद्धि के सिद्धांत के अनुरूप ही है। लेकिन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे वृद्धी होना चाहीये, किसी वैयक्तिक भाग मे नही। किसी भाग मे अव्यवस्था मे कमी आ सकती है, बशर्ते सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे बढ़ोत्तरी हो। ऐसा ना हो तो किसी रेफ्रिजरेटर का निर्माण असंभव हो जाता। किसी जीवित संरचना के लिए समय की धारा को पलटना तकनीकी रूप से चुनौती भरा जरूर है लेकिन असंभव नही है। हम इस दिशा मे नयी खोज भी कर रहे है जिसमे स्टेम कोशीकायें के साथ साथ मानव पेशीयों का निर्माण भी शामील है। एक जीवविज्ञानी ने कहा था कि
आप और मै हमेशा जीवित नही रहेंगे, लेकिन अपने पोतों के लिए मै ऐसा नही कह सकता।
10.एक जीवन = एक अरब धड़कन : जटिल जैविक संरचनाओं की मृत्यु होती है। यह किसी व्यक्ति के लिए दुखद हो सकता है लेकिन प्रकृति के लिए यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है जो पुराने को हटाकर नये के लिए मार्ग बनाती है। इसके लिए एक साधारण परिमाण नियम है जो कि प्राणी चयापचय तथा उसके भार से संबधित है। बड़े प्राणी अधिक जीते है लेकिन उनकी चयापचय प्रक्रिया धीमी होती है और धड़कनो की गति धीमी होती है। छछूंदर से लेकर ब्लू व्हेल तक जीवन समान होता है, लगभग डेढ़ अरब धड़कने। समय सभी के सापेक्ष है, सभी की जीवन अवधि समान होती है। यह तब तक सत्य रहेगा जब तक आप इसके पहले वाले बिंदु मे सफलता हासील नही कर लेते!