Sunday, June 19, 2011

एक साथ छः तारों की मृत्यु

2010 के सुपरनोवा विस्फोट के बाद की तस्वीर(नासा द्वारा तैयार कीया गया मिश्रित चित्र)

2010 के सुपरनोवा विस्फोट के बाद की तस्वीर(नासा द्वारा तैयार कीया गया मिश्रित चित्र)

अंतरिक्ष में छह बड़े विस्फोट हुए हैं। पृथ्वी से लाखों करोड़ों किलोमीटर दूर पुराने बड़े तारे इस विस्फोट के बाद खत्म हो गए हैं। वैज्ञानिक धमाकों को ’नई तरह का सुपरनोवा’ कह रहे हैं।

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बुधवार 8 जुन 2011 को छह बार अत्यधिक चमकने वाली रोशनी देखी। कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रॉबर्ट क्यूम्बी के मुताबिक,

‘पुराने वाकयों के आधार पर इस घटना को समझा नहीं जा सकता। फ्लैश की तरह अचानक पैदा हुई ये रोशनी सुपरनोवा है।’

सुपरनोवा तारे में होने वाले विस्फोट की प्रक्रिया को कहा जाता है। पुराने पड़ चुके बड़े तारे जब ऊर्जा विहीन हो जाते हैं तो उनका केंद्र ढह जाता है जिससे तारे में जबदस्त विस्फोट होता है। विस्फोट के साथ अपार रोशनी निकलती है और न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल बनते हैं।

कुछ अन्य दुर्लभ घटनाओ मे ठंडे होते हुये लाल तारे से श्वेत वामन तारे की ओर पदार्थ का प्रवाहित होता है। श्वेत वामन तारा किसी मृत तारे का अत्याधिक घन्त्व वाला तथा गर्म केन्द्रक होता है। इस श्वेत वामन तारे मे और पदार्थ के आने पर यह और संकुचित होता है और उसमे एक विस्फोट होता है।

लेकिन क्यूम्बी और उनकी टीम द्वारा देखे गये छः सुपरनोवा अभी तक के ज्ञात सुपरनोवाओं से अलग है और उनके रासायनिक हस्ताक्षर भिन्न है।

2005 में क्यूम्बी की टीम ने SN2005ap नाम के एक सुपरनोवा का पता लगाया। उस सुपरनोवा की रोशनी सूर्य के प्रकाश से 100 अरब गुना ज्यादा थी। इसी दौरान अंतरिक्ष दूरबीन हबल स्पेस टेलीस्कोप ने भी SCP 06F6 सुपरनोवा की पता लगाया। SCP 06F6 सुपरनोवा की रासायनिक संरचना अब तक के सुपरनोवाओं से भिन्न है। इन घटनाओं ने एक विशेष टीम के गठन के मार्ग को प्रशस्त किया जिसने इन अस्थायी लेकिन तेज चमक वाले इन पिंडो की खोज के लिए कैलीफोर्नीया, हवाई तथा कैनरी द्वीपो की दूरबीन का प्रयोग प्रारंभ किया।

इस बीच चार ऐसे सुपरनोवा सामने आए जिनमें कम मात्रा में हाइड्रोजन गैस है। यह चार सुपरनोवा वामन आकाशगंगाओं मे पाये गये जिसमे कुछ अरब तारे ही होते है।

विज्ञान जगत की ब्रिटिश पत्रिका नेचर में छपी रिपोर्ट में क्यूम्बी की टीम ने छह सुपरनोवाओं के बारे में कई और जानकारियां दी हैं। टीम के मुताबिक नए सुपरनोवा अत्यधिक गर्म हैं। अनुमान है कि इनका तापमान 20,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो सकता है। इनके धमाके से पैदा हुई ध्वनि तरंगें अंतरिक्ष में 10,000 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से फैल रही हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक सुपरनोवा को बुझने में 50 दिन का समय लग सकता है जो कि सामान्य सुपरनोवाओं के कुछ दिन या कुछ सप्ताहों से कहीं ज्यादा है। सामान्य सुपरनोवाओं की चमक हाइड्रोजन गैस की चमक और रेडियोसक्रिय क्रियाओं की वजह से होती है।

यह प्रश्न अनुत्तरीत है कि क्यों इन सुपरनोवाओं की चमक इतनी ज्यादा है?

एक प्रस्ताव के अनुसार इनकी चमक का श्रोत एक “पल्सर” है, जोकि एक महाकाय तारा होता है , जिसने अपनी हायड्रोजन गैस रहित तहो को एक विस्फोट से अंतरिक्ष मे प्रवाहित कर दी होती है। जब यह तारा एक सुपरनोवा के रूप मे विस्फोटीत होता है तब विस्फोट इन गैस की तहों को अत्यधिक गर्म करता है और उसमे यह तीव्र चमक उत्पन्न होती है।

टीम का कहना है,

‘ये नए सुपरनोवा काफी दिलचस्प हैं। ये अन्य सुपरनोवाओं से 10 गुना ज्यादा चमकीले हैं। इनसे हमें अंतरिक्ष के क्षेत्र में और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति के पहले 10 फीसदी समय में तक जा सकते हैं।’