Saturday, June 18, 2011

सृष्टि व ब्रह्मांड की उत्पत्ति (भाग १)

भूमिका: सृष्टि व ब्रह्माण्ड

ज्ञान चक्षु खुलने पर जब मानव ने प्रकृति के विभिन्न रूपों को रोमांच, आर्श्चय, भय व कौतूहल से देखा और सोचा की इन सब का क्या रहस्य है, क्या इन सब का कोइ संचालन - कर्ता है?

उसी क्षण मानव मन मे ईश्वर का आविर्भाव हुआ, और उसी ईश्वर की खोज के परिप्रेक्ष्य में सृष्टि, जीवन, मानवता, समाज, देश, राष्ट्र, आचरण, सत्य - असत्य, दर्शन, विज्ञान आदि के क्रमिक उन्नति व विकास की यात्राएं हैं। सृष्टि व ईश्वर के बारे में विभिन्न दर्शन, धर्म व आधुनिक विज्ञान के अपने-अपने मत हैं; परन्तु मानव आचरण व सदाचार जो समस्त विश्व; शान्ति हो या उन्नति या विकास सभी का मूल है, उस पर किसी में कोइ मत भेद नहीं है।

प्रश्न यह है कि आखिर इस विषय को हम क्यों जानें? आज के सन्दर्भ में इस, ईश्वर या सृष्टि कैसे बनी जानने का जीवन में क्या लाभ? वस्तुतः इसकी महत्ता नहीं है कि सृष्टि ईश्वर ने बनाई या विज्ञान के अनुसार स्वयं बनी; परन्तु यदि आधुनिक भौतिक वादी सोच के अनुसार यदि, यह सब एक संयोग है, ईश्वर कुछ नहीं, मानव सब कुछ कर सकता है, इस सोच का पोषण हो तो मानव में अहं- भाव जाग्रत होता है, और यही अहं- भाव सारे द्वंद्व, द्वेष व पतन का मूल होता है, सदियाँ गवाह हैं।

परन्तु सर्व-नियामक कोई ईश्वर है, हमारे कर्म ही कोई देखता है; इस सोच का पोषण हो तो, अहं भाव तिरोहित रहता है और मानव परार्थ, परमार्थ,समष्टि-हित भावों से युत सत्त्व गुणों को अपनाता है और उसका कृतित्व सत्यम, शिवम, सुन्दरम होकर समस्त विश्व को उसी राह पर ले जाकर उसे उन्नति व विकास के ऋजु मार्ग पर लेजाता है। यही उद्देश्य इस ज्ञान को जानने का है और यही उद्देश्य प्रस्तुत क्रमिक आलेख का।

संक्षिप्त में विषय भाव कुछ इस प्रकार है:

सृष्टि व ब्रह्माण्ड
भाग १: आधुनिक विज्ञान का मत - सृष्टि पूर्व, आरम्भ, बिग-बेंग, ऊर्जा व कणों की उत्पत्ति, कोस्मिक-सूप, परमाणु - निर्माण, हाइड्रोज़न-हीलियम, पदार्थ, लय व पुनः सृष्टि।
भाग २: वैदिक विज्ञान के अनुसार सृष्टि - सृष्टि पूर्व, एकोअहम बहुस्याम, ऊर्जा, कण, त्रिआयामी कण, पदार्थ, चेतन तत्व, कण-कण में भगवान, पंचौदन अज।
भाग ३: समय, जड़ व जीव सृष्टि की भाव संरचना,महातत्व, व्यक्त पुरुष ,व्यक्त माया,त्रिदेव,त्रि-आदि शक्ति ,हेमांड-ब्रह्माण्ड |
भाग ४: सृष्टि संगठन प्रक्रिया, नियामक शक्तियां, विभिन्न रूप सृष्टि, लय व पुनर्सृष्टि।

सभी का आधुनिक वैज्ञानिक मत से तुलनात्मक संदर्भित व्याख्या।

जीव व जीवन: संक्षिप्त में, आरम्भ कब, कैसे, किसने, कहाँ से, वृद्धि, गति, संतति वर्धन, लिंग चयन, स्वतः संतति-उत्पादन प्रक्रिया, प्राणी व मानव विकास क्रम आदि।
भाग १: आधुनिक विज्ञान सम्मत - योरोपीय, रोमन, ग्रीक आदि मत, डार्विन -सिद्धांत।
भाग २: वैदिक विज्ञान सम्मत - भारतीय दर्शन मत- ब्रह्मा का मूल सृष्टि -क्रम, भाव-पदार्थ निर्माण, रूप सृष्टि, प्राणी निर्माण, मानव, मानस-संकल्प व मैथुनी सृष्टि, मानव विकास क्रम।

***

भाग १:

जिस दिन मानव ने ज्ञान का फ़ल चखा,उसने मायावश होकर प्रकृति के विभिन्न रूपों को भय, रोमांच, आश्चर्य व कौतूहल से देखा और उसी क्षण मानव के मन में ईश्वर, गाड, रचयिता, खुदा, कर्ता का आविर्भाव हुआ। उसकी खोज के परिप्रेक्ष्य में ब्रह्मांड, सृष्टि व जीवन की उत्पत्ति का रहस्य जानना प्रत्येक मस्तिष्क का लक्ष्य बन गया। इसी उद्देश्य यात्रा में मानव की क्रमिक भौतिक उन्नति, वैज्ञानिक व दार्शनिक उन्नति के आविर्भाव की गाथा है। आधुनिक --विज्ञान हो या दर्शन या पुरा-वैदिक - विज्ञान इसी यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजना ही सबका का चरम लक्ष्य है।

आधुनिक विज्ञान की मान्यता के अनुसार उत्पत्ति का मूल "बिग बेन्ग" सिद्दान्त है। प्रारम्भ में ब्रह्मांड एकात्मकता की स्थिति में (सिन्ग्यूलेरिटी) में शून्य आकार व अनन्त ताप रूप (इन्फ़ाइनाइट होट) था। फ़िर:

१. अचानक उसमें एक विस्फ़ोट हुआ -- "बिग बेन्ग", और १/१००० सेकन्ड में तापक्रम १०० बिलिअन सेंटीग्रेड हो गया, घनीभूत ऊर्ज़ा व विकिरण के मुक्त होने से आदि-ऊर्ज़ा उपकण उत्पन्न होकर अनन्त ताप के कारण विखन्डित होकर एक दूसरे से तीव्रता से दूर होने लगे। ये हल्के, भार-रहित, विद्युतमय व उदासीन आदि ऊर्ज़ा उपकण थे जो मूलतः- इलेक्ट्रोन्स, पोज़िट्रोन, न्युट्रीनोज़ व फ़ोटोन्स थे। सभी कण बराबर संख्या में थे एवम् उपस्थित स्वतन्त्र ऊर्ज़ा से लगातार बनते जा रहे थे। इस प्रकार एक "कोस्मिक-सूप" बन कर तैयार हुआ।

२. एनीहिलेशन (सान्द्रीकरण) स्थिति- कणों के लगातार आपस में दूर-दूर जाने से तापक्रम कम होने लगा एवम हल्के कण एक दूसरे से जुड कर भारी कण बनाने लगे, जो १००० मिलियन: १ के अनुपात में बने। वे मुख्यतया, प्रोटोन, न्यूट्रोन व फ़ोटोन्स थे। (जो -१००० मिलियन एलेक्ट्रोन्स या फ़ोटोन्स या पोज़िट्रोन्स या न्यूट्रीनोस=१ प्रोटोन या न्यूट्रोन के अनुपात में बने।)

ये एटम-पूर्व कण थे जो लगातार बन रहे थे एवम उपस्थित ऊर्ज़ा से नये उप-कण उत्पन्न भी हो रहे थे, तापमान लगातार गिरने से बनने की प्रक्रिया धीमी थी।

३. स्वतन्त्र केन्द्रक (न्यूक्लियस) १४वें सेकन्ड में तीव्र एनीहिलेशन से जटिल केन्द्रक बनने लगे, १ प्रोटोन + १ न्यूट्रोन = भारी हाइड्रोज़न(ड्यूटीरियम) के अस्थायी केन्द्रक व पुनः २ प्रोटोन + २ न्यूट्रोन से स्थायी हीलियम के केन्द्रक ,जो परमाणु पूर्व कण थे बने।

४. बिग बेन्ग के तीन मिनट के अन्त में- शेष हल्के कण,न्यूट्रोन्स-प्रतिन्यूट्रोन्स, लघु केन्द्रक कणों के साथ ही ७३% हाइड्रोजन व २७% हीलियम मौज़ूद थे। एलेक्ट्रोन्स नहीं बचे थे ।

इस समय आदि-कण बनने की प्रक्रिया धीमी होने पर स्वतन्त्र ऊर्ज़ा के व एलेक्ट्रोन्स आदि के न होने से आगे की विकास प्रक्रिया लाखों वर्षों तक रूकी रही। यद्यपि कणों के तेजी से एक दूसरे से दूर जाने पर यह पदार्थ- कोस्ममिक-सूप-कम घना होता जारहा था, अतः उपस्थित गेसों की एकत्रीकरण (क्लम्पिन्ग) क्रिया प्रारम्भ होचली थी, जिससे बाद में गैलेक्सी व तारे आदि बनने लगे।

५. ऊर्ज़ा का पुनः निस्रण -- लाखों वर्षों बाद जब ताप बहुत अधिक कम होने पर, पुनः ऊर्ज़ा व एलेक्ट्रोन्स निस्रत हुए; ये एलेक्ट्रोन, प्रोटोन्स व न्यूट्रोन्स से बने केन्द्रक के चारों ओर एकत्र होकर घूमने लगे, इस प्रकार प्रथम एटम का निर्माण हुआ जो हाइड्र्प्ज़न व हीलियम गैस के थे। इसी प्रकार अन्य परमाणु, अणु, व हल्के-भारी कण, गैसें ऊर्ज़ा आदि मिलकर विभिन्न पदार्थ बनने के प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

-- न्युट्रिन + अन्टीनुट्रिनो + भारी एलेक्ट्रोन्स + केन्द्रक = ठोस पदार्थ, तारे, ग्रह पिन्ड आदि बने।
-- शेष एलेक्ट्रोन्स + पोज़िट्रोन्स + ऊर्ज़ा = तरल पदार्थ, जल आदि।
-- फ़ोटोन्स (प्रकाश कण) + शेष ऊर्ज़ा + हल्के कण पदार्थ = नेब्यूला, गैलेक्सी आदि। इस प्रकार सारा ब्रह्मान्ड बनता चला गया ।

सम स्थिति सिद्धांत -- विज्ञान के इस एक अन्य सिद्दान्त के अनुसार, ब्रह्मांड सदैव वही रहता है, जैसे -जैसे कण एक दूसरे से दूर होते हैं नया पदार्थ उन के बीच के स्थान को भरता जाता है, तारों, गैलेक्सियों आदि के बीच भी, यही प्रक्रिया चलती रहती है।

पुनः एकात्मकता -- ( या लय-प्रलय) -- प्रत्येक कण लगातार एक दूसरे से दूर होते जाने से ब्रह्मान्ड अत्यधिक ठन्डा होने पर, कणों के मध्य आपसी आकर्षण समाप्त होने पर, पदार्थ कण पुनः विश्रन्खलित होकर अपने स्वयम के आदि-कण रूप में आने लगते हैं, पदार्थ विलय होकर पुनः ऊर्ज़ा व आदि कणों में संघनित्र होकर ब्रह्मांड एकात्मककता को प्राप्त होता है,पुनः नये बिगबेन्ग व पुनर्स्रष्टि के लिये।