Sunday, June 19, 2011

पृथ्वी जैसे सौर बाह्य ग्रह की खोज :परग्रही जीवन श्रंखला भाग ५

परग्रही जीवन की खोज के लिये प्रस्तावित ड्रेक का समिकरण पूरी तरह से परिकल्पित(Hypothetical) है। यह समिकरण एक संभावना ही दर्शाता है जो कि वास्तविकता भी हो सकती है। दूसरी ओर सेटी प्रोजेक्ट अंतरिक्ष मे जीवन की खोज बेतरतीब रूप से कर रहा है। परग्रही जीवन की खोज का एक उपाय सौर मंडल के बाहर पृथ्वी जैसे ग्रहो की खोज कर उन पर सेटी का ध्यान केन्द्रित करना होगा।

हाल ही मे अंतरिक्ष मे जीवन की खोज को सौर मंडल के बाहर ग्रहो की खोज से मजबूती मीली है। सौरमंडल बाह्य ग्रहो की खोज के पिछे एक परेशानी यह है कि ये ग्रह स्वयं प्रकाश उत्सर्जित नही करते है जिससे उन्हे किसी दूरबीन से नही देखा जा सकता। ये ग्रह अपने मातृ तारे से हजारो गूणा धुंधले होते है।

पिता अपनी बेटी को अपने हाथो से अपनी परिक्रमा कराते हुये

पिता अपनी बेटी को अपने हाथो से अपनी परिक्रमा कराते हुये

ग्रह द्वारा तारे की परिक्रमा(गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव)

ग्रह द्वारा तारे की परिक्रमा(गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव)

इन ग्रहो की खोज के लिये खगोल शास्त्री तारे मे एक छोटी सी डगमगाहट खोजने का प्रयास करते है। ग्रह और तारा दोनो पिंड एक दूसरे को अपने गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित करते है। इसी गुरुत्वाकर्षण की रस्साकसी मे दोनो एक दूसरे की परिक्रमा करते है। एक दूसरे की परिक्रमा का केन्द्र बिन्दू दोनो ग्रहो के संयुक्त द्रव्यमान का केन्द्र(Center Of Mass) होता है| तारे का द्रव्यमान ग्रह की तुलना मे काफी ज्यादा होने के कारण यह द्रव्यमान का केन्द्र तारे के समित और ग्रह से दूर होता है फलस्वरूप ग्रह का परिक्रमा पथ बड़ा और तारे का परिक्रमा पथ छोटा होता है। (बायें चित्र मे देखे।)

यह कुछ उस तरह है जब एक पिता अपनी बेटी को अपने हाथो मे पकड़ घुमाता है तब बेटी घूमते हुये एक बड़ा वृत्त बनाती है वही पिता एक छोटा वृत्त बनाता है क्योंकि पिता का द्रव्यमान बेटी से ज्यादा है। इस गुरुत्वाकर्षण की रस्साकसी मे तारा जब हमसे थोड़ा सा दूर जाता है और पास आता है उसकी गति मे आये परिवर्तन को डाप्लर प्रभाव से मापा जा सकता है। इस परिवर्तन से हम तारे के आसपास ग्रह के उपस्थिती को जान सकते है।

ग्रहो को खोजने का दूसरा तरिका संक्रमण विधी है। यदि ग्रहो की कक्षाये पृथ्वी और उनके मातृ तारे के मध्य एक ही प्रतल मे पड़ती है तो इन ग्रहो द्वारा अपने तारे पर पढने वाले ग्रहण को पृथ्वी से महसूस किया जा सकता है। जब ये ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरते है, अपने मातृ तारे के प्रकाश को थोड़ा मंद कर देते है। वेधशालायें इस रोशनी मे आयी कमी को जान लेती है। एक अंतराल मे एक से ज्यादा बार आयी प्रकाश मे कमी से ग्रहो के परिक्रमा काल की गणना की जा सकती है; रोशनी मे आयी कमी की मात्रा से ग्रह का आकार जाना जा सकता है। जितना बड़ा ग्रह होगा वह अपने मातृ तारे का उतना प्रकाश मंद करता है। संक्रमण विधी इस तरह से ग्रहो की स्थिती(मातृ तारे के संदर्भ मे), परिक्रमा काल और उसका आकार बता देती है

५१ पेगासी और ५१ पेगासी बी(चित्रकार की कल्पना)

५१ पेगासी और ५१ पेगासी बी(चित्रकार की कल्पना)

पहला सौरबाह्य ग्रह १९९४ मे पेन्सलवेनिया विश्वविद्यालय के डा. अलेक्जेन्डर वोल्सजक्जान ने खोजा था; यह ग्रह एक मृत पल्सर की परिक्रमा कर रहा है। मातृ तारा एक सुपरनोवा विस्फोट का अवशेष है इसकारण इस ग्रह पर जीवन की कोई संभावना नही है। यह ग्रह एक जला हुआ, झुलसा मृत ग्रह है। अगले वर्ष जिनेवा के दो स्वीस खगोल विज्ञानी माइकल मेयर और डीडीर क्वेलोज ने ५१ पेगासी तारे की परिक्रमा करते हुये बृहस्पति के आकार के एक ग्रह की खोज की। इसके बाद तो सौर बाह्य ग्रहो की एक बाढ आ गयी है। पिछले १० वर्षो मे सौर बाह्य ग्रहो की संख्या मे एक तेजी आयी है। कोलोरेडो विश्वविद्यालय बोल्डर के भूगर्भ विज्ञानी ब्रुस जैकोस्की के अनुसार

“यह मानव इतिहास का विशेष समय है। हम परग्रही जीवन की संभावना खोज पाने की वास्तविक संभावना वाली पहली पीढी के सदस्य है।”

इनमे से कोई भी सौरमंडल हमारे सौरमंडल के जैसा नही है। सच्चाई यह है कि ये सभी सौर मंडल हमारे सौर मंडल से एकदम भिन्न है। एक समय खगोलविज्ञानी मानते थे कि हमारा सौरमंडल एक ब्रम्हांड के दूसरे सौरमंडलो के जैसा एक सामान्य सौरमंडल है, जिसमे वृताकार कक्षाओ और तीन पट्टो मे ग्रह अपने मातृ तारे की परिक्रमा करते होंगे। मातृ तारे के समीप चट्टानी अंदरूनी ग्रह, मध्य मे गैस के विशालकाय ग्रह और अंत मे बर्फीले धूमकेतु।

सौरमंडल(अंदरूनी चटटानी ग्रह, गैस महाकाय ग्रह और बर्फीले धूमकेतु)

सौरमंडल(अंदरूनी चटटानी ग्रह, गैस महाकाय ग्रह और बर्फीले धूमकेतु)

आश्चर्यजनक रूप से नये खोजे गये सौरमंडल इस साधारण नियम का पालन करते हुये पाये नही गये। सामान्यतः बृहस्पति जैसे गैस के महाकाय पिंड को मातृ तारे से दूर परिक्रमा करना चाहीये लेकिन अधिकतर अपने मातृ तारे के एकदम समीप पाये गये(बुध ग्रह की कक्षा से भी ज्यादा समीप) या कुछ ज्यादा ही बड़े दिर्घवृत्त की कक्षा मे। इन दोनो अवस्थामे गोल्डीलाक क्षेत्र मे पृथ्वी जैसे ग्रहो का होना संभव नही है। यदि बृहस्पति जैसा महाकाय ग्रह अपने मातृ तारे के समीप परिक्रमा कर रहा है इसका अर्थ है कि वह एक बड़ी दूरी से स्थानांतरित होकर धीरे धीरे एक स्पाइरल के जैसे अपने सौर मंडल के केन्द्र तक आ पहुंचा है। इस अवस्था मे यह ग्रह छोटे ग्रहो, पृथ्वी के जैसे ग्रहो की कक्षा को पार करते हुये आया होगा और ये छोटे ग्रह इस महाकाय ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से सूदूर अंतरिक्ष मे फेंके गये गये होंगे। यदि बृहस्पति जैसा महाकाय ग्रह दिर्घवृताकार कक्षा मे परिक्रमा करता है तब भी वह गोल्डीलाक्स क्षेत्र से गूजरेगा और इस अवस्था मे भी इस क्षेत्र के छोटे ग्रह इस महाकाय ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से सूदूर अंतरिक्ष मे फेंक दिये जायेंगे।

ग्रहो के आविष्कारक जो पृथ्वी जैसे ग्रहो की खोज मे लगे है, के लिये यह एक निराशाजनक है लेकिन प्राप्त जानकारीयां अनपेक्षित भी नही थी। हमारे उपकरण अभी तक बृहस्पति के जैसे महाकाय और तेज गति के ग्रहो के मातृ तारे पर प्रभाव को ही माप पाते है। जिससे यह कोई आश्चर्य नही था कि हमारी दूरबीने तेज गति से चलने वाले दानवाकार ग्रहो को ही खोज पाये है। यदि अंतरिक्ष मे हमारे सौर मंडल का कोई जुड़वा है तो भी हमारे उपकरण उन्हे देख पाने मे अक्षम है।

टेरेस्ट्रीयल प्लेनेट फाईंडर - ईन्टरफेरोमीटर

टेरेस्ट्रीयल प्लेनेट फाईंडर - ईन्टरफेरोमीटर

इस स्थिती मे कोरोट, केप्लर और टेरेस्ट्रीयल प्लेनेट फाईण्डर उपग्रहो के प्रक्षेपण के बाद बदलाव की उम्मीद है। यह तीनो उपग्रह अंतरिक्ष मे सैकड़ो पृथ्वी जैसे ग्रहो की खोज मे सक्षम है। कोरोट और केप्लर पृथ्वी जैसे ग्रहो की अपने मातृ तारे के सामने आने से मातृ तारे की प्रदिप्ती मे आयी कमी(संक्रमण विधी) को मापने मे सक्षम है। पृथ्वी जैसे ग्रह को देखा नही जा सकेगा लेकिन इनके कारण आयी मातृ तारे की रोशनी मे आये परिवर्तन से इनकी उपस्थिती पता की जा सकती है।

फ्रेंच उपग्रह कोरोट को दिसंबर २००६ मे प्रक्षेपित किया गया और यह एक मील का पत्थर है क्योंकि सौरबाह्य ग्रहो की खोज के लिये भेजा गया यह पहला अंतरिक्ष उपग्रह है। इस उपग्रह की मदद से वैज्ञानिको को १० से ४० पृथ्वी जैसे ग्रहो की खोज की आशा है। यदि पृथ्वी जैसे सौरबाह्य ग्रह है तो वे गैस महाकाय ना होकर चट्टानी ग्रह होंगे और पृथ्वी से कुछ गुणा ही बड़े होंगे। कोरोट शायद बृहस्पति जैसे ग्रहो की संख्या मे वृद्धी भी करेगा जो कि पहले ही खोजे जा चूके है। कोरोट हर आकार और प्रकार के सौर बाह्य ग्रहो को खोज पायेगा जो हम पृथ्वी की दूरबीनो से नही कर पाते है। वैज्ञानिक इस उपग्रह से १२,००० तारो का निरिक्षण करना चाहते है।

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला को नासा ने मार्च २००९ मे प्रक्षेपित किया था। यह अंतरिक्ष मे सैंकड़ो पृथ्वी के जैसे ग्रहो की खोज मे सक्षम है। यह १००,००० तारो की प्रदिप्ती का ग्रहो की तारो के सामने की गतिविधी के प्रभाव के लिये मापन करेगी। अपने कार्यकाल के ४ वर्षो मे केप्लर १९५० प्रकाशवर्ष दूर तक के हजारो तारो का निरिक्षण करेगी। कक्षा मे अपने प्रथम वर्ष मे वैजानिक इस उपग्रह से निम्नलिखित खोज की आशा रखते है:

  • पृथ्वी के आकार के ५० ग्रह
  • पृथ्वी से ३० प्रतिशत बड़े १८५ ग्रह और
  • पृथ्वी से २.२ गुणा बड़े ६४० ग्रह
केप्लर १० बी चित्रकार की कल्पना मे

केप्लर १० बी चित्रकार की कल्पना मे

पृथ्वी के जैसे पहले ग्रह की खोज का सेहरा केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला के माथे ही बंधा जब उसने २०१० के अंत मे केप्लर १० तारे की परिक्रमा करते चट्टानी ग्रह केप्लर १०बी की खोज की। केप्लर१०बी ग्रह पृथ्वी के आकार का १.४ गुणा है , जो उसे अब तक का खोजा गया सबसे छोटा ग्रह(सौर मंडल के बाहर) बनाता है। केप्लर १०बी का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से कही ज्यादा अर्थात ४.६ गुणा है। यह अपने तारे के काफी समीप परिक्रमा करता है। तारे की सतह से ३० लाख किमी दूरी पर और इस परिक्रमा मे पृथ्वी के एक दिन से कम समय लेता है। तारे के काफी समीप होने के कारण इस ग्रह का तापमान हजारो डिग्री होना चाहिये।इस पर जिवन की संभावना नगण्य है लेकिन यह अब तक का सबसे कम द्रव्यमान का, सबसे छोटा ग्रह है जो सूर्य के जैसे तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह एक बड़ी और महत्वपूर्ण खोज है; यह केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला की संभावनाओ और क्षमताओ को दर्शाता है।

केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला ने हाल ही मे छः ग्रहो वाले एक सौर मंडल की भी खोज की है।

टेरेस्ट्रीयल प्लेनेट फाईण्डर जिसे 2014 मे प्रक्षेपित किया जाना था, केपलर अंतरिक्ष वेधशाला से ज्यादा संभावना लिये है। यह उपग्रह ४५ प्रकाशवर्ष तक के सौ तारो का ज्यादा सटिकता से निरिक्षण करेगा। इस उपग्रह मे ग्रहो की खोज के लिये दो उपकरण होंगे। पहला उपकरण क्रोनोग्राफ है जो एक विशेष दूरबीन है जिससे किसी ग्रह द्वारा उसके मातृ तारे के सामने आने से उसकी प्रदिप्ती की १०००वे हिस्से तक की कमी को महसूस कर सकता है। यह दूरबीन हब्बल दूरबीन से तीन से चार गुणा बड़ी और १० गुणा सटिक होगी। दूसरा उपकरण एक इन्टरफ़ेरोमीटर है जो किसी ग्रह के कारण उसके मातृ तारे की प्रकाश तरंगो मे आये १० लाखवे हिस्से तक के परिवर्तन को महसूस कर पायेगा।

युरोपियन अंतरिक्ष एजेन्सी एक और ग्रह शोधन उपग्रह “डार्वीन” की योजना बना रही है जिसे २०१५ या उसके बाद भेजा जायेगा। इसमे तीन अंतरिक्ष दूरबीन होंगी जिनका व्यास तीन मीटर होगा। यह तीनो एक साथ रहेंगी और एक बड़े इन्टरफ़ेरोमीटर के जैसे कार्य करेंगी। इसका लक्ष्य भी पृथ्वी जैसे ग्रहो की खोज होगा।

अंतरिक्ष मे पृथ्वी के जैसे सौ ग्रहो की खोज सेटी पर फिर से ध्यान देने के लिये काफी होंगे। आकाश मे अनियमित रूप से तारो से बुद्धिमान जीवन के संकेतो की खोज की तुलना मे कुछ चूने हुये तारो पर ध्यान देना बेहतर होगा।