Saturday, June 18, 2011

प्रति पदार्थ(Anti matter):ब्रह्माण्ड की संरचना भाग ९

प्रकृति(१) ने इस ब्रह्माण्ड मे हर वस्तु युग्म मे बनायी है। हर किसी का विपरीत इस प्रकृति मे मौजूद है। भौतिकी जो कि सारे ज्ञान विज्ञान का मूल है, इस धारणा को प्रमाणिक करती है। भौतिकी की नयी खोजों ने सूक्ष्मतम स्तर पर हर कण का प्रतिकण ढूंढ निकाला है। जब साधारण पदार्थ का कण प्रतिपदार्थ के कण से टकराता है दोनो कण नष्ट होकर ऊर्जा मे परिवर्तित हो जाते है।

प्रतिपदार्थ की खोज ने शताब्दीयों पुरानी धारणा जो पदार्थ और ऊर्जा को भिन्न भिन्न मानती थी की चूलें हिला दी। अब हम जानते है कि पदार्थ और ऊर्जा दोनो एक ही है। ऊर्जा विखंडित होकर पदार्थ और प्रतिपदार्थ का निर्माण करती है। इसे सरल गणितिय रूप मे निम्न तरिके से लिखा जा सकता है

  1. ऊर्जा = पदार्थ + प्रतिपदार्थ
  2. E=mc2 (E= ऊर्जा, m = पदार्थ का द्रव्यमान, c =प्रकाशगति)

प्रतिपदार्थ का संक्षिप्त इतिहास

१९३० मे पाल डीरेक ने इलेक्ट्रान तथा उसके व्यवहार की जो व्याख्या की थी,वह क्वांटम भौतिकी तथा विशेष सापेक्षतावाद के सिद्धांत दोनो के अनुरूप थी। इस व्याख्या की सबसे विशेषता यह थी कि यह इलेक्ट्रान के विपरीत कण के अस्तित्व की भविष्यवाणी करती थी। इलेक्ट्रान के इस विपरीत कण का द्रव्यमान इलेक्ट्रान के तुल्य था लेकिन विद्युत आवेश तथा चुंबकिय गुरुत्व विपरीत था।

१९३२ मे वैज्ञानिक कार्ल एण्डरसन क्लाउड चेम्बर मे ब्रम्हाण्डिय विकिरण(Cosmic Rays) द्वारा बनाये गये पथ का अध्यन कर रहे थे। उन्होने देखा कि एक कण ने इलेक्ट्रान के जैसे ही पथ बनाया था लेकिन चुंबकिय क्षेत्र मे उसके पथ का झुकाव उसके धनात्मक विद्युत आवेश को दर्शाता था। कार्ल ने इस कण का नाम पाजीट्रान रखा। अब हम जानते है कि कार्ल द्वारा खोजा गया यह पाजीट्रान, पाल डीरेक द्वारा पूर्वानुमानित प्रति-इलेक्ट्रान था।

१९५० मे लारेंस विकिरण प्रयोगशाला मे बेवाट्रान त्वरक(Bevatron accelerator) ने प्रति-प्रोटान खोज निकाला, जो कि द्रव्यमान तथा स्पिन मे प्रोट्रान के जैसा लेकिन ऋणात्मक विद्युत आवेश तथा प्रोटान के विपरित चुंबकिय गुरुत्व वाला था। प्रतिप्रोटान के निर्माण के लिए कण त्वरक(Particle Acclerator) मे प्रोटान को अत्याधिक ऊर्जा पर दूसरे प्रोटानो से टकराया जाता है। इस क्रिया मे कभी कभी प्रारंभिक दो प्रोटानो के अतिरिक्त प्रोटान-प्रति प्रोटान युग्म का निर्माण होता है।(२) इस परिणाम ने इस विश्वास को मजबूती दी कि हर कण का एक प्रति कण होता है।

एक कण तथा उसका प्रतिकण टकराने पर नष्ट होकर ऊर्जा मे परिवर्तित हो जाते है। यह ऊर्जा आइंस्टाइन के समीकरण E=mc2 से मापी जा सकती है। उदाहरण के लिए एक इलेक्ट्रान तथा पाजीट्रान(प्रति इलेक्ट्रान) के टकराने से ५११ इलेक्ट्रान वोल्ट की दो गामा किरणे उत्पन्न होती है। ये दोनो गामा किरणे दो विपरित दिशाओ मे प्रवाहित होती है क्योंकि ऊर्जा तथा संवेग का संरक्षण आवश्यक है। जब एक प्रोटान तथा प्रतिप्रोटान टकराते है तब कुछ अन्य कणो का निर्माण होता है लेकिन कुल उत्पन्न ऊर्जा तथा नये कणो का द्रव्यमान का योग प्रोटान तथा प्रतिप्रोटान के द्रव्यमान के योग(२* ९३८MeV) के तुल्य होता है।

प्रतिपदार्थ के निर्माण मे लगे वैज्ञानिको ने प्रतिहायड्रोजन का निर्माण भी कर लिया है। प्रतिहायड्रोजन का निर्माण अन्य तत्वो की तुलना मे आसान है क्योंकि इसके लिए प्रति प्रोटान तथा प्रतिइलेक्ट्रान ही चाहीये होता है। प्रतिपदार्थ के निर्माण से बड़ी समस्या उसके संग्रहण की है? प्रतिपदार्थ साधारण पदार्थ से टकराकर ऊर्जा मे बदल जाता है तो उसे संग्रह कैसे करे?

प्रतिपदार्थ का अस्तित्व क्यों है ?

यह विचित्र लगता है कि प्रकृति ने हर कण का प्रतिकण बनाया है। प्रकृति के किसी भी कार्य के पिछे एक कारण होता है, प्रकृति द्बारा निर्मित कोई भी वस्तु व्यर्थ नही होती है। लेकिन अब हम प्रतिपदार्थ(Antimatter)के बारे मे जानते है जो कि व्यर्थ और अनावश्यक लगता है ? यदि प्रतिपदार्थ का आस्तित्व है तो क्या प्रतिब्रह्माण्ड का आस्तित्व भी है ?

इस प्रश्न के उत्तर के लीए हमे प्रतिपदार्थ की खोज की प्रक्रिया को विस्तार से समझना होगा। क्वांटम भौतिकी के अणुसार इलेक्ट्रान के जैसे कणो की व्याख्या किसी बिंदु के जैसे कण की बजाए श्रोडींगर के तरंग से की जा सकती है। यह तरंग इस कण की उस बिंदू पर होने की संभावना व्यक्त करती है। यह थोड़ा अजीब लगता है लेकिन इस सूक्ष्म स्तर पर प्रकृति विचित्र व्यवहार करती है। इस स्तर पर किसी भी कण की एक निश्चित अवस्था ज्ञात करना असंभव है, हम उस कण के किसी बिंदू पर होने की संभावना ही ज्ञात कर सकते है। यह संभावना एक तरंग के रूप मे व्यक्त की जाती है अर्थात वह कण उस तरंग द्वारा दर्शाये गये पथ मे कहीं भी हो सकता है।

पाल डीरेक ने श्रोडींगर के तरंग सिद्धांत मे एक दोष खोज निकाला था। श्रोडींगर का तरंग सिद्धांत कम ऊर्जा पर इलेक्ट्रान के व्यवहार की व्याख्या करता था लेकिन उच्च ऊर्जा पर यह इलेक्ट्रान के व्यवहार की व्याख्या नही कर पाता था। उच्च ऊर्जा पर कण आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत का पालन करते थे। पाल डीरेक ने श्रोडींगर के समीकरण मे परिवर्तन कर उसे आइंन्सटाइन के सापेक्षतावाद के समीकरण से जोड़ दिया अर्थात दोनो सिद्धांत का एकीकरण कर दिया। पूरा विश्व चमत्कृत रह गया। इलेक्ट्रान अब श्रोडींगर के तरंग सिद्धांत के साथ सापेक्षतावाद के सिद्धांत दोनो का पालन करता था। पाल डीरेक ने यह कार्य शुद्ध गणितिय रूप से किया था, इसका प्रायोगिक सत्यापन शेष था।

इलेक्ट्रान के लिए नया समीकरण बनाते समय डीरेक ने पाया की आइंस्टाइन का प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 पूर्णतः सत्य नही है। सही समीकरण है E=±mc2(किसी भी संख्या का वर्गमूल करने पर परिणाम धनात्मक या ऋणात्मक दोनो होता है।)

भौतिक विज्ञानी ऋणात्मक ऊर्जा से नफरत करते है। भौतिकी का एक स्वयं-सिद्ध सिद्धांत(Axiom) है कि कोई भी पिंड हमेशा निम्न ऊर्जा की अवस्था प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।चूंकि पदार्थ हमेशा निम्न ऊर्जा अवस्था मे प्राप्त करने का प्रयास करता है, ऋणात्मक ऊर्जा का सिद्धांत विनाशकारी था। इसका अर्थ था कि सारे इलेक्ट्रान अनंत ऋणात्मक ऊर्जा की अवस्था मे चले जायेंगे, यह डीरेक के सिद्धांत के साथ ब्रह्मांड को अस्थायी बनाता था।

डीरेक सागर" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/9/9b/Dirac_sea.svg/220px-Dirac_sea.svg.png" alt="डीरेक सागर" width="220" height="117">

डीरेक सागर

डीरेक ने एक नया सिद्धांतडीरेक सागर(Dirac Sea) विकसीत किया। इसके अनुसार सभी ऋणात्मक ऊर्जा अवस्थायें भरी हुयी है, इसकारण इलेक्ट्रान ऋणात्मक अवस्था मे नही जा सकता। यह ब्रह्माण्ड को स्थायी बनाता था। यदि किसी ऋणात्मक ऊर्जा अवस्था के इलेक्ट्रान से गामा किरण टकरायेगी वह उसे धनात्मक ऊर्जा अवस्था मे पहुंचा देगी। इससे हमे यह लगेगा कि ’गामा किरण’ ऊर्जा से एक इलेक्ट्रान तथा ’डीरेक सागर मे एक छेद’ के युग्म मे परिवर्तित हो गयी है।

गामा किरण(ऊर्जा) = इलेक्ट्रान + ’डीरेक सागर मे एक छेद’ (प्रति इलेक्ट्रान)

डीरेक सागर का यह छेद निर्वात मे एक बुलबुले के रूप मे था जिसका आवेश धनात्मक था तथा द्रव्यमान इलेक्ट्रान के बराबर था। दूसरे शब्दो मे यह प्रति-इलेक्ट्रान के जैसा था। इस चित्र मे प्रतिपदार्थ डीरेक सागर के बुलबुलो के रूप मे था।

डीरेक के प्रतिइलेक्ट्रान के पूर्वानुमान के कुछ वर्षो पश्चात कार्ल एण्डरसन ने प्रतिइलेक्ट्रान की खोज कर ली। इस खोज के साथ १९३३ मे डीरेक को नोबेल पुरुष्कार मिला

सरल शब्दो मे कहा जाये तो प्रतिपदार्थ का अस्तित्व का कारण यह है कि डीरेक के समीकरण के दो हल है, एक साधारण पदार्थ के लिए दूसरा प्रतिपदार्थ के लिए। यह हल आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत से निकला हुआ हल है। डीरेक का समीकरण लंदन की वेस्टमीनीस्टर एबी मे पत्थर पर उत्किर्ण किया गया है, जो कि न्युटन की कब्र से ज्यादा दूर नही है। आज तक किसी अन्य समीकरण को ऐसा सम्मान नही दिया गया है।
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(१).आस्तिक इसे भगवान, ईश्वर, अल्लाह या गॉड का नाम देते है।

(२)प्रतिपदार्थ का निर्माण रेडीयोसक्रिय पदार्थो के क्षय मे भी होता है। जब १४C का क्षय होता है, एक न्युट्रान का क्षय होकर एक प्रोटान, एक इलेक्ट्रान तथा एक इलेक्ट्रान-प्रतिन्युट्रीनो का निर्माण होता है। जब १९N का क्षय होता है, एक प्रोटान का क्षय होकर एक न्युट्रान, एक पाजीट्रान तथा एक इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो का निर्माण होता है।

१४C –>१४N + e--e

१९Ne –>१९F + e+ + νe

न्युट्रीनो तथा इलेक्ट्रान लेप्टान कण समूह मे आते है जबकि प्रतिन्युट्रीनो, पाजीट्रान प्रतिलेप्टान समूह मे आते है। लेप्टान बिंदु नुमा कण है जो कि विद्युत-चुंबकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा गुरुत्वाकर्षण बल से प्रतिक्रिया करते है लेकिन मजबूत नाभिकिय बल से प्रतिक्रिया नही करते है। एक प्रतिलेप्टान प्रतिकण है। हर क्रिया मे एक लेप्टान तथा प्रतिलेप्टान बनते है। यह प्रतिक्रियायें भौतिकी की मूल क्रिया है कि हर निर्मित लेप्टान के लिए एक प्रतिलेप्टान होना चाहीये।