Saturday, June 18, 2011

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य - २: आर्यभट की खोज

पहले मनुष्य यही मानते थे कि पृथ्वी स्थिर है, केन्द्र में है तथा सूर्य सहित अन्तरिक्ष के सभी नक्षत्र उसकी परिक्रमा करते हैं।

ईसा की पांचवीं शती में विश्व में ब्रह्माण्ड का एक रहस्य सर्वप्रथम भारत में खोजा गया। उस समय बिना किसी दूरदर्शी की सहायता के आर्यभट ने सौर मण्डल का उस काल के लिए एक अत्यन्त अविश्वसनीय किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रहस्य खोला था जिसे स्वीकार करने में मानव जाति को एक हजार वर्ष और लगे – कि सौरमण्डल में सूर्य स्थिर है तथा पृथ्वी अपने अक्ष पर प्रचक्रण करती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है; कि ग्रहण छाया पड़ने के कारण पड़ते हैं न कि राक्षसों के कारण।

इसे सोलहवीं शती में स्वतन्त्र रूप से कोपरनिकस ने पाश्चात्य जगत में स्थापित किया। बारहवीं शती में भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के तीनों नियम खोज निकाले थे। इसके साथ भारत में की गई अन्य वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी खोजों तथा आविष्कारों से यह प्रमाणित होता है कि यह आध्यात्मिक भारत बारहवीं शती तक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आर्थिक समृद्धि में विश्व में सर्वाग्रणी था। गति के नियमों को सत्रहवीं शती में स्वतन्त्र रूप से न्यूटन ने वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया। और देखा जाए तो इन वैज्ञानिक तथ्यों की स्वीकृति के बाद ही पाश्चात्य संसार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का ‘बिग बैंग’ (महान विस्फोट) हुआ।

दूरदर्शी
सत्रहवीं शती के दूरदर्शी के आविष्कार तक, पाश्चात्य जगत समस्त ब्रह्माण्ड को सौरमण्डल ही मानता था, 1609 में गालिलेओ ने छोटे से दूरदर्शी की सहायता से बृहस्पति ग्रह के चार चान्द देखे तो मानो दूरदर्शी में ही चार चान्द लग गये। और तब से विशाल से विशालतर दूरदर्शी बने जिनसे हम अब लगभग दस अरब प्रकाश–वर्ष (95 लाख करोड़ अरब किमी)की दूरी तक के नक्षत्रों, मन्दाकिनियों तथा नीहारिकाओं को देख सकते हैं। फिर हजारों मीटरों तक के क्षेत्र में फैले रेडियो दूरदर्शी बनाए गये और अब तो भारतीय मूल के नोबैल पुरस्कृत खगोलज्ञ एस. चन्द्रशेखर के सम्मान में निर्मित उपग्रह स्थित ‘चन्द्र एक्स–किरण’ वेधशाला है जो पृथ्वी के वायुमण्डल के पार से ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खोल रही है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों तथा शून्य या अल्पतम द्रव्यमान वाले वाले न्यूiट्रनो कणों पर खोज हो रही है।

मजे की बात है कि दूरदर्शी या अन्य उपकरण या वैज्ञानिक कुछ रहस्यों को खोलते हैं तो कुछ नवीन रहस्यों को उत्पन्न भी करते हैं। जब ब्रह्माण्ड में पिण्ड दिखे तो प्रश्न आया कि ये अतिविशाल जलते हुए पिण्डों का निर्माण किस तरह हुआ, मन्दाकिनियों, मन्दाकिनी–गुच्छों, फिर मन्दाकिनी–मण्डलों और फिर मन्दाकिनी–चादरों का निर्माण कैसे होता है? ब्रह्माण्ड का उद्भव तथा विकास कैसे हुआ?