Saturday, June 18, 2011

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 8: मन्दाकिनियों का विकास

सृष्टि की रचना में कणों के निर्माण पश्चात पहले तो हाइड्रोजन तथा हीलियम के विशाल बादल बनें। शनै: शनै: जब ये विशाल बादल इतने बड़े हो गये कि वे अपने ही गुरुत्वाकर्षण से दबकर संकुचित हो गये तब तारे तथा मन्दाकिनियां बनी। पहली मन्दाकिनियों तथा तारों को बनने में लगभग 100 करोड़ वर्ष लगे उस समय ब्रह्माण्ड का विस्तार आज के विस्तार का पंचमांश ही था।

उपग्रह स्थित हबल टेलिस्कोप से लगभग 170 करोड़ वर्ष आयु की (अथार्त आज से 1200 करोड़ वर्ष पूर्व की स्थिति में) अण्डाकार मन्दाकिनी देखने में जो आनन्द आता है वह सन 1609 में गालिलेओ द्वारा दूरदर्शी से देखे गए बृहस्पति के चार चान्दों को देखने वाले आनन्द का ही संवधिर्त रूप है। इसके बाद कुण्डलाकार मन्दाकिनियां आदि बनी। ब्रह्माण्ड की 1370 करोड़ वर्ष की आयु का आकलन सबसे ताजा है और अधिक परिशुद्ध माना जाता है, पहले इसकी याथार्थिकता पर सन्देह बना रहता था, क्योंकि यह हबल–नियतांक के मान पर निर्भर करता है। जिसका निधार्रण सन्देहास्पद ही रहता था। अभिरक्त विस्थापन में मन्दाकिनियों के भागते–वेग के अतिरिक्त अन्य वेग भी रहते हैं जिन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव भी होता है।अतएव किसी भी मन्दाकिनी का अभिरक्त विस्थापन का माप सुनिश्चित न होकर एक फैलाव लिये रहता है।

अवरक्त विस्थापन (इन्फ्रारैड शिफ्ट)
एक और घटना अभिरक्त विस्थापन के आकलन पर सन्देह डालती है। क्वेसार सम्भवतया प्राचीनतम शिशु मन्दाकिनियों से संबiन्धत हैं जो अपेक्षाकृत अधिक दीप्तिमान होते हैं तथा हम से सैकड़ों करोड़ों प्रकाशवर्षों की दूरी पर स्थित हैं। किन्तु कभी कभी वे किसी अन्य सामान्य मन्दाकिनी के निकट पड़ोस में दिखते हैं और तब उस क्वेसार के तथा उस मन्दाकिनी के अभिरक्त विस्थापनों में हमें महत्वपूर्ण अन्तर मिलता है। ऐसी घटनाएं और भी शोध तथा खोज की मांग करती हैं तथा तारों, क्वेसारों, मन्दाकिनियों के निर्माण की प्रक्रियाओं पर मन्थन की मांग करती हैं। अतएव मूल प्रसारी ब्रह्माण्ड सिद्धान्त का इस तरह की अपवाद–सी घटनाओं को समझाने के लिये परिवर्धन किया जा रहा है। इसलिये उसके भिन्न रूप सामने आ रहे हैं। इनमें से कोई ब्रह्माण्ड को खुला मानता है तो कोई बन्द और कोई समतल।

खुले ब्रह्माण्ड का अर्थ है ब्रह्माण्ड का अनन्त काल तक प्रसार और इस तरह मृत्यू। बन्द ब्रह्माण्ड का अर्थ है एक काल पश्चात ब्रह्माण्ड के प्रसार का रुकना और फिर संकुचन होना।तथा समतल का अर्थ है कि ब्रह्माण्ड का विस्तार एक काल के पश्चात रुकना और फिर स्थिर होना। दृष्टव्य है कि भारतीय ऋषियों ने ब्रह्माण्ड को चाक्रिक माना है अथार्त उसका साधारण अर्थों में ‘जन्म’ (यद्यपि वह मूलरूप में अजन्मा ही है) होता है और विलय होता है और यह चक्र अनन्त है।

ब्रह्माण्ड में अज्ञात–पदार्थ की मात्रा तथा घनत्व–विचलनों के विषय में वैज्ञानिकों की मान्यताओं में भी इनमें आपस में भेद है। कुछ वैज्ञानिक हैं जो हबल नियतांक के न मापे जा सकने के कारण तथा अन्य अपवाद–सी घटनाओं के कारण प्रसारी–ब्रह्माण्ड सिद्धान्त को खारिज करते रहे हैं। डा. आर्प तो अभिरक्त विस्थापन की व्याख्या पर ही घोर सन्देह करते हैं। किसी भी सिद्धान्त को परखते रहना, उसमें आवश्यकतानुसार समंजन करते रहना जीवन्त–विज्ञान का ही उत्तम गुण है। फैयड हायल के शिष्य विश्व प्रसिद्ध खगोलज्ञ जयन्त नालीर्कर भी सावधान रहने की चेतावनी देते रहते हैं। यही घटनाएं नए शोध या नई खोजों की प्रेरणा देती हैं। किन्तु डा. आर्प आदि का ऐसा कठोर विरोध थोड़ा अतार्किक–सा लगता है।