Sunday, June 19, 2011

हब्बल दूरबीन के २१ वर्ष : आर्प २७३ आकाशगंगा

आर्प २७३ : एक दूसरे से टकराती युजीसी १८१० तथा युजीसी १८१३ आकाशगंगाएँ

आर्प २७३ : एक दूसरे से टकराती युजीसी १८१० तथा युजीसी १८१३ आकाशगंगाएँ

२४ अप्रैल १९०० को डीस्कवरी स्पेश शटल ने हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला को पृथ्वी की कक्षा तथा इतिहास मे स्थापित किया था। हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला की वर्षगांठ पर पेश है हब्बल द्वारा लिया गया आर्प २७३ आकाशगंगाओ का यह खूबसूरत चित्र !

वर्षो पहले खगोलविज्ञानी हाल्टन आर्प ने विचित्र आकार की कई आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर सूचीबद्ध किया था। अब हम जानते है कि ये आकाशगंगाये एक दूसरे पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव डाल रही है और कुछ आकाशगंगाये टकरा रही है। इस चित्र मे दो आकाशगंगाये है युजीसी १८१०(उपर) तथा युजीसी १८१३(निचे)। ये दोनो आकाशगंगाये एक दूसरे से टकरा रही है जिन्हे संयुंक्त रूप से आर्प २७३ कहा जाता है।

अधिकतर पेंचदार आकाशगंगाये सममिती मे और लगभग वृत्ताकार होती है लेकिन युजीसी १८१० अलग है और विचित्र भी। इसकी एक बांह मोटी है और अन्य बांहो की तुलना मे दूर है। जिससे एस आकाशगंगा का केन्द्रक आकाशगंगा के ज्यामितिय केन्द्र के पास नही है। इस आकाशगंगा के उपर स्थित निले क्षेत्र नये तारो की जन्मस्थली है और तिव्रता से तारो का निर्माण कर रहे है। ये नवतारे गर्म, महाकाय निले तारे है जिनका जीवनकाल कम होता है। युजीसी १८१३ का आकार भी विकृत हो चूका है, इसकी बांहो मे एक मरोड़ है और गैस का प्रवाह चारो ओर हो रहा हओ।

कुछ करोड़ वर्ष पहले ये आकाशगंगाये एक दूसरे के समीप आ गयी होंगी। इनके गुरुत्वाकर्षण ने एक दूसरे को विकृत कर दिया है, जिससे इनकी बांहे फैल गयी है। इन आकाशगंगाओं की गैस एक दूसरे मे मिल रही है। इन आकाशगंगाओं के केन्द्रक भी असामान्य है, छोटी आकाशगंगा का केन्द्र अवरक्त किरणो मे ज्यादा चमकदार है जो दर्शाता है कि इस क्षेत्र मे तारो का निर्माण धूल के बादलो के पिछे दब गया है। बड़ी आकाशगंगा के केन्द्र मे एक श्याम वीवर(Black Hole) है जिसके चारो ओर गैस प्रवाहित हो रही है जो गर्म होकर प्रकाश उत्सर्जित कर रही है।

दोनो आकाशगंगा विकृत हो चुकी है लेकिन उनका पेंचदार तश्तरी नुमा आकार अभी तक है जिससे यह प्रतित होता है कि ये अपने ब्रह्मांडीय नृत्य के प्रथम चरण मे है। एक दोनो भविष्य मे एक दूसरे का चक्कर लगाते हुये , एक दूसरे के पास आते जायेंगे। कुछ करोड़ो वर्ष बाद ये दोनो मिलकर एक बड़ी आकाशगंगा बनायेंगे। ब्रह्माण्ड मे यह एक सामान्य प्रक्रिया है। हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी ऐसे ही आकाशगंगाओ के मिलने से बनी है। भविष्य मे हमारी आकाशगंगा पड़ोस की आकाशगंगा एन्ड्रोमीडा से टकराएगी और एक महाकाय आकाशगंगा बनाएगी लेकिन कुछ अरबो वर्ष बाद !

इन दोनो आकाशगंगाओ का जो भी भविष्य हो, हम ३००० लाख प्रकाशवर्ष दूर इन खूबसूरत आकाशगंगाओ को देख रहे है। हमे इसके लिए हब्बल वेधशाला का आभारी होना चाहिये। हब्बल अंतरिक्ष वेधशाला ने पिछले २१ वर्षो मे विज्ञान को महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसमे अंतरिक्ष विज्ञान को जन सामान्य मे लोकप्रिय बनाना भी शामिल है। आज पूरे विश्व मे यह एक ऐसी वेधशाला है जिसे लोग उसके नाम से जानते है।