Saturday, June 18, 2011

मूलभूत बल : ब्रह्माण्ड की संरचना भाग २

भौतिकी मे विभिन्न कणो द्वारा एक दूसरे कणो पर डाला गया प्रभाव मूलभूत बल कहलाता है। यह प्रभाव दूसरे किसी प्रभाव के द्वारा प्रेरीत नही होना चाहीये। अब तक चार ज्ञात मूलभूत बल है, विद्युत-चुंबकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल, मजबूत नाभिकिय बल तथा गुरुत्वाकर्षण

क्वांटम भौतिकी के अनुसार पदार्थ के कणो के मध्य विभिन्न बल पूर्णांक स्पिन(०,१,२) वाले कणो के द्वारा वहन किये जाते है। यह कुछ इस प्रकार है कि जब कोई पदार्थ-कण (इलेक्ट्रान या क्वार्क) किसी बल-वाहक कण(Force Carrying Particle) का उत्सर्जन करता है, इस उत्सर्जन से उस पदार्थ-कण(इलेक्ट्रान या क्वार्क) की गति मे परिवर्तन आता है। बल-वाहक कण किसी पदार्थ कण से टकराकर अवशोषित कर लिया जाता है, इस टकराव से पदार्थ-कण की गति मे परिवर्तन आता है, जैसे इन दोनो पदार्थ कणो के मध्य किसी बल ने अपना प्रभाव दिखाया हो। बल वाहक कण पाली के व्यतिरेक सिद्धांत(Exclusion Principal) का पालन नही करते है अर्थात दो पदार्थ-कणो के मध्य कितने ही बलवाहक कणो का आदान प्रदान हो सकता है, जोकि मजबूत बलो के लिए आवश्यक है। लेकिन अधिक द्रव्यमान वाले बलवाहक कणो का ज्यादा दूरी के पदार्थ कणो के मध्य आदान प्रदान कठिन है, इस कारण इन बलो का प्रभाव कम दूरी पर ही होता है। दूसरी ओर यदि बलवाहक कण का द्रव्यमान न हो तब बल का प्रभाव ज्यादा दूरी पर होगा। पदार्थ कणो के मध्य आदान प्रदान होने वाले इन बल वाहक कणो को आभासी कण(Virtual Particle) कहा जाता है क्योंकि उन्हे वास्तविक कणो की तरह कण जांचको(particle detector) द्वारा पकड़ा नही जा सकता है। हम जानते है कि बल-वाहक कणो का आस्तित्व है क्योंकि इनका मापन करने योग्य प्रभाव होता है तथा वे पदार्थ कणो के मध्य बलो को उत्पन्न करते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों मे ०,१,२ स्पिन के कण वास्तविक कणो की तरह पकड़ा जा सकता है। इन परिस्थितियो मे ये कण तरंगो के जैसे व्यव्हार करते है जैसे प्रकाश किरणे या गुरुत्वाकर्षण की तरंगे। कभी कभी ये कण पदार्थ कणो के मध्य बल-वाहक आभासी(virtual) कणो के आदानप्रदान के दौरान भी उत्सर्जित होते है। उदाहरण के लिए दो इलेक्ट्रान के मध्य विद्युत बल उनके मध्य आभासी फोटानो के आदान प्रदान के कारण होता है जिन्हे देखा नही जा सकता है। लेकिन कोई इलेक्ट्रान किसी दूसरे इलेक्ट्रान के पास से गुजरने पर वास्तविक फोटान को उत्सर्जित कर सकता है जिसे हम प्रकाश किरण के रूप मे देख सकते है।

बलवाहक कणो को उनकी बलक्षमता तथा उनसे जूड़े पदार्थ कणो के आधार पर चार वर्गो मे बांटा जा सकता है। ध्यान दे कि यह वर्गीकरण मानव द्वारा है क्योंकि हम किसी भी सिद्धांत को टुकड़ो मे ज्यादा अच्छे से समझते है। अधिकतर भौतिक वैज्ञानिक इन टुकड़ो को जोड़ कर एक एकीकृत सिद्धांत बनाने के लिए कार्य कर रहे है, जिसमे इन चारो बलो को एक ही बल की विभिन्न अवस्थाओ के रूप मे समझाया जा सके। कुछ वैज्ञानिको के अनुसार यह वर्तमान भौतिक विज्ञानियो का प्रमुख लक्ष्य है। वैज्ञानिको ने इन चार बलो मे से तीन के एकीकरण का सिद्धांत विकसीत कर लिया है लेकिन चौथा बल गुरुत्वाकर्षण अभी समझ के बाहर है।

  1. लीसा" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/f5/LISA-waves.jpg/220px-LISA-waves.jpg" alt="लीसा" width="220" height="165">

    लीसा

    गुरुत्वाकर्षण बल : यह बल सर्वत्र है अर्थात हर कण इस बल को अपने द्रव्यमान या ऊर्जा के अनुसार इसे महसूस करता है। यह सभी बलो मे सबसे कमजोर बल है। यह इतना कमजोर बल है कि इसे हम शायद महसूस भी नही करे यदि यह अपने दो विशिष्ट गुणो का प्रदर्शन न करे। यह बल विशालकाय दूरी पर भी प्रभावी है तथा यह हमेशा आकर्षक होता है। अर्थात पृथ्वी तथा सूर्य जैसे पिंडो के दो स्वतंत्र कणो के मध्य का यह कमजोर गुरुत्वाकर्षण बल, एक होकर एक महत्वपूर्ण प्रभावी बल बन जाता है। अन्य तीनो बल या तो कम दूरी के होते है या कभी आकर्षक होते है, कभी प्रतिकर्षक होते है जिससे वे एक दूसरे को निश्प्रभावी कर देते है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार दो पदार्थकणो के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल स्पिन २ के बलवाहक कण ग्रैवीटान के आदानप्रदान से उत्पन्न होता है। ग्रैवीटान का द्रव्यमान नही होता है जिससे बल विशालकाय दूरी पर भी प्रभावी होता है। इस तरह से सूर्य और पृथ्वी के मध्य गुरुत्वाकर्षण उन्हे निर्माण करने वाले पदार्थ कणो के मध्य ग्रैवीटान कणो के आदानप्रदान के रूप मे दर्शाया जा सकता है। आदानप्रदान किये गये ग्रैवीटान कण आभासी है लेकिन उनके द्वारा उत्पन्न प्रभाव को मापा जा सकता है और ये कण पृथ्वी को सूर्य की कक्षा मे रखते है। वास्तविक ग्रैवीटान द्वारा गुरुत्वाकर्षण की तरंगे उत्पन्न होगीं, जोकि काफी कमजोर होंगी। ये तरंगे इतनी कमजोर है कि इन्हे अभी तक देखा नही जा सका है।गुरुत्वाकर्षण तरंगो के मापन के लिये एक अभियान लीसा(Laser Interferometer Space Antenna) प्रस्तावित है जो कि २०१६ मे अंतरिक्ष मे प्रक्षेपित किया जायेगा।

  2. विद्युत चुंबकिय बल : दूसरे वर्ग का बल विद्युत चुंबकिय बल है, जो विद्युत आवेशित कणो जैसे इलेक्ट्रान तथा क्वार्क के मध्य होता है लेकिन अनावेशीत कणो जैसे ग्रैवीटान से कोई प्रतिक्रिया नही करता है। यह गुरुत्वाकर्षण बल से कहीं ज्यादा मजबूत होता है। दो इलेक्ट्रान के मध्य विद्युत चुंबकिय बल गुरुत्व बल से एक मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन मीलीयन(१ के बाद ४० शून्य) गुणा ज्यादा होता है। विद्युत आवेश दो तरह का होता है, ऋणात्मक तथा धनात्मक। दो धन कणो के मध्य या दो ऋण कणो के मध्य विद्युत चुंबकिय बल प्रतिकर्षक होता है, लेकिन धन तथा ऋण कण के मध्य विद्युत चुंबकिय बल आकर्षक होता है। एक विशाल पिंड जैसे पृथ्वी या सूर्य मे लगभग समान मात्रा मे धनात्मक कण तथा ऋणात्मक कण होते है जिससे इन कणो के मध्य आकर्षक बल तथा प्रतिकर्षक बल एक दूसरे को लगभग नष्ट कर देते है तथा कुल विद्युत चुंबकिय बल नगण्य होता है। लेकिन परमाणु और अणु के मध्य यह बल शक्तिशाली होता है। ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रान तथा परमाणु के केन्द्र मे स्थित धनात्मक प्रोटान के मध्य यह बल इलेक्ट्रान को परमाणु के केन्द्र की कक्षा मे परिक्रमा करने मजबूर कर देता है, जिस तरह गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा के लिए मजबूर कर देता है। विद्युत चुंबकिय बल को स्पिन १ के आभासी द्रव्यमान रहित फोटान कणो के आदानप्रदान के रूप मे देखा जाता है। इस प्रक्रिया मे आदान प्रदान किये गये फोटान आभासी होते है लेकिन जब कोई इलेक्ट्रान अपनी कक्षा से जब परमाणु केन्द्र के समीप की कक्षा मे जाता है, ऊर्जा उत्सर्जित होती है और वास्तविक फोटान उत्सर्जित होते है, इन फोटानो मानव अपनी आंखो से प्रकाश किरणो के रूप मे देख सकता है, इन्हे फोटो फिल्म से जांचा जा सकता है। उसी तरह जब फोटान किसी परमाणु से टकराता है, वह किसी इलेक्ट्रान को केन्द्र के समीप की कक्षा से दूर की कक्षा मे विस्थापित कर सकता है। इस प्रक्रिया मे ऊर्जा चाहिये इसलिये फोटान का अवशोषण हो जाता है।
  3. कमजोर नाभिकिय बल :तीसरा वर्ग कमजोर नाभिकिय बल का है, यह बल रेडीयो सक्रियता उत्पन्न करता है। यह बल १/२ स्पिन के पदार्थ कणो पर प्रभावी होता है लेकिन ०,१,२ स्पिन के कणो पर अप्रभावी होता है। १९६७ तक यह बल अच्छे तरिके से समझ मे नही आया था। १९६७ मे इम्पीरीयल विद्यालय लंदन के अब्दूस सलाम तथा हार्वर्ड के स्टीवन वेनबर्ग ने विद्युतचुंबकिय बल तथा कमजोर नाभिकिय बल को एकीकृत करने वाला सिद्धांत प्रस्तावित किया। यह मैक्सवेल द्वारा एक शताब्दी पहले विद्युत बल और चुंबकिय बल के एकीकरण के जैसा था। सलाम और वेनबर्ग के अनुसार फोटान के अतिरिक्त भी स्पिन १ के तीन बलवाहक कण होते है जिन्हे एक साथ ’भारी वेक्टर बोसान(Massive Vector Bosan)’ कहा जाता है। यह भारी वेक्टर बोसान कमजोर नाभिकिय बल को वहन करते है। इन्हे W+,W-,Z0 नाम दिया गया है, इनका द्रव्यमान लगभग १०० गीगा इलेक्ट्रान वोल्ट होता है। वेनबर्ग-सलाम सिद्धांत एक नये गुणधर्म की व्याख्या करता है जिसे ’सहज सममीती विखंडन(spontaneous symmetry breaking)’ कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि कम ऊर्जा पर जो कण हमे एक दूसरे से भिन्न भिन्न प्रकार के कण लगते है, वास्तविकता मे एक ही प्रकार के कण होते है, लेकिन उनकी अवस्था ही अलग होती है। अधिक ऊर्जा पर यह सभी कण एक ही जैसे व्यवहार करते है।

    यह व्यवहार कुछ रौलेट चक्र पर रौलेट गेंद के जैसे है। अधिक ऊर्जा पर (जब चक्र तेजी से घुमता है), गेंद एक ही तरह से व्यव्हार करती है, अर्थात चक्र पर गोल गोल घुमते रहती है। लेकिन जैसे ही रौलेट चक्र धीमा होता है, गेंद की ऊर्जा कम होती है और गेंद ३७ खानो मे से किसी एक खाने मे रूक जाती है। दूसरे शब्दो मे कम ऊर्जा पर गेंद की ३७ भिन्न अवस्थाये मे से किसी एक अवस्था मे हो सकती है। यदि हम गेंद को सिर्फ कम ऊर्जा पर देख पायें तो हम सोचेंगे की ३७ भिन्न भिन्न तरह की गेंदे है!
    वेनबर्ग-सलाम सिद्धांत के अनुसार १०० गीगा GeV से ज्यादा ऊर्जा पर, तीनो कण और फोटान एक ही जैसे व्यव्हार करते है। लेकिन सामान्य अवस्था (कम उर्जा ) मे कणो के मध्य की सममीती टूट जाती है। W+,W- तथा W0 का द्रव्यमान ज्यादा होता है, इस कारण से उनकी क्षमता अत्यंय कम दूरी तक ही होती है। जब सलाम-वेनबर्ग ने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया, बहुत कम लोगो ने इस पर ध्यान दिया था तथा उस समय के कण त्वरक(particle accelerator) W+,W- तथा W0 कणो को उत्पन्न करने वाली उर्जा १०० GeV तक पहुंचने मे असमर्थ थे। अगले १० वर्षो मे उनके सिद्धांत द्वारा कम उर्जा पर की गयी गणना प्रयोगो से निरिक्षित परिणामो से सत्यापित हो रही थी। १९७९ मे सलाम और वेनबर्ग को हार्वड के शेल्डन ग्लाशो के साथ नोबेल दिया गया था। शेल्डन ग्लाशो ने भी इसी से मिलता सिद्धांत प्रस्तावित किया था। १९८३ मे CERN मे फोटान के इन तीन साथीयो की खोज हो गयी थी। इन तीनो कणो के द्रव्यमान और गुणधर्म इस सिद्धांत द्वारा प्रस्तावित द्रव्यमान और गुणधर्म के बराबर ही थे। इस खोज के लिए CERN के कार्लो रूबीया १९८४ मे नोबेल पुरस्कार मीला।

  4. मजबूत नाभिकिय बल :
    एक प्रोटान या न्युट्रान तीन अलग अलग रंग(लाल, हरा और नीला) के क्वार्क से बना होता है। " src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/9/92/Quark_structure_proton.svg/250px-Quark_structure_proton.svg.png" alt="एक प्रोटान या न्युट्रान तीन अलग अलग रंग(लाल, हरा और नीला) के क्वार्क से बना होता है। " width="250" height="250">

    एक प्रोटान या न्युट्रान तीन अलग अलग रंग(लाल, हरा और नीला) के क्वार्क से बना होता है।

    चतुर्थ वर्ग मे आते है मजबूत नाभिकिय बल, जो क्वार्क को प्रोटान और न्युट्रान मे तथा प्रोटान और न्युट्रान को परमाणु केन्द्रक मे बांधे रखता है। यह माना जाता है कि यह बल स्पिन १ के कण ग्लुआन से बनता है जो स्वयं से तथा क्वार्क से प्रतिक्रिया करता है। मजबूत नाभिकिय बल का एक गुणधर्म होता है,जिसे परिरोध या बंधन(Confinement) कहते है। इस गुणधर्म के कारण यह बल कणो को इस तरह से बांधता है कि कणो के संयोजन का कोई रंग नही होता है। कोई क्वार्क अकेला नही हो सकता क्योंकि उसका रंग होगा(लाल, हरा या नीला)। यह बल एक लाल, एक नीले और एक हरे क्वार्क को ग्लुआन के बंधन से बांधता है(लाल+हरा+नीला=सफेद)। इस तरह की तीकड़ी प्रोटान या न्युट्रान बनाती है। दूसरी संभावना के अनुसार क्वार्क तथा प्रति क्वार्क(एन्टीक्वार्क) का जोड़ा(लाल + प्रतिलाल, हरा+प्रतिहरा, नीला+प्रतिनिला)मेसान कणो का निर्माण करते है। मेसान कण अस्थायी होते है क्योंकि क्वार्क और प्रतिक्वार्क एक दूसरे को मिटाकर इलेक्ट्रान और अन्य कणो का निर्माण करते है। इसी तरह से ’बंधन’ गुण ग्लुआन को दूसरे ग्लुआन से जुड़ने से रोकता है क्योंकि ग्लुआन का भी रंग होता है। यदि ऐसे ग्लुआन जो मिलकर सफेद रंग बनाए तो ’ग्लूबाल’ नामक अस्थायी कण का निर्माण करेंगे।
    यह तथ्य कि’परिरोध’ गुण एक अकेले क्वार्क या ग्लुआन के निरिक्षण से रोकता है, क्वार्क और ग्लुआन को सैद्धांतिक कण बना देता है। लेकिन मजबूत नाभिकिय बल का एक और गुणधर्म जीसे अनन्तस्पर्शी स्वतंत्रता(asymptotic freedom) कहते है, ग्लुआन और क्वार्क को अच्छी तरह से परिभाषित करता है। सामान्य ऊर्जा पर मजबूत नाभिकिय बल क्वार्क को मजबूती से बांधे रखता है। लेकिन विशाल कण त्वरको (large particleaccelerators) के प्रयोगो से सिद्ध हुआ है कि उच्च उर्जा पर यह बल कमजोर हो जाता है और क्वार्क तथा ग्लुआन स्वतंत्र कणो के जैसे व्यव्हार करते है।

मूलभूत कण तथा मूलभूत बल को एक साथ देखने पर निम्न चित्र सामने आता है :

विद्युत-चुंबकिय बल तथा कमजोर नाभिकिय बल के एकीकरण के प्रयास की सफलता ने वैज्ञानिको को इन दोनो बलो को मजबूत नाभिकिय बलो को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसे महा एकीकृत सिद्धांत (Grand Unified Theory-GUT) कहते है। यह नाम उचित नही है क्योंकि यह सिद्धांत महान नही है, और यह एकीकृत सिद्धांत भी नही है क्योंकि यह गुरुत्वाकर्षण को शामिल नही करता है। यह सिद्धांत पूर्ण सिद्धांत भी नही है क्योंकि इस सिद्धांत मे बहुत से कारक ऐसे है जिनके मूल्य की गणना नही की जा सकती, उल्टे उन्हे प्रयोग की सफलता के लिए चुना जाता है! फिर भी यह पूर्ण एकीकृत सिद्धांत की ओर एक कदम है।